छत्तीसगढ़ में इलाज बना त्रासदी, मोतियाबिंद ऑपरेशन के बाद नौ मरीज अंधेपन के कगार पर, सर्जरी में जुटे डॉक्टर
छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले से स्वास्थ्य विभाग की बड़ी लापरवाही का मामला सामने आया है, जहां मोतियाबिंद के ऑपरेशन के बाद नौ मरीजों की आंखों की रोशनी खतरे में पड़ गई है. अब डॉक्टर इन लोगों की रोशनी वापस लाने का काम कर रहे हैं.;
छत्तीसगढ़ के बीजापुर से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जिसने स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. यहां मोतियाबिंद ऑपरेशन के बाद नौ मरीजों की आंखों में संक्रमण फैल गया. हालांकि, अब मरीजों को दूसरे अस्पताल में रेफर कर दिया है और सर्जरी के जरिए इंफेक्शन को साफ करने का काम किया जा रहा है.
यह घटना न सिर्फ मरीजों के लिए दर्दनाक है, बल्कि उस सिस्टम पर भी सवाल उठाती है जो लोगों की आंखों की रोशनी लौटाने के लिए नहीं, बल्कि छीनने के लिए जिम्मेदार बन बैठा.
ऑपरेशन के बाद अंधेरे में डूबे नौ मरीज
24 अक्टूबर को बीजापुर के जिला अस्पताल में मोतियाबिंद के ऑपरेशन का शिविर लगाया गया था. इस दौरान डॉ. तरुण कंवर ने एक ही दिन में 14 मरीजों की आंखों की सर्जरी की. लेकिन कुछ ही दिनों बाद नौ मरीजों की आंखों में सूजन, दर्द और धुंधलापन की समस्या शुरू हो गई. हालत इतनी बिगड़ गई कि जिला अस्पताल में उनका इलाज संभव नहीं रहा. इसके बाद 19 दिन बीतने पर सभी मरीजों को बेहतर इलाज के लिए रायपुर के डॉ. भीमराव आंबेडकर अस्पताल भेज दिया गया.
रायपुर अस्पताल में जारी इलाज
आंबेडकर अस्पताल के अधीक्षक डॉ. संतोष सोनकर ने बताया कि मरीजों की आंखों में संक्रमण काफी बढ़ गया है. अब उनकी आंखों से संक्रमित लिक्विड को निकालने के लिए दोबारा सर्जरी करनी पड़ेगी. डॉक्टरों का कहना है कि इस समय यह बताना मुश्किल है कि कितने मरीजों की नजर वापस आ पाएगी. संक्रमण की गंभीर हालत ने इलाज कर रहे डॉक्टरों को भी चिंता में डाल दिया है.
लापरवाही या लापरवाह सिस्टम?
सवाल यह उठता है कि आखिर ऐसी घटनाएं बार-बार क्यों होती हैं? पिछले साल दंतेवाड़ा में भी मोतियाबिंद ऑपरेशन के बाद 10 ग्रामीणों की आंखों में संक्रमण हुआ था. क्या उस हादसे से विभाग ने कोई सबक नहीं सीखा? आई एक्सपर्ट का कहना है कि डिवाइस को ठीक से स्टरलाइज न करना, शुगर टेस्ट की अनदेखी और इंफेक्शन कंट्रोल के नियमों का पालन न करना ऐसी घटनाओं की जड़ में है.
क्या जवाब देगा स्वास्थ्य विभाग?
जब मरीज अस्पताल पर भरोसा कर अपनी आंखों की रोशनी सौंपते हैं, तो क्या यह उनका अधिकार नहीं कि उन्हें सुरक्षित इलाज मिले? बीजापुर की यह घटना फिर याद दिलाती है कि मुफ्त इलाज के नाम पर की जाने वाली लापरवाहियां अक्सर गरीबों के लिए त्रासदी बन जाती हैं. अब सवाल यह है कि क्या इस बार जिम्मेदारों पर कार्रवाई होगी, या फिर यह मामला भी पुराने फाइलों की तरह धूल खा जाएगा?