बिहार में फिर बाहर निकला जंगल राज का जिन्न, लालू के साले ही लगे पोल खोलने
आपने बिहार की राजनीति को जरा भी करीब से देखा है तो आप 'जंगल राज' शब्द से जरूर परिचित होंगे. जी हां, बात हो रही है बिहार में 15 साल तक चले लालू प्रसाद यादव के शासनकाल की जब राज्य में अपहरण, डकैती, हत्या जैसे अपराध चरम पर थे. लेकिन आज क्यों इसकी चर्चा हो रही है.;
बिहार में 'जंगलराज का जिन्न' एक बार फिर अपने चिराग से बाहर निकल चुका है. अगर आपने बिहार की राजनीति को जरा भी करीब से देखा है तो आप 'जंगल राज' शब्द से जरूर परिचित होंगे. जी हां, बात हो रही है बिहार में 15 साल तक चले लालू प्रसाद यादव के शासनकाल की जब राज्य में अपहरण, डकैती, हत्या जैसे अपराध चरम पर थे. लेकिन आज क्यों इसकी चर्चा हो रही है? तो आपको बता दें खुद लालू यादव के साले सुभाष यादव ने जो कि कभी राजद प्रमुख के सबसे करीबी माने जाते थे. उन्होंने इसे लेकर कई गंभीर आरोप लगाए हैं.
वैसे तो सुभाष यादव आम तौर पर खुद को मीडिया से दूर रखते हैं लेकिन इस बार उन्होंने अपना ये वनवास खत्म कर मीडिया से बात की है और कहा है कि लालू-राबड़ी शासन (1990-2005) के दौरान “अपहरण के मामलों को सीएम हाउस से मैनेज किया जाता था.”
सीएम हाउस सुलझाता था अपहरण के मामले
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सुभाष यादव कहते हैं कि उस दौर में अपहरण के मामलों में सौदेबाजी के सारे आरोप उनपर ही लगाए जाते थे, लेकिन यह सीएम हाउस ही था जो संदिग्धों को कॉल करता था और अक्सर मामले को सुलझाता था.” लालू पर व्यक्तिगत कटाक्ष करते हुए, सुभाष ने कहा, “अगर मैं अपहरण के पीछे होता, तो मुझे जेल में डाल दिया जाता, जैसे लालूजी को डाला गया था.'
लालू की बेटी रोहिणी आचार्य की शादी के समय पटना के शोरूम को अपनी नई कारें देने के लिए मजबूर किया गया था, ये आरोप भी लगते रहे थे. अब सुभाष यादव ने इसकी पुष्टि की है.
2005 में ही राजद से अलग हुए सुभाष यादव
यह पहली बार नहीं है कि सुभाष यादव ने लालू परिवार पर ऐसे आरोप लगाए हैं.. सुभाष यादव 2005 में आरजेडी के सत्ता से बाहर होने के तुरंत बाद लालू से अलग हो गए थे और 2010 के आसपास सभी संबंध तोड़ दिए थे. यह वही दौर था जब लालू के बच्चों ने राजनीति में अपना उदय शुरू किया था. माना जा रहा है अक्टूबर-नवंबर में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव से पहले सुभाष यादव के इन आरोपों से एनडीए को फायदा पहुंच सकता है.
बिहार में RJD के शासन के 15 साल
बिहार में 1990 से लेकर 2005 तक राजद का राज रहा और ज्यादातर समय लालू यादव ही मुख्यमंत्री रहे. 1990-95 के राजद के कार्यकाल के दौरान कानून और व्यवस्था के आंकड़े जातिगत अपराधों के अलावा फिरौती के लिए अपहरण में मामालें में तेजी को दर्शाते हैं. 1994 से 2000 के बीच 20 से अधिक जातिगत हत्याओं में 50 माओवादियों सहित 337 हत्याएं हुईं, जबकि 2001 से 2004 के बीच बिहार में 1,527 अपहरण दर्ज किए गए, जिनमें से 411 अकेले 2004 में हुए. सबसे चर्चित मामलों में से एक 2002 में पटना के तीन प्रमुख डॉक्टरों का एक के बाद एक अपहरण था. डॉ. भरत सिंह के अपहरण को लेकर लोगों ने सड़क पर उतर कर जोरदार प्रदर्शन किया था, जिसके एक सप्ताह बाद उन्हें रिहा कर दिया गया था.
एक और बहुचर्चित मामला हिंदुस्तान टाइम्स के फोटोग्राफर अशोक कर्ण के अपहरण था. जब मीडियाकर्मियों ने इस बारे में पूछा, तो लालू ने कहा था: “उन्हें दो घंटे में रिहा कर दिया जाएगा.'' और उसी शाम उन्हें रिहा कर दिया गया. 2003 में, तत्कालीन कारागार मंत्री राघवेंद्र प्रताप सिंह के एक रिश्तेदार को स्कूल जाते समय अगवा कर लिया गया था. 2005 में चुनाव प्रचार के दौरान तत्कालीन डीजीपी डी पी ओझा ने कहा था कि लड़के को रिहा करने से पहले मंत्री के परिवार को भी 30 लाख रुपए की फिरौती देनी पड़ी थी.
कहां से आया 'जंगल राज' शब्द
2006 में, नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के आरजेडी शासन को बदलने के एक साल बाद, बिहार में अपहरण की संख्या घटकर 194 रह गई और 2010 तक यह 72 हो गई. अगस्त 1997 में, एक याचिका पर सुनवाई करते हुए, पटना उच्च न्यायालय ने बिहार में कानून और व्यवस्था की स्थिति का वर्णन करने के लिए 'जंगल राज' शब्द का इस्तेमाल किया. यह मुहावरा तब से लालू-राबड़ी शासन के साथ जुड़ा हुआ है, और अब विधानसभा चुनावों से पहले फिर से यह चर्चा में आ रहा है.