उत्तराखंड में प्रोफेसर करेंगे लावारिस कुत्तों की गिनती, सरकार के आदेश पर मचा बवाल; भड़के शिक्षक

उत्तराखंड सरकार के आदेश के अनुसार, अब आवारा कुत्तों की गिनती की जिम्मेदारी महाविद्यालयों के प्राचार्यों और विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर को सौंपी गई है. इन्हें नोडल अधिकारी नियुक्त करते हुए अपने-अपने संस्थानों के आसपास मौजूद लावारिस कुत्तों की गणना करने को कहा गया है. यह आदेश 23 दिसंबर को उच्च शिक्षा विभाग के संयुक्त सचिव की ओर से जारी किया गया था.;

( Image Source:  AI: Sora )
Edited By :  विशाल पुंडीर
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उत्तराखंड में आवारा कुत्तों का बढ़ता आतंक अब एक गंभीर सामाजिक और प्रशासनिक चुनौती बनता जा रहा है. गांवों से लेकर शहरों तक रोजाना दर्जनों लोग कुत्तों के काटने का शिकार हो रहे हैं, जिससे अस्पतालों में एंटी रैबीज वैक्सीन (एआरवी) लगवाने वालों की लंबी कतारें देखने को मिल रही हैं. इस समस्या ने आम जनजीवन का सुख-चैन छीन लिया है और लोगों में भय का माहौल बना हुआ है.

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आवारा कुत्तों के बढ़ते खतरे को लेकर मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है. सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के बाद अब उत्तराखंड सरकार ने इस दिशा में कदम तेज कर दिए हैं. आवारा कुत्तों को नियंत्रित करने और उनके लिए सेल्टर बनाने की कवायद के तहत शासन ने एक ऐसा निर्णय लिया है, जिसने शिक्षा जगत में तीखी बहस और नाराजगी को जन्म दे दिया है.

प्रोफेसर करेंगे आवारा कुत्तों की गिनती

उत्तराखंड सरकार के आदेश के अनुसार, अब आवारा कुत्तों की गिनती की जिम्मेदारी महाविद्यालयों के प्राचार्यों और विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर को सौंपी गई है. इन्हें नोडल अधिकारी नियुक्त करते हुए अपने-अपने संस्थानों के आसपास मौजूद लावारिस कुत्तों की गणना करने को कहा गया है. यह आदेश 23 दिसंबर को उच्च शिक्षा विभाग के संयुक्त सचिव की ओर से जारी किया गया था. इसके तहत उत्तराखंड के शासकीय, सहायता प्राप्त अशासकीय और निजी महाविद्यालयों के प्राचार्यों को निर्देश दिए गए हैं कि वे अपने क्षेत्र में आवारा कुत्तों की संख्या का आकलन करें और यह भी बताएं कि उनके पुनर्वास के लिए कोई कार्रवाई हुई है या नहीं. यह पूरी रिपोर्ट स्थानीय प्रशासन को सौंपनी होगी.

शिक्षकों में आदेश को लेकर नाराजगी

संयुक्त शिक्षा निदेशक की ओर से जारी इस आदेश के बाद शिक्षकों में गहरी नाराजगी देखने को मिल रही है. उनका कहना है कि शिक्षकों की मूल जिम्मेदारी विद्यार्थियों को शिक्षा और ज्ञान देना है, ताकि एक बेहतर समाज और बेहतर नागरिकों का निर्माण हो सके. शिक्षाविदों का मानना है कि शिक्षकों को ऐसे प्रशासनिक कार्यों में लगाना न केवल उनके पेशे के साथ अन्याय है, बल्कि शिक्षा व्यवस्था की गरिमा पर भी सवाल खड़े करता है. उनका कहना है कि शासन को शिक्षकों के सम्मान और उनकी भूमिका की मर्यादा को समझना चाहिए.

शिक्षा जगत ने बताया निर्णय को अपमानजनक

इस मुद्दे पर अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के मंडल अध्यक्ष नरेंद्र तोमर ने कड़ा विरोध दर्ज कराया है. उन्होंने कहा “शिक्षक की ड्यूटी कुत्तों की गणना में लगाना और प्राचार्य को नोडल अधिकारी बनाना गरिमा के खिलाफ है. सरकार के इस निर्णय से पूरे शिक्षा जगत का अपमान हुआ है.” एक ओर जहां सरकार आवारा कुत्तों की समस्या से निपटने के लिए तेजी से कदम उठाने की बात कर रही है, वहीं दूसरी ओर शिक्षकों का विरोध इस निर्णय को और विवादों में घसीटता नजर आ रहा है.

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