दूसरे पुरुषों से संबंध रखने वाली पत्नी को भरण-पोषण का नहीं मिलेगा अधिकार, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का बड़ा फैसला
इस मामले में महिला के वकील ने तर्क दिया कि "व्यभिचार में रहना" एक वर्तमान और निरंतर चलने वाली स्थिति होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि दोनों पक्षों ने स्वीकार किया है कि वे आखिरी बार मार्च 2021 तक एक ही घर में रहे थे, जबकि पति अब अपने भाई और भाभी के साथ रह रहा है.;
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने इस महीने की शुरुआत में एक फैसले में महिला की पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी, जिसमें महिला ने अपने पूर्व पति से अधिक भरण-पोषण की मांग की थी. इस मामले की खासियत यह थी कि अदालत ने न केवल महिला की मांग को अस्वीकार किया, बल्कि निचली अदालत द्वारा पहले से दी गई भरण-पोषण की राशि को भी रद्द कर दिया. इस फैसले के जरिए से न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया कि अगर पत्नी का चरित्र ख़राब है, तो वह भरण-पोषण की हकदार नहीं होती.
दरअसल याचिकाकर्ता महिला ने दावा किया कि उसने 2019 में अपने पति के साथ हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार शादी की थी. हालांकि, कुछ सालों बाद उसके ससुराल वालों ने उसे प्रताड़ित करना शुरू कर दिया. खासकर, उसे खाना देने से मना कर दिया गया. इसके अलावा, पति को उस पर किसी और के साथ संबंध होने का संदेह था, जिसके कारण घरेलू विवाद पैदा हुए. अंत में मार्च 2021 में महिला ने अपने पति को छोड़ दिया और उसी महीने तलाक के लिए आवेदन किया. इस आवेदन के बाद लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद सितंबर 2023 में तलाक की मंजूरी मिली.
भरण पोषण में मांगे बीस हजार रुपये
तलाक के बाद महिला ने पिछले साल नवंबर में अपने पूर्व पति से भरण-पोषण की मांग की. उसने दावा किया कि उसके पति की मासिक आय लगभग एक लाख रुपये है, जिसमें वेतन से 25,000 रुपये, किराए से 35,000 रुपये और खेती-बाड़ी से 40,000 रुपये शामिल हैं. महिला ने अपने भरण-पोषण की राशि 20,000 रुपये मांगी, जो कि पारिवारिक अदालत द्वारा पहले दिए गए 4,000 रुपये से कहीं अधिक थी.
पत्नी का भाई संग अवैध संबंध
पति ने महिला के दावों का विरोध करते हुए कहा कि उसकी पत्नी का उसके भाई के साथ अवैध संबंध था. उन्होंने यह भी कहा कि महिला ने बिना उचित कारण के वैवाहिक घर छोड़ दिया था और जब उन्होंने इसका विरोध किया तो महिला ने उनसे झगड़ा किया तथा उन्हें मामले दर्ज कराने की धमकी दी. पति ने अपनी मासिक आय केवल 17,131 रुपये बताई और कहा कि उनके पास अन्य कोई इनकम सोर्स नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि पारिवारिक न्यायालय ने व्यभिचार के आरोपों को पहले ही साबित कर दिया है और इस आधार पर भरण-पोषण का आदेश दिया गया था, जबकि भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125(4) के अनुसार व्यभिचार में रह रही पत्नी को भरण-पोषण का हक नहीं मिलता.
व्यभिचारी जीवन नहीं थी महिला
इस मामले में महिला के वकील ने तर्क दिया कि "व्यभिचार में रहना" एक वर्तमान और निरंतर चलने वाली स्थिति होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि दोनों पक्षों ने स्वीकार किया है कि वे आखिरी बार मार्च 2021 तक एक ही घर में रहे थे, जबकि पति अब अपने भाई और भाभी के साथ रह रहा है. इसलिए, महिला व्यभिचारी जीवन नहीं जी रही थी क्योंकि वह अपने भाई और भाभी के साथ रह रही थी. इस दलील का उद्देश्य यह था कि भरण-पोषण का अधिकार बनाए रखना.
फैमली कोर्ट में सुलझ चुका है मामला
लेकिन छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने पति के पक्ष में फैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा कि फैमली कोर्ट द्वारा पति के पक्ष में दिया गया तलाक का आदेश स्पष्ट रूप से यह दर्शाता है कि पत्नी व्यभिचार में रह रही थी. एक बार ऐसा आदेश लागू हो जाने के बाद, सिविल कोर्ट द्वारा भरण-पोषण के आदेश को जारी रखना संभव नहीं है. न्यायालय ने यह भी कहा कि पति और पत्नी के बीच यह मामला पहले ही फैमली कोर्ट में सुलझ चुका है, जहां व्यभिचार के तथ्य स्थापित हो चुके हैं. इसलिए, उच्च न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि व्यभिचार में रहने वाली पत्नी भरण-पोषण की मांग करने के लिए अयोग्य होती है. अंत इस मामले में महिला की याचिका को खारिज करते हुए निचली अदालत का भरण-पोषण का आदेश भी निरस्त कर दिया गया.