बिहार पुलिस ने बदले नियम, अब दो आरोप लगे तो बन जाएंगे 'असामाजिक तत्‍व', जिला बदर को लेकर भी आई नई गाइडलाइन

बिहार सरकार ने 'असामाजिक तत्व' घोषित करने की प्रक्रिया में बड़ा बदलाव किया है. अब बिना हालिया चार्जशीट और पुख्ता सबूत किसी को जिला बदर या निरुद्ध नहीं किया जा सकेगा. नई गाइडलाइन न्यायिक मानकों के मुताबिक तैयार की गई है, जिससे पुराने केस या थाने की प्रविष्टियों के आधार पर कार्रवाई नहीं होगी. इससे सुधर चुके लोगों को राहत मिलेगी.;

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Edited By :  नवनीत कुमार
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बिहार सरकार ने 'असामाजिक तत्व' घोषित करने की पुरानी पुलिसिया व्यवस्था में बड़ा बदलाव किया है. अब किसी व्यक्ति को जिला बदर (exile) या निरुद्ध (preventive detention) करने से पहले यह साबित करना जरूरी होगा कि वह न केवल हाल ही में अपराध में संलिप्त रहा है, बल्कि उसकी गतिविधियां समाज की शांति और व्यवस्था के लिए वास्तविक खतरा भी हैं. इससे उन लोगों को बड़ी राहत मिलेगी जिन्होंने अतीत में अपराध किए लेकिन अब सामान्य जीवन जी रहे हैं.

नई गाइडलाइन के मुताबिक, बिहार अपराध नियंत्रण अधिनियम की 11 श्रेणियों में से किसी भी दो अपराधों में व्यक्ति के खिलाफ बीते 24 महीनों के भीतर चार्जशीट दाखिल होनी चाहिए. पुराने या लंबित मामलों को अब प्रस्ताव का आधार नहीं माना जाएगा. दोषमुक्त हो चुके मामलों को भी ‘असामाजिक तत्व’ मानकर कार्रवाई नहीं की जा सकेगी. यानी पुलिस अब बिना अद्यतन और कानूनी रूप से पुष्ट रिकॉर्ड के कोई निरोधात्मक प्रस्ताव नहीं भेज सकेगी.

कोर्ट की सख्त टिप्पणियों का असर

पटना हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए 222 फैसलों के विश्लेषण के बाद सरकार को यह निर्णय लेना पड़ा. विश्लेषण में पाया गया कि 60% मामलों में कोर्ट ने जिला बदर और निरुद्ध आदेशों को रद्द कर दिया था, क्योंकि पुलिस ने कानूनी मानकों का पालन नहीं किया था। इसमें सबसे बड़ी गलती थी. पुराने मामलों या थाना डायरी की केवल प्रविष्टियों को आधार बनाना, जो न्यायिक समीक्षा में टिक नहीं पाते थे.

जेल में बंद लोगों पर भी लगेगा संतुलन

यदि प्रस्ताव किसी पहले से जेल में बंद व्यक्ति के विरुद्ध दिया जाता है, तो उसमें उसकी ज़मानत की स्थिति, लंबित याचिकाओं या कोर्ट के आदेशों का साफ-साफ उल्लेख करना अनिवार्य होगा. केवल इस आधार पर कि व्यक्ति पूर्व में आपराधिक प्रवृत्ति का रहा है, उसे ‘असामाजिक तत्व’ घोषित नहीं किया जा सकेगा. इस प्रावधान का मकसद यह है कि किसी भी विचाराधीन बंदी के मौलिक अधिकारों का हनन न हो.

अब आशंका नहीं, सबूत चाहिए

सबसे अहम बात यह है कि केवल इस आशंका के आधार पर कि कोई व्यक्ति फिर से अपराध कर सकता है, उसके खिलाफ निरुद्ध (preventive detention) का प्रस्ताव नहीं भेजा जा सकता. पुलिस को यह साबित करना होगा कि व्यक्ति की हालिया गतिविधियां लोक व्यवस्था को सीधा प्रभावित कर रही है. अब पुलिस की रिपोर्ट में सिर्फ अफवाह, व्यक्तिगत दुश्मनी या पुराना रिकॉर्ड पर्याप्त नहीं होगा.

अधिकारियों की जवाबदेही तय

पुलिस मुख्यालय ने स्पष्ट किया है कि यदि भविष्य में इन गाइडलाइनों का पालन किए बिना प्रस्ताव भेजे गए और अदालतों में खारिज हुए, तो संबंधित पुलिस अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की जाएगी. यानी अब जिला बदर और निरुद्ध जैसी शक्तिशाली कार्रवाई सिर्फ कानूनी रूप से मजबूत मामलों में ही की जा सकेगी, जिससे इसका दुरुपयोग रोका जा सकेगा.

पुलिस का रवैया अब होगा प्रोफेशनल

नई गाइडलाइन का उद्देश्य न केवल नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना है बल्कि पुलिस को भी अधिक पेशेवर और संवेदनशील बनाना है. अब स्थानीय थानों को भी निर्देशित किया गया है कि वे प्रस्ताव तैयार करते समय केस डायरी, साक्ष्य और अद्यतन रिपोर्ट का पालन करें और केवल वे केस फाइल करें जो कानूनी कसौटी पर खरे उतरते हों.

कानून का डर, लेकिन न्याय के साथ

बिहार सरकार की यह पहल दिखाती है कि वह अपराध के खिलाफ सख्ती बरकरार रखना चाहती है लेकिन न्याय की बुनियादी भावना को कुर्बान किए बिना. इससे न केवल आम लोगों का भरोसा कानून में बढ़ेगा, बल्कि उन हजारों युवाओं को भी मुख्यधारा में लौटने का अवसर मिलेगा जो एक बार गलत रास्ते पर चले थे, लेकिन अब सुधर चुके हैं.

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