1956 से पहले मरने वाले पिता की संपत्ति में बेटियों का कोई अधिकार नहीं, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का बड़ा फैसला
न्यायमूर्ति व्यास ने अपने फैसले में मिताक्षरा कानून (Mitakshara Law) के प्रावधानों को विस्तार से समझाया कि 1956 से पहले मिताक्षरा कानून के तहत, अगर किसी हिंदू व्यक्ति की मृत्यु हो जाती थी, तो उसकी व्यक्तिगत संपत्ति उसके बेटों को मिलती थी. लेकिन अब कानून में बदलाव के बाद उसे संपत्ति नहीं मिल सकती.;
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है जो हिंदू परिवारों में पैतृक संपत्ति (Ancestral Property) को लेकर बेटियों के अधिकारों को स्पष्ट करता है. कोर्ट ने कहा है कि अगर किसी हिंदू व्यक्ति की मृत्यु 1956 में लागू हुए हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (Hindu Succession Act, 1956) से पहले हो गई थी, तो उसकी बेटी पैतृक संपत्ति में हिस्सा नहीं मांग सकती. यह फैसला न्यायमूर्ति नरेंद्र कुमार व्यास ने 13 अक्टूबर 2025 को सुनाया. यह फैसला रगमनिया (मृतक) बनाम जगमेट और अन्य मामले में आया, जिसमें बेटी ने अपने पिता की संपत्ति में हिस्सेदारी का दावा किया था.
बता दें कि यह फैसला उस वक्त आया जब सरगुजा जिले की रहने वाली रगमनिया नाम की महिला ने साल 2005 में सिविल कोर्ट में मुकदमा दायर किया था. उसका कहना था कि उसके पिता सुधीन की संपत्ति पैतृक है, इसलिए उसमें उसका भी हिस्सा बनता है. लेकिन अदालत ने यह पाया कि रगमनिया के पिता की मृत्यु 1950-51 के बीच में हुई थी यानी हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 लागू होने से पहलेइसलिए उसका मामला पुराने मिताक्षरा कानून (Mitakshara Law) के तहत आएगा.
पहले ही खारिज हो चुका था दावा
रगमनिया का दावा पहले ट्रायल कोर्ट और अपीलीय अदालत दोनों ने खारिज कर दिया था. उन्होंने कहा था कि 1956 का कानून पुराने मामलों पर लागू नहीं हो सकता, क्योंकि यह कानून पूर्वव्यापी प्रभाव (retrospective effect) से लागू नहीं होता. अब छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने भी उन्हीं अदालतों के फैसले को सही ठहराया और साफ कर दिया कि रगमनिया को संपत्ति में कोई हिस्सा नहीं मिलेगा.
हाईकोर्ट का स्पष्ट फैसला
हाईकोर्ट ने कहा, 'चूंकि रगमनिया के पिता की मृत्यु 1956 से पहले ही हो चुकी थी, इसलिए इस मामले में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के प्रावधान लागू नहीं होंगे. यह मामला पूरी तरह से पुराने मिताक्षरा कानून के तहत तय किया जाएगा.' कोर्ट ने यह भी कहा कि उत्तराधिकार का अधिकार तभी लागू होता है जब पिता की मृत्यु अधिनियम लागू होने के बाद हो. 1956 से पहले जिन लोगों की मृत्यु हो चुकी थी, उनकी संपत्ति के बंटवारे में पुराने मिताक्षरा सिद्धांत ही मान्य होंगे.
सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का भी हवाला
अपने फैसले को और मजबूत करने के लिए हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के दो पुराने फैसलों का भी जिक्र किया. अर्शनूर सिंह बनाम हरपाल कौर (2020) और अरुणाचला गौंडर बनाम पोन्नुसामी (2022), इन दोनों मामलों में भी सर्वोच्च अदालत ने यही कहा था कि 1956 से पहले हुई मौतों पर नया कानून लागू नहीं होगा.
क्या कहता है मिताक्षरा कानून?
न्यायमूर्ति व्यास ने अपने फैसले में मिताक्षरा कानून (Mitakshara Law) के प्रावधानों को विस्तार से समझाया. उन्होंने कहा, '1956 से पहले मिताक्षरा कानून के तहत, अगर किसी हिंदू व्यक्ति की मृत्यु हो जाती थी, तो उसकी व्यक्तिगत संपत्ति उसके बेटों को मिलती थी. बेटी को संपत्ति में अधिकार सिर्फ तभी मिलता था, जब परिवार में कोई पुरुष वारिस (जैसे बेटा) मौजूद न हो.' इस मामले में रगमनिया के पिता सुधीन का एक बेटा भी था. इसलिए संपत्ति का अधिकार उसी को मिला, और रगमनिया का दावा कानूनन अमान्य हो गया.
कोर्ट का निष्कर्ष
अंत में हाईकोर्ट ने कहा, 'जब किसी व्यक्ति की मृत्यु 1956 से पहले हुई है, तो उसकी संपत्ति का बंटवारा पुराने मिताक्षरा कानून के अनुसार ही होगा. नया हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम उस पर लागू नहीं हो सकता.' इस प्रकार, कोर्ट ने रगमनिया की अपील को खारिज कर दिया और निचली अदालतों के फैसले को बरकरार रखा.