बिहार चुनाव में Game Changer हैं ये जातियां, जिसके पाले में इनका वोट उसी की सरकार!
बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण ही सबसे बड़ी ताकत माने जाते हैं. कुछ जातियां ऐसी हैं जो हर चुनाव में सत्ता की चाबी साबित होती हैं. ये जातियां कब किसके साथ जाएंगी, यह तय करता है चुनाव का रुख. सवर्ण जातियां हमेशा नैरेटिव सेट करने में आगे रही हैं, लेकिन 1990 के बाद से यादव और दलित भी अहम रोल निभाने लगे हैं.;
बिहार की सियासत जातीय समीकरणों के इर्द-गिर्द ही घूमती हैं. यहां वोट सिर्फ पार्टी या नेता नहीं बल्कि जाति आधारित राजनीति से मिलता है. यादव, कुर्मी, भूमिहार, कोइरी, ब्राह्मण, दलित और महादलित जैसी जातियां हर चुनाव में समीकरणों को नए सिरे से गढ़ती हैं. यही वजह है कि राजनीतिक दल इन्हीं जातियों को साधने में जी-जान लगा देते हैं. बिहार में मुद्दों पर बहस तो होती है, पर लोग वोट जातियों को मन रखकर ही डालते हैं. यही वजह है कि सियासी दल भी चुनावी रणनीति इसी को ध्यान में रखकर तय करते हैं.
Gamechanger जातियां
यादव: राज्य में OBC वर्ग की सबसे बड़ी जाति है. इनकी आबादी करीब 14 से 15 फीसदी है. पारंपरिक तौर पर ये RJD के वोट बैंक माने जाते हैं, लेकिन हाल के वर्षों में BJP की भी पैठ बनी है. बिहार में यादव वोट जहां झुके, वहां सत्ता का पलड़ा भारी हो जाता है.
कुर्मी: करीब 3 से 4 फीसदी आबादी के साथ कुर्मी जाति भले छोटी दिखे, लेकिन राजनीतिक रूप से बेहद संगठित है. नीतीश कुमार इस वर्ग का सबसे बड़े चेहरा हैं और JDU की ताकत भी यहीं से आती है.
कोइरी/कुशवाहा: इनकी आबादी 7 से 8 प्रतिशत है. यह जाति कभी JDU की रीढ़ रही, लेकिन अब RLSP और BJP के साथ देते नजर आते हैं. उपेंद्र कुशवाहा उन्हीं के दम पर राजनीति करते हैं.
भूमिहार: भूमिहारों की आबादी 3 फीसदी से कम है, लेकिन ये आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक रूप से प्रभावशाली माने जाते हैं. कभी कांग्रेस का हिस्सा रहे, फिर BJP और JDU के करीब आए. अब कई सीटों पर ये किंगमेकर हैं.
दलित-महादलित: 20 प्रतिशत से अधिक आबादी के साथ दलित और महादलित वर्ग किसी भी गठबंधन को निर्णायक बढ़त दिला सकता है. पासवान का प्रभाव कुछ क्षेत्रों में मजबूत है. जबकि महादलितों में JDU की अच्छी पकड़ है.
कम होकर भी राजनीति में दखल ज्यादा
ब्राह्मण और राजपूत संख्या में कम 6 से 7 प्रतिशत है. ये लेकिन भाजपा का मुख्य वोट बैंक माने जाते हैं. ये जातियां सत्ता के साथ खड़ी नजर आती हैं और हर बार रणनीति में इनका रोल महत्वपूर्ण रहता है. बिहार में भूमिहार, कुर्मी, मुसहर और तेली की आबादी करीब 45 लाख तक है. प्रदेश में इन जातियों से कई बड़े नेता आते है. कुर्मी से नीतीश कुमार, मुसहर से जीतन राम मांझी और भूमिहार से गिरिराज सिंह जैसे नेता आते हैं. बिहार में इन जातियों की आबादी कम होने के बाद भी ये राजनीति में अधिक दखल देती है और इन जातियों ने अपनी संख्या से ज्यादा सत्ता का सुख भोगा है. बिहार में पान या सवासी, कहार या चंद्रवंशी, कुम्हार, नाई और बढ़ई ऐसी जातियां है जिनके वोट किसी भी प्रत्याशी के हार-जीत को बदलने में सक्षम होता है. प्रदेश में इनकी आबादी डेढ़ से दो प्रतिशत के करीब है. इन जातियों का वोट बैंक अलग-अलग विधानसभा में है. यही कारण है कि इन जातियों का प्रदेश स्तर पर कोई सर्वमान्य नेता भी नहीं है.
कैसे बदलता है समीकरण?
बिहार के सियासी दल जातीय गठजोड़ के जरिए जीत का गणित बनाते हैं. एक मजबूत OBC, दलित और मुस्लिम समीकरण या सवर्ण और ईबीसी गठबंधन चुनावी परिणाम को प्रभावित करता है. जब कोई जाति बंटती है या नया गठबंधन बनता है, तब पूरा समीकरण बदल जाता है.