एहसान फरामोश बांग्लादेश! 1971 की जंग में भारत को बताया महज एक सहयोगी, 'विजय दिवस' से भी आपत्ति

Bangladesh to India: बांग्लादेश जब पाकिस्तान के अधीन हुआ करता था, भारत ने ही 1971 की जंग में पड़ोसी देश को पाकिस्तान के चंगुल से बाहर निकाला था. लेकिन बांग्लादेश उस जंग में अब भारत को महज अपना सहयोगी बता रहा है.;

Bangladesh to India
Edited By :  सचिन सिंह
Updated On : 17 Dec 2024 10:26 AM IST

Bangladesh to India: बांग्लादेश तो अब एहसान फरामोश निकल गया...भारत ने 1971 की जंग में पाकिस्तान से उसे आजाद भी कराया और अब वह भारत को उस जंग का महज एक सहयोगी बता रहा है. ऐसा लगता है बांग्लादेश अपनी दिशा से भटक गया है. हाल के कुछ महीनों में पड़ोसी की लगातार भारत के खिलाफ हरकतें कुछ ठीक नहीं चल रही है. अब तो उसने हद ही पार कर दी.

बांग्लादेश के अंतरिम सरकार के विधि सलाहकार आसिफ नजरुल ने भारत के 'विजय दिवस' पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सोशल मीडिया पर पोस्ट का 'कड़ा विरोध' किया है. आसिफ नजरुल ने सोमवार को अपने फेसबुक पेज पर मोदी के फेसबुक पोस्ट का स्क्रीनशॉट शेयर करते हुए लिखा, 'मैं कड़ा विरोध करता हूं. 16 दिसंबर, 1971 बांग्लादेश का विजय दिवस था. भारत इस जीत का सहयोगी था, इससे ज्यादा कुछ नहीं.'

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'विजय दिवस' पर पीएम मोदी का पोस्ट

पीएम मोदी ने विजय दिवस पर अपने एक्स अकाउंट पर पोस्ट शेयर कर लिखा था, 'आज विजय दिवस पर हम उन बहादुर सैनिकों के साहस और बलिदान का सम्मान करते हैं, जिन्होंने 1971 में भारत की ऐतिहासिक जीत में योगदान दिया. उनके समर्पण और अटूट संकल्प ने हमारे देश की रक्षा की और हमें गौरव दिलाया. यह दिन उनकी असाधारण वीरता और उनकी अडिग भावना को श्रद्धांजलि है. उनका बलिदान हमेशा पीढ़ियों को प्रेरित करेगा और हमारे देश के इतिहास में गहराई से समाया रहेगा.'

क्यों मनाया जाता है 'विजय दिवस'?

16 दिसंबर को मनाया जाने वाला विजय दिवस 1971 के युद्ध में पाकिस्तान पर भारत की निर्णायक जीत की याद में मनाया जाता है. इस हार के बाद पूर्वी पाकिस्तान, पाकिस्तान से आजाद हो गया और बांग्लादेश का जन्म हुआ. 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल एए खान नियाज़ी ने भारतीय कमांडर जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने आत्मसमर्पण किया और 'आत्मसमर्पण दस्तावेज' पर हस्ताक्षर किए. 93,000 पाकिस्तानी सेना के साथ इस आत्मसमर्पण ने पश्चिमी पाकिस्तान के क्रूर शासन के खिलाफ पूर्वी पाकिस्तान के सालों पुराने आंदोलन को खत्म कर दिया. 

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