इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रेप के आरोपी को को किया रिहा, कहा- शादी करो और लड़की को अच्छी जिंदगी देना
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दुष्कर्म के मामले में एक आरोपी को रिहा कर दिया है. अदालत ने इस आदेश के साथ आरोपी को जमानत दी है कि वह जेल से रिहा होने के बाद वह पीड़िता से शादी कर उसके बच्चे की भी देखभाल करेगा. यही नहीं, आरोपी को 2 लाख रुपये की एफडी कराने का भी आदेश दिया है;
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बलात्कार के आरोपी व्यक्ति को इस शर्त पर जमानत दी है कि जेल से रिहा होने के बाद वह पीड़िता से तीन महीने के भीतर शादी करेगा और उसकी और नवजात शिशु की देखभाल करेगा. इतना ही नहीं बच्चे के नाम 2 लाख रुपये की एफडी करवाने का भी आदेश दिया गया है. आरोपी पर यह इल्जाम है कि उसने पीड़िता को शादी करने का जांझा देकर संबंध बनाए थे.
सहारनपुर के थाना चिलकाना में अभिषेक पर पॉक्सो और दुष्कर्म के आरोप में एफआईआर दर्ज कराई गई थी. अभिषेक पर नाबालिग बेटी को धोखा देने और शादी के झूठे वादे के तहत उसके साथ शारीरिक संबंध बनाने का आरोप लगाया गया था. साथ ही, यह दावा किया गया कि पीड़िता 15 साल की है.
इसके बाद पीड़िता गर्भवती हो गई. इस पर आरोपी ने कथित तौर पर शादी के अपने वादे को पूरा करने से इनकार कर दिया और उसे धमकी भी दी. वहीं, आरोपी पर भारतीय दंड संहिता और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO अधिनियम) के तहत बलात्कार का मामला दर्ज किया गया.
पीड़िता के खिलाफ कोई बल प्रयोग नहीं
इस मामले में आरोपी के वकील ने बताया कि मेडिकल रिपोर्ट में पीड़िता की उम्र 18 वर्ष निर्धारित हुई थी. सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज किए गए एक बयान में पीड़िता ने स्पष्ट रूप से कहा कि उसके खिलाफ कोई बल प्रयोग नहीं किया गया था. इस पर आरोपी व्यक्ति ने कहा कि वह पीड़िता की जिम्मेदारी लेने और उससे शादी करने को तैयार है. वह रिश्ते से पैदा हुई बच्ची की देखभाल करने के लिए भी तैयार है.
न्यायालय ने कही ये बात
न्यायालय ने कहा “चुनौती शोषण के वास्तविक मामलों और सहमति से बने संबंधों के बीच अंतर करने में है. इसके लिए सूक्ष्म दृष्टिकोण और सावधानीपूर्वक न्यायिक विचार की आवश्यकता है ताकि न्याय उचित रूप से दिया जा सके.” किसी व्यक्ति को तब तक निर्दोष माना जाता है, जब तक कि उसे दोषी साबित न कर दिया जाए. इसने आगे कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा गारंटीकृत किसी व्यक्ति के जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार को केवल इसलिए नहीं छीना जा सकता है क्योंकि उस व्यक्ति पर अपराध करने का आरोप है, जब तक कि उसके अपराध को उचित संदेह से परे साबित न कर दिया जाए.