छात्रों को झटका! एक साथ दो कोर्स पढ़ने वालों को छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने सुनाई खरी-खरी, लिया ये फैसला

राज्य सरकार और दोनों विश्वविद्यालयों के वकीलों ने याचिका का कड़ा विरोध किया. उनका कहना था कि परीक्षा कार्यक्रम बनाना विश्वविद्यालय का प्रशासनिक अधिकार है और इसमें दखल देना न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है.;

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Edited By :  हेमा पंत
Updated On : 12 Aug 2025 8:03 PM IST

अक्सर लोग अलग-अलग कॉलेज से डिग्रियां लेते हैं, लेकिन क्या हो जब दोनों यूनिवर्सिटी के एग्जाम एक ही दिन पर हो? इस तरह का एक मामला बिलासपुर से सामने आया है, जहां सत्येन्द्र प्रकाश सूर्यवंशी अपने भविष्य को बेहतर बनाने के लिए दो अलग-अलग विश्वविद्यालयों से एक साथ दो डिग्रियां कर रहे थे. एक तरफ पं. सुंदरलाल शर्मा (ओपन) विश्वविद्यालय से एमएसडब्ल्यू की पढ़ाई, तो दूसरी ओर अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय से एलएलबी (तीसरा साल दूसरा सेमेस्टर) की पढ़ाई कर रहे हैं. 

लेकिन जब परीक्षा का समय आया, तो दोनों विश्वविद्यालयों की चार परीक्षाएं एक ही दिन और समय पर आ गईं. सत्येन्द्र के सामने एक बड़ी दुविधा थी कि अब वह किस परीक्षा में बैठे? इस पर उन्होंने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और अदालत ने छात्र के खिलाफ फैसला लिया. 

कोर्ट में दायर की याचिका

समस्या का समाधान ढूंढते हुए सत्येन्द्र ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. उन्होंने कोर्ट में खुद उपस्थित होकर अपनी बात रखी. सत्येन्द्र ने यूजीसी की अधिसूचना और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि एक-साथ दो डिग्रियां ली जा सकती हैं. इतना ही नहीं, याचिकाकर्ता ने बताया कि एक-साथ दोनों एग्जाम डेट का होना उनके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता (अनुच्छेद 21) का उल्लंघन है.

विश्वविद्यालयों और राज्य का पक्ष

राज्य सरकार और दोनों विश्वविद्यालयों के वकीलों ने याचिका का कड़ा विरोध किया. उनका कहना था कि परीक्षा कार्यक्रम बनाना विश्वविद्यालय का प्रशासनिक अधिकार है और इसमें दखल देना न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है. 

कोर्ट का फैसला: अधिकार की सीमाएं

20 जून 2025 को न्यायमूर्ति अरविंद कुमार वर्मा की एकलपीठ ने इस याचिका पर फैसला सुनाते हुए साफ किया कि यदि कोई छात्र एक साथ दो शैक्षणिक पाठ्यक्रमों की पढ़ाई कर रहा है, तो उसे यह अधिकार नहीं है कि वह परीक्षा तिथियों में टकराव होने पर विश्वविद्यालयों से बदलाव की मांग करे. अदालत ने यह भी कहा कि इस प्रकार की मांग को लेकर दाखिल की गई रिट याचिका न्यायिक क्षेत्राधिकार के अंतर्गत विचार योग्य नहीं है.

याचिका खारिज, लेकिन सवाल कायम

अंततः सत्येन्द्र की याचिका खारिज कर दी गई. हालांकि, इस फैसले ने उन हजारों छात्रों के सामने बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है, जो एक साथ दो डिग्रियां करने का सपना देख रहे हैं. क्या भविष्य में विश्वविद्यालय ऐसे छात्रों के लिए परीक्षा कार्यक्रम में लचीलापन दिखाएंगे? यह तो वक्त ही बताएगा.

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