यहां भगवान कृष्ण को 'सलामी' देकर करबला जाते हैं ताजिए, मध्य प्रदेश के भिंडर में 200 साल पुरानी अनूठी परंपरा
मध्य प्रदेश के दतिया कस्बे में मोहर्रम के जुलूस के दौरान इस बार भी हर साल की तरह एक अनोखी परंपरा देखने को मिली. ताजिया जुलूस करबला के लिए निकलने से पहले चतुर्भुज कृष्ण मंदिर के सामने रुका. ताजिया जुलूस लहराता हुआ मंदिर तक पहुंचा और फिर वहां के पुजारियों ने 'या हुसैन' की सदा के बीच श्रीकृष्ण भगवान को मोहर्रम की सलामी दी.;
मध्य प्रदेश के दतिया जिले के भिंडर कस्बे में इस बार भी मुहर्रम के अवसर पर एक अनोखी और दिल को छू लेने वाली परंपरा निभाई गई. यहां मुस्लिम समुदाय के ताज़िए करबला की ओर जाने से पहले भगवान चतुर्भुज कृष्ण को 'सलामी' अर्पित करते हैं. यह कोई एक-दो साल की बात नहीं, बल्कि दो सदियों से चली आ रही एक जीवंत मिसाल है, जो भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब को दर्शाती है.
मुस्लिम परिवार ने बनवाया था कृष्ण मंदिर
भिंडर के चतुर्भुज कृष्ण मंदिर का इतिहास भी इस सांस्कृतिक सौहार्द को और गहराई से दर्शाता है. मंदिर करीब 200 साल पुराना है और इसे एक मुस्लिम परिवार हजारी परिवार ने बनवाया था. इस मंदिर की मूर्ति भी इसी परिवार को तालाब (सोंतालाई) से मिली थी. इसके बाद उन्होंने इस स्थान को चतुर्भुज महाराज का मंदिर बनवाया और सेवा शुरू की.
सलामी के बाद बढ़ते हैं ताजिए
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार भिंडर करबला कमेटी के अध्यक्ष अब्दुल जब्बार बताते हैं, "इस बार हमारे पास 37 ताज़िए थे. अंतिम दिन, ताज़िए पहले मंदिर के सामने से गुजरते हैं और वहां 'सलामी' देते हैं. मंदिर के पुजारी बाहर आते हैं और ताज़ियों को आशीर्वाद देते हैं. इसके बाद ही जुलूस आगे बढ़ता है."
मूर्ति नहीं उठती थी बिना हजारी परिवार के
इस परंपरा से जुड़ी एक लोककथा भी स्थानीय लोगों के बीच काफ़ी प्रसिद्ध है. अब्दुल जब्बार बताते हैं कि जब भी मंदिर की मूर्तियों को 'ग्यारस' पर स्नान के लिए बाहर ले जाया जाता था, तब तक मूर्ति हिलती तक नहीं थी जब तक हज़ारी परिवार का कोई सदस्य मौजूद न हो. एक बार तो परिवार की आख़िरी बुज़ुर्ग महिला को बिस्तर से उठाकर मंदिर लाया गया, तभी जाकर मूर्ति उठाई जा सकी.
पुजारियों की पीढ़ियां करती आई हैं सेवा
मंदिर के पुजारी रमेश पांडा, जो तीसरी पीढ़ी से यहां सेवा कर रहे हैं, बताते हैं, "मेरे नाना जी यहां पुजारी थे, फिर मेरे पिता, और अब मैं हूं. मंदिर की करीब 5 बीघा ज़मीन भी हज़ारी परिवार ने दान की थी. यह मंदिर न सिर्फ़ मुस्लिम परिवार द्वारा बनाया गया, बल्कि कई बार सांप्रदायिक तनाव के दौरान मुस्लिम समुदाय ने खुद आगे आकर इसकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी भी ली."
जब मुसलमानों ने मंदिर की सुरक्षा की
रमेश पांडा एक घटना याद करते हुए बताते हैं, "एक बार इलाके में सांप्रदायिक तनाव फैल गया था. पुलिस आई, लेकिन मुस्लिम समाज के लोगों ने प्रशासन से कहा - आप चिंता मत कीजिए, हम मंदिर की रखवाली करेंगे. और उस दिन कोई फोर्स तैनात नहीं की गई थी."
नज़ीर बनी भिंडर की परंपरा
आज जब देश में अक्सर धार्मिक टकराव की खबरें आती हैं, ऐसे में भिंडर जैसे कस्बे की यह अनोखी परंपरा एक उम्मीद की किरण बनकर सामने आती है. दो धर्मों के बीच यह आपसी सम्मान, विरासत और सहभागिता का प्रतीक है - जहां ताज़िए भगवान कृष्ण को 'सलामी' देते हैं और मंदिर के पुजारी उन्हें आशीर्वाद देते हैं. यह केवल रस्म नहीं, बल्कि एक साझा संस्कृति की गाथा है.
भिंडर की यह परंपरा हमें बताती है कि जब धर्म के नाम पर दीवारें खड़ी होती हैं, तब इतिहास और विरासत मिलकर पुल बनाते हैं. यहां ताज़ियों का कृष्ण मंदिर को सलामी देना सिर्फ़ एक सांस्कृतिक घटना नहीं, बल्कि भारत की विविधता में एकता का प्रतीक है.