नीतीश कुमार के लिए कहीं भारी न पड़ जाए 'टोपी कांड', 2020 में JDU से कितने मुसलमान प्रत्याशी जीते थे?

बिहार के सीएम नीतीश कुमार के लिए 'टोपी कांड' यानी JDU में मुस्लिम वोटों की उलझन, इस बार चुनाव में भारी पड़ सकता है. हालांकि, बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में JDU ने 11 मुस्लिम प्रत्याशियों को चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिए थे, लेकिन एक भी प्रत्याशी नहीं जीत पाए. इस नजरिए से देखें तो टोपी कांड चुनाव से ठीक पहले होना, पार्टी के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है. पर ऐसा हो ही इसे दावे के साथ नहीं कहा जा सकता.;

Curated By :  धीरेंद्र कुमार मिश्रा
Updated On : 22 Aug 2025 2:25 PM IST

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 ने जाति और साम्प्रदायिक राजनीति को फिर से केंद्र में ला दिया है. जनता दल यूनाइटेड के लिए शुरुआती दौर से ही मुस्लिम समुदाय के वोट लाभकारी साबित होता आया है. साल 2015 के चुनाव तक JDU को मुस्लिम मतदाताओं को समर्थन खुलकर मिला. साल 2020 में पार्टी के एक भी प्रत्याशी चुनावी जीत दर्ज नहीं करा पाए. यहां तक कि मुस्लिम बहुल इलाकों में भी जेडीयू प्रत्याशी चुनाव हार गए. ऐसे में चुनाव से ठीक पहले 'टोपी कांड' जैसी घटना JDU के लिए राजनीतिक रूप से महंगे साबित हो सकते हैं.

दरअसल, विधानसभा चुनाव 2025 से पहले बिहार के सीएम नीतीश कुमार एक विवाद में फंसते हुए नजर आ रहे हैं. सोशल मीडिया में एक वीडियो वायरल हो रहा है. इसमें वो बिहार सरकार के मंत्री मोहम्मद जमा खान को टोपी पहनाते हुए नजर आ रहे हैं. उनके आलोचकों का कहना है कि नीतीश कुमार ने खुद टोपी पहनने से इनकार करते हुए जामा खान को वह टोपी पहना दी. यह सामान्य घटना नहीं है, वो भी चुनाव से पहले.  

टोपी कांड जेडीयू के लिए गंभीर मसला

इस घटना को लेकर कुछ लोगों का कहना है कि नीतीश ने टोपी पहनने से इनकार नहीं किया था. सीएम नीतीश कुमार पहले भी ऐसा करते रहे हैं. कई बार जब उन्हें कोई माला पहनाने की कोशिश करता है तो वो वही माला उसे ही पहना देते हैं. यह घटना मदरसा बोर्ड के 100वीं वर्षगांठ के अवसर पर घटी थी. इसलिए, टोपी पहनाने या न पहनाने का यह विवाद को विरोधी दलों के नेता चुनावी में मुद्दा बना सकते हैं.

 

दूसरी तरफ नीतीश कुमार को लेकर वायरल इस वीडियो पर राजनीति भी शुरू हो गई है. इसलिए, ‘टोपी कांड’ को महज एक घटना मानकर छोड़ना जेडीयू के लिए आसान नहीं होगा. क्योंकि राजनीति में प्रतीकवाद और जनभावनाओं का असर बहुत गहरा होता है. खासकर बिहार जैसे राज्य में जहां जाति और धर्म आधारित राजनीति का वजन बहुत भारी है.

मुस्लिम वोट बैंक पर असर

बिहार में मुस्लिम वोट बैंक किसी भी दल की जीत-हार तय करने में अहम भूमिका निभाता है. अगर ‘टोपी कांड’ को मुस्लिम समुदाय की अस्मिता और धार्मिक भावनाओं से जोड़कर प्रचारित किया गया, तो जेडीयू और नीतीश कुमार के लिए यह नुकसानदेह साबित हो सकता है. विपक्षी पार्टियां (राजद और कांग्रेस) इसे मुद्दा बनाकर अल्पसंख्यक वोटरों को अपने पक्ष में लामबंद करने की कोशिश कर सकती हैं.

विपक्ष को मिला हथियार

नीतीश कुमार की सेक्युलर छवि को चोट पहुंचाने के लिए विपक्ष इस घटना का इस्तेमाल करेगा. राजनीतिक संदेश यही जाएगा कि नीतीश का समाजवाद और सेक्युलरिज्म केवल दिखावा है. महागठबंधन के नेता यह साबित करने की कोशिश करेंगे कि बीजेपी के साथ रहते हुए नीतीश कुमार पहले ही मुस्लिमों से दूर होते जा रहे हैं. इस तरह के बयानों के बीच जेडीयू प्रमुख के लिए सियासी संतुलन बनाना मुश्किल भरा हो सकता है.

