मतभेद होने का मतलब राजद्रोह नहीं... सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने की बड़ी टिप्पणी

हाईकोर्ट के जस्टिस अरुण मोंगा ने 16 दिसंबर को फैसला सुनाते हुए इस बात पर जोर दिया कि भाषण पर प्रतिबंध लगाने वाले कानूनों को बदलाव किया जाना चाहिए. जज ने कहा, "ऐसे प्रावधानों को लागू करने के लिए भाषण और विद्रोह या अलगाव की संभावना के बीच सीधा संबंध होना चाहिए.";

( Image Source:  canva )
Edited By :  निशा श्रीवास्तव
Updated On : 23 Dec 2024 9:49 AM IST

Rajasthan High Court: राजस्थान हाईकोर्ट ने सिख उपदेशक तेजिंदर पाल सिंह टिम्मा पर लगे राजद्रोह के आरोप मामले पर सुनवाई की. कोर्ट ने कहा कि किसी बात पर असहमति को राजद्रोह या राष्ट्र-विरोधी अपराध के बराबर नहीं माना जा सकता. टिम्मा पर पर सोशल मीडिया पोस्ट के माध्यम से भारत की एकता और संप्रभुता को खतरे में डालने के आरोप लगाए गए थे.

जानकारी के अनुसार, हाईकोर्ट के जस्टिस अरुण मोंगा ने 16 दिसंबर को फैसला सुनाते हुए इस बात पर जोर दिया कि भाषण पर प्रतिबंध लगाने वाले कानूनों को बदलाव किया जाना चाहिए. जज ने कहा, "ऐसे प्रावधानों को लागू करने के लिए भाषण और विद्रोह या अलगाव की संभावना के बीच सीधा संबंध होना चाहिए."

भारत की आलोचना का आरोप

शिकायतकर्ती की ओर से टिम्मा के खिलाफ सूबत के तौर पर ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग पेश किए गए थे. कोर्ट ने जांच के दौरान पाया कि भाषण में सरकार की आलोचना की गई थी, लेकिन इसमें धारा 152 के तहत अपराध की श्रेणी में आने के लिए आवश्यक मानसिक कारण का अभाव था. जस्टिस मोंगा ने कहा कि "वैध असहमति या आलोचना को राजद्रोह या राष्ट्र-विरोधी कृत्यों के बराबर नहीं माना जा सकता. धारा 152 की व्याख्या यह सुनिश्चित करती है कि संप्रभुता बनाए रखने के बहाने वैध राजनीतिक असहमति को दबाया न जाए." बता दें कि बीएनएस की धारा 152, जो भारत की संप्रभुता और एकता को खतरे में डालने वाले कृत्यों को अपराध मानती है, के तहत जुर्माने के साथ आजीवन कारावास या सात साल तक की जेल की सजा का प्रावधान है.

क्या है मामला?

लखविंदर सिंह ने कुछ समय पहले तेजिंदर पाल सिंह टिम्मा के खिलाफ शिकायत की थी. जिसमें सिंह ने कहा था कि टिम्मा ने फेसबुक और व्हाट्सएप पर न्यायिक हिरासत में बंद सांसद अमृतपाल सिंह के प्रति सहानुभूति रखने वाली सामग्री शेयर की थी. टिम्मा पर खालिस्तान का समर्थन करने और सार्वजनिक अशांति भड़काने का आरोप लगाया था. टिम्मा पर बीएनएस) की धारा 152 और 197 (1) (सी) के तहत आरोप लगाए गए थे. कोर्ट ने कहा, धारा 152 की व्याख्या "संवैधानिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकारों के साथ की जानी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह लोकतांत्रिक स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं करती है."

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