खोपड़ी खाली नहीं है तिवारी जी.....बिजली बिल विवाद पर कोर्टरूम में भिड़े थे वकील और जज, अब लिया गया ये एक्शन
यह पूरा विवाद मूल रूप से बिजली बिल से जुड़ा एक आम मामला था, लेकिन सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों की ज़ुबानी झड़प ने इसे एक बड़ा न्यायिक मुद्दा बना दिया। जहां एक ओर वकील तिवारी का कहना था कि गरीब महिला के साथ इंसाफ होना चाहिए, वहीं जज ने कानून की मर्यादा का हवाला देते हुए कहा कि राहत केवल कानूनी प्रावधानों के तहत ही दी जा सकती है.;
झारखंड हाई कोर्ट में एक मामूली बिजली बिल विवाद का मामला उस वक्त तूल पकड़ गया जब सुनवाई के दौरान वकील और जज के बीच तीखी बहस हो गई. बात इतनी बढ़ी कि अदालत ने वकील महेश तिवारी के खिलाफ अवमानना का मामला (Contempt of Court) दर्ज कर दिया. अब इस पूरे विवाद ने कानूनी हलकों में हलचल मचा दी है.
यह पूरा मामला एक विधवा महिला से जुड़ा है, जिसका घर बिजली बोर्ड ने बकाया राशि के चलते काट दिया था. बिजली बोर्ड के अनुसार, उस महिला पर सवा लाख रुपये से अधिक का बिजली बिल बकाया था. महिला की ओर से वकील महेश तिवारी ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने दलील दी कि महिला आर्थिक रूप से कमजोर है और दिवाली जैसे त्यौहार के समय उसके घर की बिजली काट देना अन्यायपूर्ण है.
कोर्ट में क्या हुआ
सुनवाई जस्टिस राजेश कुमार की सिंगल बेंच में हो रही थी. वकील तिवारी ने कोर्ट से गुहार लगाई कि महिला की स्थिति को देखते हुए कम से कम राशि जमा कराकर उसका बिजली कनेक्शन फिर से जोड़ा जाए. उन्होंने कहा कि महिला 10 से 15 हजार रुपये तक ही दे सकती है और उससे ज्यादा संभव नहीं है. लेकिन जस्टिस राजेश कुमार ने कहा कि कोर्ट कानून के दायरे में बंधा हुआ है और वे नियमों से हटकर राहत नहीं दे सकते. जज ने स्पष्ट किया, 'मैं कोर्ट ऑफ जस्टिस नहीं, बल्कि कोर्ट ऑफ लॉ हूं. मुझे कानून के अनुसार ही चलना होगा.' जस्टिस राजेश कुमार ने आदेश दिया कि महिला को 50 हजार रुपये जमा कराने होंगे, तभी बिजली बोर्ड उसका कनेक्शन दोबारा चालू करेगा.
बहस का टर्निंग पॉइंट
इसी दौरान वकील तिवारी ने कुछ तीखे शब्दों में प्रतिक्रिया दी. उन्होंने कहा, 'मैं अपनी तरह से बहस करूंगा, आपके तरीके से नहीं. कृपया वकीलों को बेइज्जत करने की कोशिश न करें. देश जल रहा है, ज्यूडिशियरी के साथ मैंने 40 साल से प्रैक्टिस की है, सर लिमिट क्रॉस मत करिए.' उनकी इन बातों पर जज ने भी पलटवार किया और कहा, 'तिवारी जी, खोपड़ी खाली करके नहीं बैठे हैं न, खोपड़ी में कुछ है.' यह सुनकर अदालत का माहौल और गरम हो गया. इसके बाद जज ने कहा कि वे हवा में कोई ऑर्डर नहीं दे सकते, हर निर्णय के लिए कानूनी आधार ज़रूरी है. काफी देर की बहस के बाद वकील तिवारी इस बात पर राजी हुए कि महिला 50 हजार रुपये जमा करा देगी, जिसके बाद अदालत ने बिजली कनेक्शन बहाल करने का आदेश दिया.
अब वकील पर अवमानना का केस
अगले ही दिन, शुक्रवार को चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान की अध्यक्षता में हाई कोर्ट की फुल बेंच (जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद, जस्टिस रोंगन मुखोपाध्याय, जस्टिस आनंद सेन और जस्टिस शंकर प्रसाद) ने वकील महेश तिवारी के खिलाफ क्रिमिनल कंटेम्प्ट (अवमानना) की कार्यवाही शुरू कर दी. अब इस मामले की अगली सुनवाई 11 नवंबर 2025 को निर्धारित की गई है. कानूनी विशेषज्ञों के मुताबिक, अदालत की गरिमा और न्यायपालिका की प्रतिष्ठा बनाए रखना हर वकील की जिम्मेदारी होती है. कोर्ट में असहमति जाहिर करना गलत नहीं है, लेकिन जज से ऊंची आवाज़ में या अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल Contempt of Court के दायरे में आता है.