नीतीश के संतुलित छवि को लगेगा झटका

बिहार में नीतीश कुमार को हमेशा संतुलित नेता और सभी समुदायों के भरोसेमंद CM के रूप में देखा गया है. इस घटना से उनकी छवि सभी को साथ लेकर चलने वाले नेता की बजाय राजनीतिक दबाव में झुकने वाले नेता जैसी बन सकती है. यह कांड सिर्फ नीतीश कुमार की राजनीति को ही नहीं बल्कि बिहार की चुनावी राजनीति में धर्मनिरपेक्षता और धार्मिक प्रतीकवाद के बीच संतुलन पर भी सवाल खड़ा करता है.

2020 में जेडीयू के कितने प्रत्याशी जीते?

2020 में JDU ने 115 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, जिनमें 11 मुस्लिम उम्मीदवार थे. यानी लगभग 10 प्रतिशत चयन मुस्लिम समुदाय के थे. जेडीयू एक भी मुस्लिम प्रत्याशी जीत हासिल नहीं कर पाए थे. जेडीयू के लिए शुरू संकेत नहीं था. तभी से मुस्लिमों को रुझान तेजी से टूटने लगा. मुसलमान मतदाताओं की ओर से जेडीयू के लिए एक राजनीतिक संदेश भी था. फिर मुस्लिम वोटरों ने JDU को उनके NDA (BJP) से गठबंधन के कारण पसंद नहीं किया, जिससे JDU के मुस्लिम उम्मीदवारों की हार का स्पष्ट कारण बना.

जेडीयू प्रत्याशियों की हार बड़ी विफलता

फिर भी, 11 मुस्लिम उम्मीदवारों में से कोई भी चुनाव नहीं जीत पाया. यह स्पष्ट रूप से बताता है कि मुस्लिम मतदाताओं ने JDU को भरोसेमंद नहीं माना. क्योंकि पार्टी NDA का हिस्सा है और अब उस पर अपने सहयोगियों का असर दिखने लगा है.

नीतीश अब वो नहीं रहे, जो थे - राजेश राठौड़

बिहार कांग्रेस के प्रवक्ता राजेश राठौड़ का टोपी कांड को लेकर कहना है कि नीतीश कुमार को कभी कोई सिद्धांत नहीं रहा है. इसके बावजूद वह टोपी पहनते रहे हैं. कभी-कभार टोपी नहीं भी पहनते हैं. अभी तक इस घटना को लोग सामान्य मानकर चल रहे थे, लेकिन शुक्रवार को पीएम मोदी का बिहार में कार्यक्रम है, उससे ठीक दो दिन पहले नीतीश कुमार को मुस्लिमों के कार्यक्रम में टोपी न पहनना बड़ा संदेश देता है.

मुस्लिम समाज में इससे संदेश गया है कि नीतीश अब बीजेपी और आरएसएस के दबाव में काम कर रहे हैं. वो अब पीएम मोदी और अमित शाह के शरणागत हो गए हैं. इससे उनके धर्मनिरपेक्षवादी और समाजवादी सिद्धांतों को झटका लगा है. असर पडेगा. समाजवादी या संघर्षवाद सेक्युलर छवि हैं. मानमोहन अब इनका हरकत कहीं न कहीं यह संदेश दिया है कि अब नीतीश वो नहीं रहे, जो पहले हुआ करते थे.

टोपी कांड निजी आस्था का मामला : रंजन सिंह

बिहार लोक जनशक्ति पार्टी के प्रवक्ता रंजन सिंह ने टोपी कांड पर कहना है कि यह निजी आस्था का मामला है. टोपी पहनने और न पहनने की घटना को राजनीति से जोड़कर आप नहीं देख सकते. यह कोई पहली घटना नहीं है. नीतीश जी हमेशा से टोपी पहनते रहे हैं. कभी कभार ऐसा भी हुआ है कि उन्होंने टोपी नहीं पहने. इस बार ऐसा क्या हो गया कि इसे मुद्दा बनाया जा रहा है. यह यह उनका निजी विचार हो सकता है. पीएम मोदी जब गुजरात के सीएम थे, तो उन्होंने भी एक बार टोपी नहीं पहना था. उसे भी मीडिया ने उछाला था, पर चुनाव परिणाम मोदी जी के पक्ष में गया.

 

नीतीश कुमार 20 साल से सीएम है. उन्होंने हमेशा मुस्लिम समाज का सम्मान दिलाने का काम किया है. विकास, रोजगार व अन्य सभी मामलों में पहले से ज्यादा भागीदार बनाया है. उन्होंने कहा कि अहम बात यह है कि नीतीश कुमार सभी धर्मों का सम्मान करते हैं या नहीं. मुझे नहीं लगता है कि कोई इस मसले पर बिहार के सीएम का विरोध करेगा. यहां तक की मुस्लिम समाज के लोग भी यह स्वीकार नहीं करेंगे.

एलजेपीआर भी एनडीए गठबंधन का ही हिस्सा है. हमारे नेता चिराग पासवान जी धर्म और जाति की बात नहीं करते. वह विकास, रोजगार, सभी को समान अवसर मुहैया कराने की बात करते हैं. पिछड़े, अति पिछड़े और महिलाओं के सशक्तिकरण पर जोर देते हैं.

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