दलितों के दिल तक कौन पहुंचेगा, अंबेडकर जयंती पर योगी-अखिलेश का क्या है नया प्लान?

अंबेडकर जयंती से पहले उत्तर प्रदेश में दलित वोट बैंक को लेकर BJP और सपा के बीच सियासी जंग तेज हो गई है. राणा सांगा विवाद और PDA गठबंधन के साये में दोनों दल दलितों को लुभाने में जुटे हैं. योगी सरकार ने 'अंबेडकर सम्मान अभियान' शुरू किया तो वहीं अखिलेश यादव ने कांशीराम और संविधान का हवाला देकर सियासी संदेश दिया.;

( Image Source:  X/yadavakhilesh )
Curated By :  नवनीत कुमार
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उत्तर प्रदेश की राजनीति में दलित वोटर्स की अहमियत हमेशा से रही है, लेकिन राणा सांगा पर सपा सांसद के विवादित बयान के बाद ये मुद्दा एक बार फिर केंद्र में आ गया है. अंबेडकर जयंती के मौके पर बीजेपी और समाजवादी पार्टी दोनों दल इस वोट बैंक को साधने के लिए पूरी ताकत झोंक चुके हैं. जहां एक ओर भाजपा ने ‘अंबेडकर सम्मान अभियान’ की शुरुआत की है, वहीं सपा ने बसपा संस्थापक कांशीराम की विरासत को दोहराते हुए दलितों से अपने संबंधों को मजबूत करने की कोशिश की है.

रामजी लाल सुमन का बयान, जिसमें उन्होंने राणा सांगा को 'गद्दार' बताया था, क्षत्रिय समुदाय में भयंकर नाराज़गी का कारण बन गया. करणी सेना जैसे संगठन आगरा में सुमन के घर पर हमला कर चुके हैं, जिससे सियासी पारा चढ़ गया. इस घटना ने दलितों और राजपूतों के बीच जातीय तनाव की आशंका बढ़ा दी है, जिसे दोनों प्रमुख पार्टियां अपने-अपने तरीके से सियासी लाभ में बदलना चाहती है.

दलित वोटर्स को लुभा रही बीजेपी

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक 15 दिवसीय "अंबेडकर सम्मान अभियान" लॉन्च किया है, जिसमें पार्टी कार्यकर्ताओं को गांव-गांव जाकर सरकार की दलित-हितैषी योजनाओं को प्रचारित करने का जिम्मा दिया गया है. उन्होंने यह भी कहा कि विपक्षी पार्टियां दलितों को गुमराह कर रही हैं और बीजेपी अब हर गलत नैरेटिव को खत्म करेगी. खासतौर पर 2024 में लोकसभा चुनावों में दलित वोटर्स की नाराज़गी की भरपाई अब विधानसभा चुनाव से पहले की जा रही है.

सियासी संदेश देना चाहती है सपा

उधर समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने इटावा में डॉ. अंबेडकर की प्रतिमा का अनावरण कर सियासी संदेश देने की कोशिश की. उन्होंने अपनी पार्टी को कांशीराम की विरासत से जोड़ते हुए दावा किया कि बसपा के उदय में सपा की भूमिका अहम रही है. अखिलेश ने राणा सांगा विवाद पर कहा कि रामजी लाल सुमन पर हुआ हमला दरअसल 'पीडीए' (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) गठबंधन को तोड़ने की साज़िश है. अखिलेश यादव ने हाल ही में संविधान पर आधारित एक कार्यक्रम में बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा कि "हम संविधान को बदलने नहीं देंगे." उन्होंने आंबेडकर को भारतीय लोकतंत्र का स्तंभ बताया और कहा कि भाजपा की नीतियां संविधान के मूलभूत सिद्धांतों के खिलाफ हैं.

दलित नेता साइकिल पर हुए सवार

इस पूरे घटनाक्रम के बीच दलित नेता दद्दू प्रसाद का सपा में शामिल होना एक अहम संकेत है. बसपा के पूर्व संस्थापक सदस्य रहे दद्दू प्रसाद ने अखिलेश यादव की मौजूदगी में पार्टी जॉइन कर सपा की दलित समीकरणों को साधने की रणनीति को बल दिया है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उत्तर प्रदेश में दलित वोटरों की संख्या करीब 21% है, और 2025 के विधानसभा चुनाव में ये समुदाय किंगमेकर की भूमिका निभा सकता है. ऐसे में सपा और बीजेपी की यह ‘दलित डिप्लोमेसी’ सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि आने वाले चुनावों के लिए बेहद निर्णायक है.

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