ई-कोर्ट बनाने वाले तरलोक सिंह चौहान बने झारखंड के मुख्य न्यायधीश, शिमला से तय किया सफर, जानें पूरी कहानी
झारखंड को नया मुख्य न्यायधीश मिल गया है. जस्टिस तरलोक सिंह चौहान ने 17वें चीफ जस्टिस के रूप में शपथ ली. इस खास मौके पर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी शामिल थे, जिन्होंने आभार व्यक्त किया.;
15 जुलाई को भारत के राष्ट्रपति कार्यालय से उनकी झारखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति की अधिसूचना जारी की गई थी. 23 जुलाई को राजभवन रांची में एक खास मौका था. नए मुख्य न्यायाधीश के रूप में जस्टिस तरलोक सिंह चौहान ने राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार से शपथ ग्रहण की.
इस अवसर पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी मौजूद थे. इस शपथ के साथ ही जस्टिस चौहान झारखंड हाईकोर्ट के 17वें मुख्य न्यायाधीश बन गए हैं. जस्टिस चौहान ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी भारतीय न्यायपालिका का प्रतिनिधित्व किया. चलिए जानते हैं आखिर उन्होंने यहां तक का सफर कैसे तय किया?
शिमला से लेकर झारखंड तक का सफर
जस्टिस तरलोक सिंह चौहान का जन्म 9 जनवरी 1964 को हिमाचल प्रदेश के रोहड़ू में हुआ और उनकी प्रारंभिक पढ़ाई शिमला के बिशप कॉटन स्कूल से हुई, जो देश के जाने-माने स्कूलों में से एक है. आगे चलकर उन्होंने कानून की पढ़ाई के लिए पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ का रुख किया, जहां से उन्होंने लॉ में ग्रेजुएशन किया. 1989 में वह हिमाचल प्रदेश बार काउंसिल में वकील के रूप में शामिल हुए. उन्होंने कानून के सभी क्षेत्रों में काम किया और अपना अनुभव बढ़ाया.
ऐसे बनें जज
साल 2014 में जस्टिस चौहान को हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट का अतिरिक्त न्यायाधीश बनाया गया. उसी साल उन्हें स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त कर दिया गया. जस्टिस चौहान ने अपने करियर में पर्यावरण कानून, बाल कल्याण और न्यायिक सुधारों के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. उन्होंने किशोर न्याय समिति, विधिक सेवा प्राधिकरण, और ई-कोर्ट समिति जैसे कई अहम संस्थानों में नेतृत्व किया. उनके प्रयासों से हिमाचल प्रदेश की न्यायपालिका में डिजिटल सेवाएं, ई-फाइलिंग, और ऑनलाइन केस मैनेजमेंट जैसे कई बड़े बदलाव आए.
न्यायपालिका को आगे ले जाने की उम्मीद
अब सबकी निगाहें जस्टिस चौहान पर टिकी हैं. उनके अनुभव और नेतृत्व से उम्मीद है कि झारखंड हाईकोर्ट में भी डिजिटल न्याय प्रणाली और सुधारों को नई ऊंचाई मिलेगी.