लालू की पार्टी में ‘जयचंद’ कौन? तेज प्रताप ने एक और पोस्ट कर कहा- कृष्ण से जुदा नहीं कर सकते अर्जुन को!
लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप ने परिवार और पार्टी से निकाले जाने के बाद भावुक पोस्ट में इशारों-इशारों में 'जयचंदों' को दोषी बताया. संजय यादव पर पहले भी गंभीर आरोप लगाते रहे तेज प्रताप, जिन्हें तेजस्वी का खास रणनीतिकार माना जाता है. इस पोस्ट से राजद के भीतर गुटबाज़ी की दरारें एक बार फिर सतह पर आ गई हैं.;
लालू प्रसाद यादव ने जब बड़े बेटे तेज प्रताप को परिवार और राजद से बाहर का रास्ता दिखाया, तो यह फैसला केवल अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं था. उसने आरजेडी के भीतरी ताने-बाने में छिपे सत्ता संघर्ष को जगजाहिर कर दिया. तेज प्रताप ने भावनात्मक पोस्ट में मां-पिता को भगवान बताया और शिकायत की कि कुछ लोग उन्हें राजनीतिक साजिशों से घेर रहे हैं. उसी पल सवाल उठा- पार्टी का असली ‘जयचंद’ कौन है?
अपने पोस्ट में तेज प्रताप ने लिखा कि अगर पिता न होते तो ‘कुछ जयचंद जैसे लालची लोग’ उनके साथ राजनीति भी न कर पाते. ज्यों ही यह पंक्ति आई, पटना के राजनीतिक गलियारों में नामों की चर्चा तेज हो गई. टिप्पणीकारों ने इसे सीधे पार्टी के रणनीतिकार गुट पर निशाना माना, जिन्होंने तेजस्वी यादव को केंद्र में रखकर संगठन चलाने की नई शैली अपनाई है.
शक के घेरे में संजय यादव
सबसे ज्यादा उंगलियां हरियाणा मूल के राजद राज्यसभा सांसद संजय यादव पर उठीं. उन्हें तेजस्वी यादव का छाया रणनीतिकार कहा जाता है. संगठन में युवाओं को आगे लाने, सोशल-मीडिया ब्रांडिंग और टिकट बंटवारे में उनकी भूमिका बहुचर्चित है. यही बढ़ता प्रभाव तेज प्रताप को खलता रहा है, क्योंकि परिवार के बड़े बेटे होते हुए भी वे निर्णय-मंडली से दूर रखे गए.
पुरानी रंजिशें और खुले आरोप
तेज प्रताप ने पहले भी संजय यादव पर गाली दिलवाने, बॉडीगार्ड से धमकाने और भाई-बहनों के बीच दरार पैदा करने का आरोप लगाया था. पार्टी मंचों से लेकर सोशल मीडिया तक उन्होंने संकेत दिए कि बाहरी टीम उनके विरुद्ध माहौल बना रही है. संजय यादव ने कभी सार्वजनिक पलटवार नहीं किया, लेकिन भीतरखाने उनकी रणनीति तेजस्वी की पैदल सेना को मजबूत करती रही.
लालू की कसौटी: छवि बचाओ
चारा घोटाले से जूझ चुके लालू जानते हैं कि पार्टी की विश्वसनीयता दांव पर है. तेज प्रताप के अनियमित व्यवहार और निजी विवादों ने संगठन की छवि को झटके दिए. ऐसे में बड़े बेटे को हटाना परिवार से ज्यादा पार्टी की जरूरत थी. निर्णय संदेश देता है कि राजद अब तेजस्वी-केंद्रित पेशेवर नेतृत्व मॉडल अपना रहा है, चाहे इसके लिए रक्त-संबंधों की कीमत क्यों न चुकानी पड़े.
आगे की राह क्या?
तेज प्रताप अभी राजनीतिक वनवास का दंश झेलते दिख रहे हैं, पर उनकी सोशल-मीडिया हुंकार संकेत देती है कि लड़ाई खत्म नहीं हुई. यदि ‘जयचंद’ को बेनकाब करने का उनका वादा तीखा हुआ, तो राजद में खुला गुटीय संघर्ष दिख सकता है. दूसरी ओर, लालू परिवार के भीतर सुलह की संभावना भी बनी हुई है, क्योंकि बिहार की राजनीति में जातिगत समीकरण अक्सर तकरार से बड़ी ताकत बन जाते हैं. पार्टी के लिए असली चुनौती यही है कि अंतर्कलह को संभालते हुए 2025 के रण में विश्वसनीय चेहरा कैसे बनाए रखा जाए.