डेंजर जोन में भारत का 61 फीसदी हिस्सा, पूरा हिमालय क्षेत्र बना सबसे खतरनाक; नया भूकंप डिजाइन कोड आया सामने

भारत ने भूकंप सुरक्षा मानकों में ऐतिहासिक बदलाव करते हुए नया भूकंप डिजाइन कोड और अपडेटिड भूकंपीय क्षेत्रीकरण मानचित्र जारी कर दिया है. जिसके मुताबिक भारत का 61 फीसदी हिस्सा डेंजर जोन में शामिल है. इसके अलावा पूरा हिमालय क्षेत्र सबसे खतरनाक जोन में शामिल है.;

( Image Source:  AI: Sora )
Edited By :  विशाल पुंडीर
Updated On : 28 Nov 2025 12:43 PM IST

भारत ने भूकंप सुरक्षा मानकों में ऐतिहासिक बदलाव करते हुए नया भूकंप डिजाइन कोड और अपडेटिड भूकंपीय क्षेत्रीकरण मानचित्र जारी कर दिया है. इस नए मानचित्र में देश की भूकंपीय संवेदनशीलता को नए सिरे से परिभाषित किया गया है, जिसमें पहली बार पूरा हिमालयी क्षेत्र सर्वाधिक जोखिम वाले जोन VI में रखा गया है.

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, यह परिवर्तन केवल तकनीकी अपडेट नहीं है, बल्कि भविष्य की इमारतों, शहरी नियोजन और बुनियादी ढांचे की सुरक्षा के लिए बेहद महत्वपूर्ण कदम है. नए मानचित्र के अनुसार, अब भारत का 61% हिस्सा मध्यम से उच्च भूकंप जोखिम वाले क्षेत्र में आता है, जो देश के लिए खतरे का नया सिनेरियो पेश करता है.

सबसे खतरनाक जोन में हिमालय

वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के निदेशक और राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र के पूर्व निदेशक विनीत गहलौत के अनुसार, पहले के मानचित्रों में हिमालय को जोन IV और V में बांटा गया था, जबकि असल में पूरा क्षेत्र समान उच्च भूकंपीय खतरे को साझा करता है. गहलौत ने कहा कि "पहले के ज़ोनिंग में लंबे समय से शांत पड़े भ्रंश खंडों को कम आंका गया था, जबकि ये खंड लगातार तनाव जमा करते रहते हैं।. नया मानचित्र पहली बार इस खतरे का वैज्ञानिक मूल्यांकन पेश करता है."

हिमालय अब सबसे बड़ा संभावित खतरा

रिपोर्ट के मुताबिक एक्सपर्ट का कहना है कि मध्य हिमालय का बड़ा हिस्सा लगभग 200 सालों से किसी बड़े सतह-विस्फोटक भूकंप का अनुभव नहीं कर पाया है. इसका अर्थ है कि इन क्षेत्रों में भारी मात्रा में तनाव जमा हो चुका है, जो भविष्य में विनाशकारी भूकंपों का कारण बन सकता है. नया जोन VI इस संभावित खतरे को पहचानते हुए इन क्षेत्रों को सबसे खतरनाक जोन में रखता है.

हिमालय के दक्षिण में भी फैला खतरा

नए मानचित्र के अनुसार, भूकंपीय विक्षोभ अब हिमालयन फ्रंटल थ्रस्ट तक दक्षिण की ओर फैल सकता है, एक क्षेत्र जो देहरादून के पास मोहंद से शुरू होता है. यह दिखाता है कि खतरा केवल उच्च पर्वतीय क्षेत्रों तक सीमित नहीं है, बल्कि मैदानी हिस्सों तक भी फैल चुका है. वैज्ञानिकों ने बताया कि पहले खतरे के जोन प्रशासनिक सीमाओं के आधार पर बदल जाते थे, जिससे गलत आकलन की संभावना रहती थी. नया मानचित्र गलत आंकलन की संभावना को खत्म करता है.

नए कोड का एक महत्वपूर्ण नियम यह है कि दो श्रेणियों की सीमा पर बसे कस्बों को उच्च जोखिम वाले जोन में रखा जाएगा. इससे शहरी योजनाकारों और इंजीनियरों को पुराने धारणा-आधारित जोखिम मूल्यांकन से हटकर वास्तविक, अपडेटिड वैज्ञानिक डेटा के आधार पर काम करना होगा.

PSHA तकनीक से तैयार हुआ नया मानचित्र

भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) द्वारा जारी यह मानचित्र PSHA (Probabilistic Seismic Hazard Assessment) तकनीक का उपयोग करके तैयार किया गया है. जिसमें सक्रिय भ्रंशों का डेटा, प्रत्येक भ्रंश पर अधिकतम संभावित भूकंप, दूरी के साथ भू-कंपन में कमी का वैज्ञानिक विश्लेषण, भू-भाग की भौगोलिक और आश्म-वैज्ञानिक जानकारी शामिल है. पहले के तरीकों में ऐतिहासिक भूकंपों, उपकेंद्रों, और मृदा वर्गीकरण पर निर्भरता थी, जिसके कारण कई क्षेत्रों का मूल्यांकन अधूरा या गलत हो जाता था.

एक्सपर्ट का कहना है कि नया मानचित्र केवल वैज्ञानिक दस्तावेज नहीं है, बल्कि चेतावनी है कि भारत के घने शहरों और कस्बों को भूकंप-रोधी डिजाइन अपनाने की ज्यादा आवश्यकता है. यह बदलाव आने वाले सालों में निर्माण मानकों, नगर-नियोजन और आपदा प्रबंधन रणनीतियों को पूरी तरह बदल देगा.

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