80 युद्ध लड़े और बनवाया लोहागढ़ किला, कौन थे महाराजा सूरजमल, जिनकी मूर्ति लगाने से नागौर में जमकर हो रहा बवाल?

राजस्थान के इतिहास में वीरता और रणनीति के प्रतीक माने जाने वाले महाराजा सूरजमल एक बार फिर सुर्खियों में हैं, लेकिन इस बार वजह उनकी कोई ऐतिहासिक उपलब्धि नहीं, बल्कि नागौर जिले के जोधियासी गांव में लगी उनकी मूर्ति को लेकर बड़ा विवाद है. सोमवार देर रात सार्वजनिक स्थल पर चुपके से स्थापित की गई इस प्रतिमा ने सुबह होते ही पूरे इलाके में तनाव पैदा कर दिया. दो पक्ष आमने-सामने बैठ गए, आरोप–प्रत्यारोप का दौर शुरू हुआ और देखते ही देखते मामला राजनीति, सामाजिक भावनाओं और स्थानीय दबदबे की लड़ाई में बदल गया.;

( Image Source:  Facebook-srmedialive )
Edited By :  हेमा पंत
Updated On : 19 Nov 2025 2:07 PM IST

राजस्थान की धरती पर वीरता की गाथाओं के बीच एक नाम सदियों से चमकता है, महाराजा सूरजमल. 18वीं शताब्दी के इस जाट नरेश के साहस, दूरदर्शिता और रणनीतिक बुद्धिमत्ता का उल्लेख आज भी इतिहास की किताबों से लेकर लोककथाओं तक जीवित है. लेकिन बीते दिनों राजस्थान के नागौर जिले में उनकी मूर्ति को लेकर उठा विवाद एक बार फिर इस महान योद्धा को सुर्खियों के केंद्र में ले आया है.

17 अक्टूबर की रात को जोधियासी गांव के बस स्टैंड पर जब अचानक महाराजा सूरजमल की मूर्ति स्थापित कर दी गई, तो अगली ही सुबह गांव दो गुटों में बंट गया. एक पक्ष ने इसे अपनी पहल बताया, जबकि दूसरा पक्ष इसे राजनीतिक उद्देश्य से जोड़ता दिखा. मामला इतना बढ़ा कि पुलिस बल तैनात करना पड़ा और प्रशासन को हस्तक्षेप करना पड़ा. लेकिन इस पूरी खींचतान के बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर वह सूरजमल कौन थे, जिनकी प्रतिमा आज भी लोगों में इतनी भावनाएं जगा देती है?

कौन थे महाराज सूरजमल?

महाराजा सूरजमल का जन्म 1707 में हुआ था. उन्हें सिर्फ एक राजा नहीं, बल्कि एक ऐसा रणनीतिकार माना जाता है जिसने 18वीं सदी के उत्तर भारत की राजनीति का स्वरूप बदल दिया. उस दौर में जब मुगल साम्राज्य अंदर ही अंदर बिखर रहा था और कई रियासतें संघर्षों में डूबी थीं, तब सूरजमल ने जाट शक्ति को एक संगठित रूप दिया और भरतपुर राज्य की नींव को अटूट बनाया. उनकी नेतृत्व क्षमता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने लगभग 80 से अधिक युद्ध लड़े, जिनमें से ज्यादातर में उन्हें जीत मिली. सूरजमल को युद्ध रणनीति में इतनी महारत हासिल थी कि बड़े से बड़ा विरोधी भी उनकी चालों का सामना करने में घबराता था.

लोहागढ़ किले का करवाया निर्माण

जब विदेशी आक्रमणों और राजनीतिक उथल-पुथल का समय था, तब सूरजमल ने अपनी राज्य की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी. इसी सोच से उन्होंने लोहागढ़ किला बनवाया, एक ऐसा दुर्ग जिसे इतिहास अजेय बताता है. ब्रिटिश सेना ने कई बार इसे भेदने की कोशिश की, लेकिन हर प्रयास नाकाम रहा. किले की मजबूती ही नहीं, उसके निर्माण के पीछे की सोच यह बताती है कि सूरजमल केवल योद्धा ही नहीं, बल्कि एक कुशल प्रशासक और दूरदर्शी शासक भी थे.

आगरा किले पर कब्जा और बढ़ती प्रतिष्ठा

1761 में महाराजा सूरजमल ने मुगल साम्राज्य की कमज़ोर स्थिति का लाभ उठाते हुए आगरा किले पर विजय प्राप्त की. यह वह जीत थी जिसने उन्हें उत्तर भारत की राजनीति का सबसे प्रभावशाली जाट नेता बना दिया. आगरा का नियंत्रण न केवल प्रतीकात्मक रूप से महत्वपूर्ण था, बल्कि आर्थिक रूप से भी बड़ी सफलता साबित हुआ.

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