बिहार चुनाव रिजल्ट पर भड़के प्रशांत किशोर, बोले- आंकड़ों में गड़बड़ी है; वोट पैटर्न पर भी उठाए सवाल

बिहार चुनाव में करारी हार के बाद जनसुराज प्रमुख प्रशांत किशोर ने नतीजों पर बड़ा बयान दिया है. PK का कहना है कि मतदान के पैटर्न और ग्राउंड फीडबैक में काफी अंतर दिखा, जिससे स्पष्ट है कि चुनावी प्रक्रिया में कुछ ऐसा हुआ जो सामान्य नहीं था. उन्होंने आरोप लगाया कि चुनाव के आखिरी चरण में NDA सरकार ने महिलाओं को 10-10 हजार रुपये भेजकर वोटरों को प्रभावित किया. साथ ही ‘लालू डर फैक्टर’ का भी असर पड़ा, जिसके चलते कई लोग जनसुराज को समर्थन देने से पीछे हट गए.;

( Image Source:  ANI )
Edited By :  नवनीत कुमार
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बिहार चुनाव नतीजे भले ही घोषित हो गए हों, लेकिन राजनीति की गर्मी अब भी कम नहीं हुई. जनसुराज अभियान चलाने वाले प्रशांत किशोर ने यह साफ कर दिया है कि वह इस नतीजे को सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा नहीं मानते. जीत–हार की स्वीकार्यता से परे, PK के शब्दों में एक शक, एक बेचैनी और एक अनकहा राजनीतिक तूफान छिपा है. उन्होंने आरोप नहीं लगाया, लेकिन इशारों में बहुत कुछ बोल दिया, “कई आंकड़े जमीनी हकीकत से मेल ही नहीं खाते.”

एक चैनल से बात करते हुए पीके ने कहा कि अपनी राजनीतिक शुरुआत में ही झटका खाने के बाद भी PK पीछे हटने वाले नहीं हैं. चुनावी रणनीतिकार से नेता बने PK का कहना है कि बिहार में जो हुआ, वह ‘चुनाव का सामान्य फ्लो’ नहीं था. उन्होंने यह दावा करते हुए सवाल उठाए कि जमीन पर दिखने वाली लहर और मतदान परिणामों में ज़मीन–आसमान का फर्क कैसे पैदा हो गया?

जमीनी फीडबैक और नतीजे अलग

PK के अनुसार, पूरे चुनाव अभियान में उन्हें जनता के बीच स्पष्ट समर्थन मिलता दिखा. कई इलाकों में जनसुराज की रैलियों और जनमत सर्वेक्षणों का फीडबैक बताता था कि पार्टी को दो-अंकों में वोट हासिल हो सकते थे. लेकिन नतीजों में इसका कहीं अंश भी न दिखना उन्हें यही सबसे ज्यादा खटक रहा है. उनका कहना है कि “वोटिंग बिहेवियर” और “रिजल्ट पैटर्न” जैसे दो अलग-अलग चुनाव हुए हों.

‘10 हजार रुपये’ वाली योजना ने बदला खेल

PK ने दावा किया कि मतदान से कुछ ही दिन पहले NDA ने 50 हजार से अधिक महिलाओं को आर्थिक लाभ देकर चुनावी माहौल बदल दिया. उनका तर्क है कि इस अचानक धन हस्तांतरण ने ग्रामीण वोट बैंक को सीधे प्रभावित किया. इसके साथ ही उन्होंने एक और संवेदनशील मुद्दा उठाया, ‘लालू डर फैक्टर’. उनके अनुसार, मतदाताओं में एक बड़ी आबादी को लगा कि जनसुराज को वोट देने का मतलब जंगलराज की वापसी हो सकता है और इसी मनोविज्ञान ने RJD विरोधी वोट NDA की ओर धकेल दिए.

सब कुछ सामान्य नहीं था

प्रशांत किशोर ने यह दावा भी किया कि चुनावी परिणामों में अदृश्य हाथ शामिल रहे हो सकते हैं. कई सीटों पर ऐसे दलों को लाखों वोट मिलना, जिनका जमीनी अस्तित्व तक नहीं था, उनके अनुसार “चुनावी गणित के विपरीत” है. हालांकि PK इस बात पर भी जोर देते हैं कि वह EVM हेरफेर जैसे आरोप बिना सबूत नहीं लगाएंगे, “सिर्फ इतना कह सकता हूँ कि सब कुछ सामान्य नहीं था.”

ये अंत नहीं, शुरुआत है: पीके

अपनी ही हार पर उठ रहे सवालों को PK ने बेहद तीखे शब्दों में पलट दिया. उन्होंने आलोचकों पर निशाना साधते हुए कहा, “जो मेरी राजनीतिक कहानी खत्म करने पर तुले हैं, वही लोग पहले मेरी जीत पर ताली बजाते थे.” PK के भाषण में दृढ़ता साफ झलक रही थी, “अगर मैं फिर जीता तो वही लोग ताली बजाएंगे, मैं अभी खत्म नहीं हुआ. कहानी अभी बाकी है.”

बड़ी लड़ाई अभी बाकी

प्रशांत किशोर ने मान लिया है कि नतीजे बदलने वाले नहीं, पर सवाल खत्म नहीं हुए. उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि यह हार उनके सफर का पूर्णविराम नहीं बल्कि संघर्ष की पहली पंक्ति है. बिहार में उनकी मौजूदगी अभी भी सत्ता समीकरणों को बेचैन करने के लिए काफी है. और शायद इसी वजह से उन्होंने अंत में कहा, “जो लोग मुझे सबसे अधिक क्रिटिसाइज करते हैं, वही मेरे बारे में सबसे अधिक जिज्ञासु हैं.”

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