BRICS में पीएम मोदी की मौजूदगी बनेगा ग्लोबल सेंटरपॉइंट, पुतिन-जिनपिंग के न जाने से भारत को कितना होगा फायदा?

ब्राजील में हो रहे BRICS शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी की उपस्थिति ने भारत को वैश्विक मंच पर केंद्र में ला खड़ा किया है. जहां शी जिनपिंग और पुतिन जैसे दिग्गज अनुपस्थित रहे, वहीं भारत ने बहुपक्षीय नेतृत्व और संतुलन का संदेश दिया. अगली ब्रिक्स समिट भारत में प्रस्तावित है, जिससे मोदी की भागीदारी और भी अहम हो जाती है.;

( Image Source:  x/narendramodi )
Curated By :  नवनीत कुमार
Updated On : 6 July 2025 1:06 PM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पांच देशों की विदेश यात्रा का चौथा पड़ाव ब्राजील है, जहां वे BRICS के 17वें शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने पहुंच चुके हैं. इससे पहले वे घाना, त्रिनिदाद और टोबैगो और अर्जेंटीना का दौरा कर चुके हैं. लेकिन यह महज़ एक बहुपक्षीय मंच पर उपस्थिति भर नहीं है बल्कि भारत की वैश्विक रणनीति का विस्तार है, खासकर ऐसे समय में जब विश्व राजनीतिक ध्रुवीकरण के दौर से गुजर रहा है.

इस बार चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ब्रिक्स समिट से दूर हैं, जो उनके एक दशक के शासनकाल में पहली बार हो रहा है. उनकी जगह प्रधानमंत्री ली कियांग चीन का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. यह संकेत है कि चीन फिलहाल घरेलू आर्थिक चुनौतियों और अमेरिका के साथ चल रहे व्यापारिक तनाव को प्राथमिकता दे रहा है. हालांकि चीन ब्रिक्स से दूरी नहीं बना रहा, लेकिन यह उसकी आंतरिक प्राथमिकताओं की ओर इशारा जरूर है.

रूस भी वर्चुअल होगा शामिल

ब्रिक्स में राष्ट्रपति पुतिन भी वर्चुअली ही भाग लेंगे क्योंकि ब्राजील इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट (ICC) का सदस्य है और उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट लंबित है. ऐसे में व्यक्तिगत रूप से भाग लेने वाले गिने-चुने नेताओं में पीएम मोदी की मौजूदगी न केवल अहम बनती है, बल्कि भारत को ब्रिक्स में स्थिर, विश्वसनीय और सक्रिय भागीदार के रूप में स्थापित करती है.

विकासशील देशों की सामूहिक आवाज

ब्रिक्स की शुरुआत 2006 में भले ही चार देशों से हुई हो, लेकिन 2024 के बाद यह मंच 10 स्थायी सदस्य देशों का समूह बन चुका है, जिनमें सऊदी अरब, ईरान, यूएई और इंडोनेशिया जैसे देश शामिल हैं. यह मंच अब केवल उभरती अर्थव्यवस्थाओं की बातचीत का केंद्र नहीं, बल्कि पश्चिमी वर्चस्व को संतुलित करने की वैश्विक कोशिश का हिस्सा है.

भारत के लिए ब्रिक्स क्यों है अहम?

भारत के लिए BRICS केवल सहयोग का माध्यम नहीं, बल्कि एक बहुपक्षीय संतुलन बनाए रखने का औजार है. आतंकवाद, ऊर्जा सुरक्षा, ग्लोबल ट्रेड और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों पर भारत ब्रिक्स को अपना मंच मानता है. प्रधानमंत्री मोदी की उपस्थिति इस मंच पर भारत की वैश्विक महत्त्वाकांक्षा और नेतृत्व क्षमता को रेखांकित करती है.

भारत में होगा अगला ब्रिक्स समिट

2026 में अगली ब्रिक्स समिट भारत में प्रस्तावित है, ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी की सक्रिय भागीदारी ब्रिक्स के भीतर भारत की नेतृत्वकारी भूमिका को मजबूत करती है. यह बाकी सदस्य देशों को भी यह भरोसा दिलाता है कि भारत न केवल मेजबानी के लिए तैयार है, बल्कि वह इस संगठन के भविष्य को दिशा देने में भी अग्रणी भूमिका निभाना चाहता है.

भारत है सबके लिए मीडिएटर

भारत लंबे समय से एक बहुध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था की वकालत करता रहा है, जहां सिर्फ पश्चिमी शक्तियों का वर्चस्व न हो. ब्रिक्स इस दिशा में भारत के लिए एक उपयोगी मंच है, जहां वह दक्षिण-दक्षिण सहयोग, वैश्विक न्याय और व्यापारिक समावेशन की बात कर सकता है. भारत की स्थिति पश्चिम और गैर-पश्चिम दोनों खेमों में संवाद सेतु जैसी है.

UPI घटाएगा डॉलर की निर्भरता

ब्रिक्स में बीते कुछ वर्षों से डॉलर के स्थान पर एक साझा करेंसी या स्थानीय मुद्राओं में व्यापार की चर्चा जारी है. भारत ने UPI जैसी टेक्नोलॉजी का प्रस्ताव इस मंच पर दिया है, जो भविष्य में दक्षिणी देशों के बीच डिजिटल आर्थिक सहयोग को नया आधार दे सकता है. इससे न केवल डॉलर पर निर्भरता घटेगी, बल्कि भारत का फिनटेक नेतृत्व भी उभरकर सामने आएगा.

क्या-क्या है चुनौतियां?

ब्रिक्स का विस्तार नई संभावनाएं तो लेकर आया है, लेकिन इसके साथ चुनौतियां भी जुड़ी हैं. जैसे चीन और रूस का बढ़ता प्रभाव, कुछ देशों की अमेरिकी विरोधी छवि और वैचारिक ध्रुवीकरण. भारत को इस मंच में न तो केवल पश्चिम का विरोधी दिखना है और न ही चीन-रूस की छाया में रहना है. मोदी की रणनीति यही है कि स्वतंत्र और संतुलित नेतृत्व.

अपना एजेंडा सेट कर जाएगा भारत

इस बार की ब्रिक्स बैठक कई ज्वलंत अंतरराष्ट्रीय मुद्दों की छाया में हो रही है. जैसे रूस-यूक्रेन युद्ध, गाजा संकट, अमेरिका की टैरिफ नीति आदि. शी जिनपिंग के न होने से भारत इस मंच पर आतंकवाद के खिलाफ ठोस कदम, वैश्विक दक्षिण का आर्थिक सशक्तिकरण और समावेशी विकास जैसे एजेंडों को प्रमुखता देगा. घोषणापत्र की भाषा संतुलित रहेगी, लेकिन भारत की प्राथमिकताएं उसमें झलकेंगी ज़रूर.

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