दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला, घरेलू हिंसा का केस सिर्फ साथ रहने वालों पर ही बनता है, दूर रहने वाले रिश्तेदार आरोपी नहीं
हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि महिला के पति पर मुकदमा जारी रहेगा, क्योंकि वह महिला के साथ साझा आवास में रह रहा था. पति के खिलाफ घरेलू हिंसा के अतिरिक्त गुज़ारा भत्ता याचिका भी लंबित है, जो इस कानून के तहत स्वाभाविक रूप से बनती है.;
दिल्ली हाईकोर्ट ने घरेलू हिंसा से जुड़े मामलों को लेकर एक बेहद महत्वपूर्ण और साफ़ संदेश देने वाला निर्णय सुनाया है, जो ऐसे मामलों में कानूनी दायरे की स्पष्टता को स्थापित करता है. जस्टिस मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की एकल पीठ ने कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 की व्याख्या के अनुसार, केवल एक ही घर या छत के नीचे रहने वाले व्यक्तियों के खिलाफ ही घरेलू हिंसा का मामला दर्ज किया जा सकता है. ऐसे लोग जो अलग-अलग घरों में रहते हैं या जिनका साझा निवास नहीं है, उन्हें इस कानून के तहत आरोपी नहीं बनाया जा सकता.
इस मामले में एक महिला ने अपनी सास, देवर और देवरानी को घरेलू हिंसा का आरोपी बनाए जाने की मांग की थी. याचिकाकर्ता महिला की शादी साल 2001 में हुई थी, और उसका आरोप था कि शादी के तुरंत बाद से ही उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया जाने लगा. उसने यह भी कहा कि उसकी एक बेटी है और समय के साथ ससुराल वालों की प्रताड़ना में इज़ाफा होता गया. हालांकि, महिला ने अपनी याचिका में यह स्वीकार भी किया कि वह कई साल पहले अपने पति से अलग हो चुकी है और सास, देवर और देवरानी लंबे समय से अलग घर में रह रहे हैं. बावजूद इसके उसने इन सभी के खिलाफ 2022 में कड़कड़डूमा फैमिली कोर्ट में घरेलू हिंसा की शिकायत दर्ज कराई.
क्या था कोर्ट का फैसला
फैमिली कोर्ट ने सुनवाई के बाद यह कहा कि सास, देवर और देवरानी के खिलाफ घरेलू हिंसा का मामला नहीं बनता क्योंकि वे महिला के साथ एक ही घर में नहीं रहते थे. इसी फैसले को महिला ने दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, लेकिन हाईकोर्ट ने भी फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा. जस्टिस अरोड़ा ने कहा, 'कोई भी रिश्ता चाहे जितना भी करीबी क्यों न हो, जब तक उस व्यक्ति का भुक्तभोगी महिला के साथ शेयर निवास नहीं है, तब तक घरेलू हिंसा कानून की धाराओं के अंतर्गत उस पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता.
पति पर चलेगा मुकदमा
हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि महिला के पति पर मुकदमा जारी रहेगा, क्योंकि वह महिला के साथ साझा आवास में रह रहा था. पति के खिलाफ घरेलू हिंसा के अतिरिक्त गुज़ारा भत्ता याचिका भी लंबित है, जो इस कानून के तहत स्वाभाविक रूप से बनती है. कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता महिला द्वारा अलग रह रहे रिश्तेदारों को घसीटने की कोशिश अनुचित है. अगर कोई लंबे समय से अलग घर में रह रहा है, और उसका महिला के साथ प्रत्यक्ष जीवन संपर्क नहीं है, तो केवल संबंधों के आधार पर उस पर आरोप मढ़ना न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग माना जा सकता है.
क्या कहता है घरेलू हिंसा अधिनियम?
घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 की धारा 2(s) में यह साफ़ तौर पर उल्लेखित है कि 'साझा घरेलू जीवन' (Shared Household) वाले लोग ही इस कानून के अंतर्गत उत्तरदायी हो सकते हैं। ऐसे में सास, देवर, देवरानी जैसे रिश्तेदार, जो अलग घरों में रहते हैं, इस कानून की परिभाषा में प्रत्यक्ष आरोपी नहीं माने जा सकते.