19 साल की कातिल बेटी ने पूरे घर को उतारा था मौत के घाट, अब 24 साल बाद हो सकती है रिहाई; क्‍या थी वो खौफनाक वारदात?

हरियाणा के अपराध इतिहास में कुछ मामले ऐसे हैं, जिनका जिक्र होते ही रूह कांप जाती है. पुनिया परिवार हत्याकांड उन्हीं में से एक है. 24 साल पहले जिस वारदात ने पूरे प्रदेश को दहला दिया था, वह एक बार फिर सुर्खियों में है. पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के हालिया फैसले ने न सिर्फ इस जघन्य अपराध की फाइलें दोबारा खोल दी हैं, बल्कि उस रात की खौफनाक यादों को भी फिर से ज़िंदा कर दिया है, जब एक आलीशान हवेली कब्रगाह में बदल गई थी.;

( Image Source:  AI SORA )
Edited By :  हेमा पंत
Updated On : 17 Dec 2025 4:19 PM IST

हिसार के अपराध इतिहास में शायद ही कोई ऐसा मामला हो, जिसने समाज को उतना झकझोर कर रख दिया हो जितना पुनिया परिवार हत्याकांड ने. महज 19 साल की उम्र में जिस बेटी पर अपने ही विधायक पिता समेत पूरे परिवार को मौत के घाट उतारने का आरोप लगा, वह कहानी आज भी रोंगटे खड़े कर देती है.

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23 अगस्त 2001 की उस खौफनाक रात को जन्मदिन का जश्न पल भर में कत्लेआम में बदल गया और एक आलीशान हवेली आठ लाशों से भर गई. अब, 24 साल बाद कोर्ट से मिली ताजा राहत के चलते इस सनसनीखेज हत्याकांड की मुख्य दोषी सोनिया पुनिया की रिहाई की संभावना ने एक बार फिर इस दिल दहला देने वाले अपराध को सुर्खियों में ला खड़ा किया है.

हाई कोर्ट के फैसले ने फिर जगा दिया पुराना जख्म

पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने पुनिया परिवार के आठ सदस्यों की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे सोनिया पुनिया और उसके पति संजीव कुमार को बड़ी कानूनी राहत दी है. अदालत ने हरियाणा सरकार के उस फैसले को निरस्त कर दिया, जिसमें दोनों की समय से पहले रिहाई की मांग को खारिज किया गया था. हाई कोर्ट ने मामले पर नए सिरे से विचार करने के निर्देश देते हुए दोनों को अंतरिम जमानत भी मंजूर कर ली है. इस आदेश के बाद संजीव कुमार जेल से रिहा हो चुका है, जबकि सोनिया पुनिया फिलहाल जेल में है, लेकिन उसके भी जल्द बाहर आने की संभावना जताई जा रही है.

वो रात, जो जन्मदिन से बन गई मौत का जश्न

23 अगस्त 2001 की वह रात धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी. जन्मदिन का जश्न खत्म हो चुका था और 19 साल की सोनिया पुनिया के घर में सन्नाटा पसर गया था. हिसार जिले के उकलाना इलाके में स्थित पूर्व विधायक रेलू राम पुनिया की आलीशान कोठी में सभी सदस्य गहरी नींद में थे. बाहर सब कुछ सामान्य लग रहा था, लेकिन भीतर एक खौफनाक साजिश आकार ले चुकी थी. इसी अंधेरी रात में सोनिया और उसके पति संजीव ने सोते हुए परिवार पर हमला कर दिया. लोहे की छड़ों और डंडों से किए गए बेरहम वारों ने पल-पल में खुशहाल घर को मौत के मंजर में बदल दिया. चीखने-चिल्लाने का मौका तक किसी को नहीं मिला और देखते ही देखते पूरा परिवार एक-एक कर मौत के हवाले कर दिया गया.

एक ही परिवार, आठ लाशें और सन्न रह गया प्रदेश

इस खूनी वारदात ने घर के किसी भी सदस्य को नहीं बख्शा. पूर्व विधायक रेलू राम पुनिया, उनकी दूसरी पत्नी कृष्णा, बेटी प्रियंका, पहली शादी से बेटे सुनील, उसकी पत्नी शकुंतला, सबको एक-एक कर मौत के घाट उतार दिया गया. हैवानियत की हद तब पार हो गई, जब तीन मासूम बच्चों को भी नहीं छोड़ा गया, चार साल का लोकेश, दो साल की शिवानी और गोद में झूल रही महज डेढ़ महीने की प्रीति भी उस रात खामोशी से खत्म कर दी गई. सुबह होते ही जब इस नरसंहार की खबर बाहर आई, तो पूरा हरियाणा सन्न रह गया. लोगों को यकीन ही नहीं हो रहा था कि कोई बेटी और दामाद इस कदर निर्दय होकर अपने ही परिवार का नामो-निशान मिटा सकते हैं.

