युवा चेहरों के पीछे चल रहा बिहार! नई पीढ़ी के नेता कैसे तोड़ रहे जातिगत राजनीति का जाल?

बिहार की राजनीति में अब जातिगत समीकरणों की जगह युवा नेताओं का विकासवादी एजेंडा छा रहा है. तेजस्वी यादव, प्रशांत किशोर और कन्हैया कुमार जैसे नेता बेरोजगारी, पलायन और शिक्षा जैसे मुद्दों को लेकर युवाओं के बीच लोकप्रिय हो रहे हैं. यह बदलाव राज्य में राजनीति की दिशा तय कर सकता है और चुनावी विमर्श को एक नया मोड़ दे सकता है.;

Edited By :  नवनीत कुमार
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बिहार की पारंपरिक राजनीति लंबे समय से जातिगत ध्रुवीकरण के इर्द-गिर्द घूमती रही है, लेकिन अब हालात बदल रहे हैं. नई पीढ़ी के नेता राजनीति की दिशा बदलने की कोशिश में जुटे हैं. वे ऐसे मुद्दों को उठा रहे हैं जो सीधे-सीधे आम लोगों, खासकर युवाओं से जुड़े हैं. जैसे बेरोजगारी, पलायन और शिक्षा. चुनावी रणनीति अब जाति की गिनती से हटकर रोजगार की गारंटी और भविष्य की संभावनाओं पर केंद्रित हो रही है. बिहार की 70% आबादी 35 साल से कम उम्र की है. यही वर्ग सबसे अधिक बेरोजगारी और पलायन से पीड़ित है. यह नया मतदाता अब जातिगत पहचान की राजनीति से ऊब चुका है और रोजगार, सम्मान और अवसर की मांग कर रहा है. इसी बदली सोच के इर्द-गिर्द युवा नेता अपनी रणनीति गढ़ रहे हैं जो राज्य की राजनीति को एक नई दिशा दे सकता है.

इस बदलाव की सबसे दिलचस्प बात यह है कि बिहार के वही नेता, जो कभी जातिगत वोट बैंक की राजनीति में खुद शामिल रहे, अब विकास के एजेंडे को लेकर आगे बढ़ रहे हैं. तेजस्वी यादव, प्रशांत किशोर, चिराग पासवान, कन्हैया कुमार और निशांत कुमार जैसे युवा नेता अपनी-अपनी सियासी जमीन पर सक्रिय हैं, लेकिन सभी की दिशा एक है- युवा मतदाताओं को रोजगार और गरिमा के साथ जीवन देने का वादा.

तेजस्वी यादव: 10 लाख नौकरियों से शुरू हुआ बदलाव

2020 के विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव ने पहली बार जातिगत समीकरण से हटकर बेरोजगारी को केंद्रीय मुद्दा बनाया. उनका 10 लाख सरकारी नौकरी देने का वादा चुनावी चर्चा का केंद्र बन गया. हालांकि राजद सरकार नहीं बना सकी, लेकिन युवा मतदाताओं के बीच तेजस्वी एक उम्मीद बनकर उभरे. अब 2025 की तैयारी में वे 100% डोमिसाइल नीति और स्थानीयों को प्राथमिकता देने का वादा कर रहे हैं, जो एक बार फिर युवाओं को आकर्षित कर रहा है.

प्रशांत किशोर: पदयात्रा से जनसंवाद की राजनीति

चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर ने 'जन सुराज' के बैनर तले बिहार को भ्रष्टाचार, पलायन और बेरोजगारी से मुक्त करने की योजना पेश की है. दो साल की लंबी पदयात्रा कर चुके किशोर ने सीधा जनता से संवाद स्थापित किया है. 'स्कूल बैग' चुनाव चिन्ह के ज़रिए उन्होंने शिक्षा और युवाओं के भविष्य को अपना मुख्य एजेंडा बनाया है और चुनावी मैदान में एक नई तरह की राजनीति को जन्म दिया है.

चिराग पासवान बिहार की राजनीति में एक उभरते हुए युवा चेहरे हैं, जो अपने पिता रामविलास पासवान की विरासत को आधुनिक सोच और विकासवादी दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ा रहे हैं. 'बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट' के नारे के साथ उन्होंने जातिगत राजनीति से हटकर युवाओं, बेरोजगारी और विकास को केंद्र में रखा है. एलजेपी (रामविलास) के नेता के रूप में वे खुद को एक मजबूत विकल्प के तौर पर पेश कर रहे हैं. वह इस बार का विधानसभा चुनाव लड़ने वाले हैं और युवाओं के बीच खासा लोकप्रिय चेहरों में से एक माना जाता है.

कन्हैया कुमार: 'पलायन रोको, नौकरी दो' का संदेश

कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार ने अपनी 'पलायन रोको, नौकरी दो' यात्रा से बिहार में नई चेतना लाने की कोशिश की है. वह बेरोजगारी और युवाओं के पलायन को नीतीश कुमार की नीतिगत विफलता बताते हैं. उनकी कोशिश है कि कांग्रेस को नए सिरे से खड़ा किया जाए और युवा मतदाताओं को पार्टी से जोड़ा जाए. कन्हैया की भाषा में आंदोलन की छवि है और वे सियासत में ज़मीनी मुद्दों के जरिए वापसी का रास्ता खोज रहे हैं.

राजनीतिक विरासत से दूरी, लेकिन चर्चा में निशांत कुमार

जहां एक ओर बिहार के युवा नेता विकास, रोजगार और पलायन जैसे मुद्दों पर नई सियासत की राह पकड़ चुके हैं, वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार का नाम भी बहस में शामिल होता दिख रहा है. हालांकि निशांत अब तक सक्रिय राजनीति से दूर रहे हैं. वह सार्वजनिक रूप से कई बार कह चुके हैं कि उन्हें राजनीति में दिलचस्पी नहीं है, लेकिन बिहार में जब युवा नेतृत्व की चर्चा होती है तो सत्ता के सबसे अनुभवी चेहरे नीतीश कुमार के उत्तराधिकारी के तौर पर उनका नाम बार-बार उठता है. ऐसे माहौल में जब युवा नेता नई दिशा में राजनीति को मोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. तब यह सवाल भी उठता है कि क्या निशांत कुमार अपनी राजनीतिक विरासत को संभालेंगे या फिर बिहार की राजनीति में नई पीढ़ी पूरी तरह से पारंपरिक नेतृत्व से अलग राह चुनेगी.

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