कौन हैं हरिशंकर और विनय शंकर तिवारी? बाप-बेटे का ऐसे रहा विवादों से नाता
ED Raids SP Leader: सोमवार को ईडी ने सपा नेता विनय शंकर तिवारी के दस ठिकानों पर छापेमारी की है. वह पूर्व कैबिनेट मंत्री हरिशंकर तिवारी के बेटे है. विनय पर एक बैंक से करोड़ों का लोन लेने और उसे वापस न करने का आरोप है. अब एजेंसी ने उनके खिलाफ एक्शन लिया है. उनका नाम गंगोत्री इंटरप्राइजेज नामक कंपनी जुड़ा है. यह कंपनी पहले भी विवादों में रही है.;
ED Raids SP Leader: केंद्रीय प्रवर्तन निदेशालय यानी ED ने समाजवादी पार्टी के नेता पर बड़ा एक्शन लिया है. सोमवार (7 अप्रैल) को पार्टी के नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री हरिशंकर तिवारी के बेटे विनय शंकर तिवारी के ठिकानों पर छापेमारी की गई. उन पर वित्तीय लेन-देन में गड़बड़ी का आरोप है.
ई़डी ने देश भर में विनय से जुड़े 10 ठिकानों पर रेड मारी. इसमें गोरखपुर, लखनऊ, नोएडा, महाराजगंज, दिल्ली और मुंबई में परिसर भी शामिल हैं. एजेंसी ने उनके खिलाफ चार्जशीट तैयार कर ली है, जो अब कोर्ट में पेश की जाएगी. आरोप है कि एक बैंक से करोड़ों का लोन लेकर उन्होंने वापस नहीं किया.
कौन हैं विनय शंकर तिवारी?
सपा के नेता विनय शंकर तिवारी चिल्लूपार के पूर्व विधायक हैं. वह इसी सीट से बीएसपी के विधायक रह चुके हैं. साल 2021 में विनय ने बीएसपी का साथ छोड़ा और समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए. खास बात यह है कि चिल्लूपार से उनके पिता हरिशंकर 6 बार विधायक चुने गए थे. उनका नाम गंगोत्री इंटरप्राइजेज नामक कंपनी जुड़ा है. यह कंपनी पहले भी विवादों में रही है.
बैंक ऑफ इंडिया ने साल 2023 में कंपनी पर आरोप लगाते कहा था कि उसने गंगोत्री इंटरप्राइजेज ने 200 करोड़ रुपये से ज्यादा का लोन लिया और वापस नहीं किया. उसने रकम को अन्य कंपनियों में ट्रांसफर कर दिया. इसी मामले को लेकर विनय के खिलाफ ईडी ने कार्रवाई की है.
कौन थे हरिशंकर तिवारी?
हरिशंकर तिवारी यूपी के बाहुबली के नेता के रूप में जाने जाते थे. पूर्वांचल के ब्राह्मणों में उनका काफी नाम था. ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने ही यूपी में माफियाराज की शुरुआत की. साल 1997 से 2007 के बीच यूपी में जिस भी पार्टी ने सरकार बनाई. हरिशंकर को कैबिनेट में जरूर जगह मिली. वह 1985 से 2007 तक लगातार चिल्लूपार सीट पर रहे. उन्होंने अपना पहला चुनाव 1985 में लड़ा था.
हरिशंकर ने 70 के दशक के जेपी आंदोलन का हिस्सा रहे. गोरखपुर यूनिवर्सिटी से राजनीति की पढ़ाई की. कॉलेज के दिनों में उनकी और वीरेंद्र प्रताप शाही की काफी दुश्मनी थी. फिर उन्होंने राजनीतिक में आने का फैसला लिया. पहले चुनाव में जीत के बाद उनका राजनीतिक करियर चमक गया. साल 2023 में उनका निधन हो गया था.