अयोध्या से कोरिया: राम से जुड़ी है महारानी ‘हो’ की दिल को छूने वाली कहानी, जब सुरीरत्ना बनी कोरिया की रानी
Queen Ho's Memorial Park : उत्तर प्रदेश के अयोध्या से कोरिया तक 2000 साल पुरानी ऐतिहासिक कहानी आज भी हो स्मृति पार्क जीवंत है. यह कहानी है कि कोरिया की महारानी ‘हो ह्वांग-ओक’ (Heo Hwang-ok) की. भगवान राम के वंश से जुड़ी भारतीय राजकुमारी कैसे बनीं कोरिया की महारानी ‘हो’? जानिए दिल को छू लेने वाली इस कहानी पूरी दास्तान.;
कहते हैं न कि इतिहास कभी-कभी किताबों में नहीं, बल्कि लोककथाओं, स्मृतियों और संस्कृतियों के बीच सांस लेता है. ऐसा ही एक रिश्ता है, भारत की अयोध्या यानी राम के वंशज और दक्षिण कोरिया की महारानी रही 'हो' के बीच की. यह एक रिश्ता है जो 2000 साल पहले एक राजकुमारी की समुद्री यात्रा से जुड़ा है. वही, राजकुमारी जो दक्षिण कोरिया पहुंचने के बाद बन गईं वहां की महारानी.
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कोरिया की इस महारानी का नाम था ‘हो ह्वांग-ओक’ (Heo Hwang-ok), जिनके बारे में माना जाता है कि वे अयोध्या की राजकुमारी थीं. वह विवाह के बाद कोरिया जाकर वहां की पहली रानी बनीं. आज भी कोरिया में लाखों लोग खुद को ‘हो’ और ‘किम’ वंश का उत्तराधिकारी मानते हैं. अपने मूल की जड़ें भारत, खासकर राम की नगरी अयोध्या से जोड़ते हैं.
तो कौन थीं महारानी ‘हो’?
क्या सच में अयोध्या से कोरिया तक गई थी एक भारतीय राजकुमारी? फिर, कैसे बना यह रिश्ता, जो दो सभ्यताओं को आज भी जोड़ता है? दरअसल, कहानी की शुरुआत होती है प्राचीन भारत के इतिहास से. अयोध्या नगरी से, जिसे उस समय ‘अयुत्था’ कहा जाता था. लोक कथाओं के अनुसार, अयोध्या के राजा की एक पुत्री थी 'सुरीरत्ना' (रत्नावती). वह सिर्फ सुंदर नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और साहसी भी थीं.
एक रात उन्हें क्या आया 'सपना'
अयोध्या राजकुमारी 'सुरीरत्ना' (रत्नावती) को एक रात सपना आया, 'समुद्र पार एक देश में एक राजा तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है वही तुम्हारा भाग्य है.”
बस क्या था, इस सपने को देखने के बाद राजकुमारी चिंतित रहने लगीं. कहा जाता है कि सुरीरत्ना ने जहाज से समुद्र पार किया, अपने साथ कुछ भारतीय वस्तुएं, बौद्ध प्रतीक और एक पवित्र पत्थर (नवग्रह शिला) भी ले गईं, जो आज भी कोरिया में पूजनीय मानी जाती है. कई महीनों की यात्रा के बाद रत्नावती वहां पहुंचीं. राज्य (Gaya Kingdom), जो आज के दक्षिण कोरिया का हिस्सा है.
कोरिया की पहली महारानी
अब इसे संयोग कहें या कुछ और, गाया के राजा किम सूरो (King Suro) ने भी स्वप्न में उसी राजकुमारी को देखा था.
दोनों के सपनों ने जब साकार रूप लिया, तो हुआ एक ऐतिहासिक विवाह. विवाह के बाद राजकुमारी हो गई, महारानी ‘हो ह्वांग-ओक’ (Queen Heo Hwang-ok). इस तरह भारत की बेटी बनी कोरिया की महारानी.
वंश और विरासत
इस विवाह से जन्मे 12 पुत्र, जिनमें से 10 ने किम वंश की नींव रखी. 2 ने हो (Heo) वंश की. आज कोरिया में 60 लाख से ज्यादा लोग खुद को उन्हीं वंशों से जोड़ते हैं और मानते हैं कि उनके पूर्वज भारत से आए थे.
अयोध्या में आज भी मौजूद है उनकी स्मृति
अयोध्या में ‘महारानी हो स्मारक’ मौजूद है, जहां हर साल कोरियाई प्रतिनिधिमंडल श्रद्धांजलि देने आता है. 2001 में कोरिया की प्रथम महिला ने भी अयोध्या आकर इस रिश्ते को आधिकारिक सम्मान दिया.
सिर्फ कहानी नहीं, सांस्कृतिक पुल भी
आज भारत–कोरिया संबंधों में योग, बौद्ध धर्म, व्यापार और
सांस्कृतिक आदान–प्रदान का अहम योगदान है. इन सबके पीछे इस ऐतिहासिक रिश्ते की गहरी छाया दिखती है. ऐसा हो भी क्यों नहीं. यह कहानी सिर्फ एक राजकुमारी की नहीं, यह कहानी है सभ्यताओं के संवाद की, जहां तलवार नहीं, सपने और संस्कृति साथ लेकर गई एक बेटी, जो अयोध्या से चली और कोरिया की मां बन गई.
उनकी याद में अयोध्या में है 'हो' स्मृति पार्क
यूपी के अयोध्या में स्थापित महारानी 'हो' का स्मृति पार्क भारत और कोरिया के प्राचीन संबंधों की याद दिलाता है. यह पार्क न केवल ऐतिहासिक स्मृति स्थल है, बल्कि दोनों देशों के बीच मित्रता, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और विश्वास का प्रतीक भी बन गया है. महारानी 'हो' की स्मृति को संजोने के मकसद से साल 1999 में अयोध्या में इस पार्क का शिलान्यास किया गया था.
यह पार्क अयोध्या के सरयू तट पर स्थित कोरियाई रानी 'हो' पार्क में रानी 'हो' की 12 फुट ऊंची और 1300 किलोग्राम वजन की प्रतिमा के लोकार्पण के साथ इसका संचालन शुरू हो गया. यह प्रतिमा अयोध्या-कोरिया के बीच हजारों वर्ष पुराने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों की प्रतीक मानी जा रही है. कांसे से निर्मित लगभग 12 फीट ऊंची यह प्रतिमा अपनी भव्यता और उत्कृष्ट कलात्मकता से लोगों का ध्यान आकर्षित कर रही है. इस प्रतिमा में महारानी 'हो' के व्यक्तित्व और गरिमा को प्रभावशाली ढंग से उकेरा गया है.
अयोध्या में स्थापित रानी हो की प्रतिमा की खासियत यह है कि इसे दक्षिण कोरिया में बनाया गया. इसे समुद्री मार्ग के माध्यम से भारत लाने में करीब 15 दिन का समय लगा. इस प्रतिमा के निर्माण में लगभग 15 दिन का समय और लगभग 15 लाख रुपए की लागत आई.
अयोध्या के महापौर महंत गिरीश पति त्रिपाठी के मुताबिक महारानी हो की प्रतिमा दोनों देशों के बीच मित्रता, विश्वास और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है. इस ऐतिहासिक पहल से अयोध्या न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक नगरी के रूप में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक विरासत केंद्र के रूप में अपनी पहचान को और सशक्त कर रही है.