पहले इंदौर अब जबलपुर अस्पताल में चूहों का कहर, मानसिक रोग विभाग में 3 मरीज बने शिकार, महिला की कुतर डाली एड़ी
पहले इंदौर और अब जबलपुर में मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल में भी चूहों का आतंक बढ़ रहा है. जहां मानसिक रोग विभाग में भर्ती महिला मरीज की एड़ी चूहों ने कुतर डाली, जिससे मरीज और उसके परिजन दहशत में हैं. मरीज के परिवार वालों का कहना है कि वार्ड में चूहे इतने बढ़ गए है कि रातभर आराम करना भी मुश्किल हो गया है.;
मध्यप्रदेश के सबसे पुराने मेडिकल कॉलेज से आई ये खबर सिर्फ चूहों के आतंक की नहीं बल्कि सिस्टम की सड़े हुए ढांचे की कहानी है. इंदौर में चूहों ने दो मासूमों की जान ले ली और अब जबलपुर के मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल में भी वही मंजर दोहराया गया है.
यहां चूहों ने महिला मरीज की एड़ी कुतर डाली. चूहों के कारण रोगी और उनके परिवार वाले रातभर जागने को मजबूर हैं क्योंकि डर सिर्फ बीमारी का नहीं बल्कि चूहों के हमले का भी है. ये स्थिति सवाल उठाती है कि आखिर मरीजों की जान की सुरक्षा किसके भरोसे है– डॉक्टरों के, प्रबंधन के या फिर किस्मत के.
चूहों ने कुतरी एड़ियां
जबलपुर के मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल के मानसिक रोग विभाग से आई तस्वीरें चिंता बढ़ाने वाली हैं. यहां 25 वर्षीय महिला, 50 वर्षीय महिला और उनका 26 वर्षीय बेटा चूहों के आतंक का शिकार बने. सिहोरा और नरसिंहपुर से आए ये मरीज इलाज कराने पहुंचे थे लेकिन इलाज से ज्यादा उन्हें वार्ड में चूहों से बचना पड़ा. मरीज सरोज मेहरा के बेटे जगदीश का आरोप है कि भर्ती के दो दिन बाद ही उनकी मां को वार्ड में सोते समय चूहों ने एड़ी पर काट लिया. पैरों में लाल निशान बन गए और डॉक्टरों ने मजबूरन तीन इंजेक्शन लगाने पड़े.
मरीजों की बेबसी और डर
पीड़ितों ने बताया कि वार्ड में हालत ऐसी हो गई है कि सोना भी मुश्किल है. मरीजों और उनके परिजनों को हर समय डर सता रहा है कि कब कोई चूहा उनके पास पहुंचकर हमला कर दे. इलाज कराने आए लोग खुद को ज्यादा असुरक्षित महसूस कर रहे हैं. परिजनों का कहना है कि अगर इंदौर की घटना के बाद मेडिकल मैनेजमेंट ने सबक लिया होता तो ऐसी नौबत फिर नहीं आती. लेकिन अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही ही है जिसकी कीमत अब मरीज और उनके परिवार चुका रहे हैं.
प्रशासनिक दावे बनाम जमीनी हकीकत
मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ नवनीत सक्सेना का कहना है कि पूरे मामले से सबक लिया गया है और अब सख्त निगरानी की जा रही है. मानसिक रोग विभाग में पेस्ट कंट्रोल कराया गया है और स्टाफ को सतर्क रहने के निर्देश दिए गए हैं. उनका दावा है कि पर्याप्त सुरक्षा इंतजाम किए जा रहे हैं. लेकिन सवाल ये है कि जब पहले भी लाखों रुपए सुरक्षा व्यवस्था पर खर्च होते हैं, जब 250 निजी गार्ड अस्पताल में तैनात हैं तो फिर ये चूहे वार्ड तक कैसे पहुंच जाते हैं.
70 साल पुरानी इमारत का सच
जबलपुर मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल की इमारत लगभग 70 साल पुरानी है. जगह-जगह दरारों से भरी बिल्डिंग, जर्जर सीवरेज सिस्टम और चारों ओर पसरी गंदगी चूहों के लिए घर बन गई है. अस्पताल का स्ट्रक्चर ही इतना कमजोर हो चुका है कि कोई भी सुरक्षात्मक दावा धराशायी लगता है. विडंबना यह है कि हर महीने लाखों रुपए सुरक्षा पर खर्च किए जाते हैं लेकिन मरीज फिर भी असुरक्षित जीवन जीने को मजबूर हैं.
मरीजों की सुरक्षा पर सवाल
दो बड़े शहरों में लगातार सामने आई घटनाओं ने MP की हेल्थ सिस्टम की पोल खोल दी है. मरीज अस्पताल में इलाज की उम्मीद लेकर आते हैं लेकिन यहां उन्हें बीमारी से ज्यादा बैड के नीचे बिलबिलाते चूहों का खतरा सताने लगता है. सवाल साफ है कि आखिर इस हालात के लिए जिम्मेदार कौन है– लापरवाह प्रशासन, टूटी-फूटी बिल्डिंग या फिर दिखावटी सुरक्षा इंतजाम. जिस अस्पताल पर लोग अपनी जिंदगी का भरोसा रखते हैं, वहां चूहों का राज होना किसी बड़े संकट की चेतावनी है.