झारखंड की बेटी ने चीन में मचाया धमाल, श्रेया कुमारी ने जीता वर्ल्ड वुशु कुंग फू चैंपियनशिप में तीसरा स्थान, अब गोल्ड की है तैयारी
झारखंड की प्रतिभाशाली बेटी श्रेया कुमारी ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर देश का नाम रोशन किया है. चीन में आयोजित वर्ल्ड वुशु कुंग फू चैंपियनशिप में श्रेयास ने शानदार प्रदर्शन करते हुए तीसरा स्थान हासिल किया. यह उपलब्धि न केवल उनके लिए गर्व की बात है, बल्कि पूरे राज्य और देश को भी उनकी मेहनत और हौसले पर गर्व है.;
झारखंड के एक छोटे से गांव की साधारण-सी लड़की जब चीन के इंटरनेशनल कॉम्पिटिशन में भारत का प्रतिनिधित्व करती है, तो यह किसी चमत्कार से कम नहीं लगता. लेकिन यह करिश्मा हुआ है श्रेया कुमारी की लगन, मेहनत और आत्मविश्वास की वजह से.
चीन में 14 से 20 अक्टूबर तक आयोजित 10वीं वर्ल्ड वुशु कुंग फू चैंपियनशिप में श्रेया ने शानदार प्रदर्शन करते हुए तीसरा स्थान हासिल किया, और तिरंगे को अंतरराष्ट्रीय मंच पर लहराया.
संघर्ष की ज़मीन से उड़ान की ओर
श्रेया का जीवन आसान नहीं रहा. उनके पिता सुखदेव उरांव एक साधारण किसान हैं, जो दिन-रात खेतों में मेहनत करके परिवार का गुजारा करते हैं. लेकिन एक पिता का सपना था कि बेटी बड़ी बने और इस सपने को श्रेया ने अपनी आंंखों में बसाया. खेती कर उन्होंने अपनी बेटी की हर जरूरत पूरी की. मगर सुखदेव उरांव ने कभी हार नहीं मानी, और न ही श्रेया ने.
जीत पर क्या बोलीं श्रेया कुमारी
आज श्रेया की सफलता पर उनके गांव में जश्न का माहौल है. श्रेया ने जीत पर कोच, परिवार और दोस्तों को धन्यवाद कहा. वह खुद मानती हैं कि खेल में आगे बढ़ने के लिए सही गाइडेंस और सपोर्ट बेहद ज़रूरी है.उन्होंने कहा कि 'भारत में वुशु जैसे खेलों के लिए अभी सुविधाएं कम हैं, लेकिन अब बदलाव दिख रहा है. अगर खिलाड़ियों को अच्छी ट्रेनिंग और सपोर्ट मिले, तो भारत इस खेल में कई स्वर्ण पदक जीत सकता है.'
गोल्ड मेडल और नया इतिहास रचना लक्ष्य
तीसरा स्थान जीतने के बाद भी श्रेया ने रुकना नहीं चुना. उनका अगला लक्ष्य अब गोल्ड मेडल है. श्रेया कुमारी की यह कहानी सिर्फ उनकी नहीं, बल्कि उन सभी भारतीय युवाओं की प्रेरणा है जो सीमित साधनों के बावजूद सपने देखने की हिम्मत रखते हैं. उन्होंने यह साबित किया है कि अगर इरादा मजबूत हो, तो मिट्टी से भी सोना बन सकता है.
चीन में मिली बड़ी जीत, बढ़ा भारत का मान
वुशु चैंपियनशिप में दुनिया भर के दिग्गज खिलाड़ी उतरे थे. चीन जैसे देशों की टीमों को हराना आसान नहीं था. लेकिन श्रेया ने अपने दमदार प्रदर्शन से सबका ध्यान अपनी ओर खींच लिया. कठिन मुकाबलों के बावजूद उन्होंने अपना आत्मविश्वास बनाए रखा और अंत तक हार नहीं मानी. तीसरा स्थान भले ही गोल्ड न हो, लेकिन श्रेया के लिए यह जीत किसी स्वर्ण पदक से कम नहीं थी.