संपत्ति बना खून-खराबे की जड़

जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी, उस रात के पीछे छिपी साजिश की तस्वीर साफ होने लगी. पुलिस की पड़ताल में सामने आया कि यह कत्लेआम किसी अचानक गुस्से का नतीजा नहीं, बल्कि संपत्ति को लेकर लंबे समय से सुलग रहे पारिवारिक टकराव का अंजाम था. बताया गया कि रेलू राम अपनी करोड़ों की संपत्ति सौतेले बेटे सुनील के नाम करने की तैयारी में थे. यही बात सोनिया के मन में डर बनकर बैठ गई थी. उसे लगने लगा था कि सब कुछ उससे छीना जा रहा है. हत्या से कुछ ही हफ्ते पहले उसने सुनील को खुली धमकी दी थी. पूछताछ के दौरान सोनिया ने खुद यह माना कि संपत्ति के कागजात लगभग तैयार हो चुके थे और उसे अपनी पूरी दुनिया हाथ से निकलती नजर आ रही थी.

मौत की सजा से उम्रकैद तक का लंबा सफर

इस खौफनाक मामले में अदालतों का सफर भी उतना ही लंबा और उतार-चढ़ाव भरा रहा. साल 2004 में ट्रायल कोर्ट ने सोनिया और संजीव को इस जघन्य अपराध का दोषी मानते हुए फांसी की सजा सुना दी. एक साल बाद, 2005 में हाई कोर्ट ने इस फैसले में बदलाव करते हुए मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया. लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई. 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप करते हुए फिर से दोनों के लिए फांसी की सजा बहाल कर दी. आखिरकार 2013 में सालों तक चली कानूनी लड़ाई और दया याचिकाओं के निपटारे में हुई देरी को आधार बनाते हुए सर्वोच्च अदालत ने अंतिम रूप से सजा को उम्रकैद में बदल दिया. इसके बाद जेल के भीतर भी उन्हें कभी-कभार पैरोल और फरलो की राहत मिलती रही, ताकि वे अपने इकलौते बेटे प्रशांत से मुलाकात कर सकें.

रिहाई की उम्मीद के साथ फिर उभरा संपत्ति विवाद

ताजा अदालती फैसले के साथ ही पुनिया परिवार की पुरानी दरारें एक बार फिर खुलने लगी हैं. जैसे ही राहत की खबर सामने आई, संपत्ति को लेकर दबा हुआ विवाद फिर सतह पर आ गया. सोनिया पुनिया ने जेल की चारदीवारी के भीतर से ही जिला विधिक सेवा प्राधिकरण को पत्र भेजकर अपने पिता की संपत्तियों पर अपना हक जताया है. दूसरी ओर, रेलू राम के भाई राम सिंह के बेटे जितेंद्र पुनिया ने इस दावे को सिरे से खारिज कर दिया. उन्होंने खुद को परिवार का वैध कानूनी वारिस बताते हुए सोनिया के अधिकार पर सवाल खड़े कर दिए हैं. इस तरह, एक खौफनाक अपराध की कहानी अब एक नई कानूनी जंग की ओर बढ़ती नजर आ रही है.

कानून क्या कहता है?

कानूनी विशेषज्ञों का साफ कहना है कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत किसी हत्या के दोषी व्यक्ति को संपत्ति का वारिस बनने का अधिकार नहीं मिलता. ऐसे में सोनिया के दावे पर लंबी कानूनी लड़ाई तय मानी जा रही है. पुनिया परिवार हत्याकांड सिर्फ एक आपराधिक मामला नहीं, बल्कि लालच, सत्ता और संपत्ति की उस भयावह कहानी का प्रतीक है, जिसमें रिश्तों की कोई कीमत नहीं रह जाती. 24 साल बाद भी यह मामला यही सवाल छोड़ जाता है कि क्या इंसान सच में सब कुछ पाने की चाह में अपने ही खून को मिटा सकता है?

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