बिहार में वोटिंग बढ़ी तो सत्ता उलटी! मतदान में इजाफा किसके गले की हड्डी, क्या रिपीट होगा इतिहास?
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण की वोटिंग में इस बार चौंकाने वाला है. मतदान प्रतिशत 2015 और 2020 के मुकाबले अधिक रहा, लेकिन बिहार की राजनीति का एक पुराना समीकरण कहता है, जब भी वोटिंग ज्यादा होने पर सत्ता बदल जाती है. अब बड़ा सवाल है कि यह बढ़ा हुआ मतदान NDA के लिए खतरे की घंटी है या महागठबंधन की मुश्किलें बढ़ाने वाली है?;
बिहार में वोटिंग के आंकड़े सिर्फ संख्या नहीं, सत्ता की दिशा तय करने वाले संकेत होते हैं। 2025 के पहले चरण में औसत मतदान का प्रतिशत 7 फीसदी से ज्यादा बढ़ा है. आमतौर पर माना जाता है कि ऊंची वोटिंग परिवर्तन का संकेत देती है. इतिहास गवाह है. 2015 में जब वोटिंग बढ़ी, नीतीश-लालू गठबंधन ने सत्ता में वापसी की. बीजेपी सत्ता से बाहर हो गई थी. 2020 में कम वोटिंग के बीच NDA ने मामूली अंतर से जीत दर्ज की और सत्ता में बनी रही.
अब बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में फिर वोटिंग बढ़ी है. सवाल यही कि इस बार जनता ने गुस्से में बटन दबाया या विश्वास में? अगर एंटी इनकंबेंसी की वजह से मतदान बढ़ा है, तो परिवर्तन की संभावना ज्यादा है.
क्या कहते हैं आंकड़े?
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण का भारी संख्या में मतदान प्रदेश और सियासी विश्लेषकों के लिए चौंकाने वाला है. पहले चरण में 121 सीटों पर औसत मतदान 64.66% हुआ है, जो 2020 के मुकाबले 7.36% ज्यादा है.
अगर हम 2005 के विधानसभा चुनाव से लेकर अब तक के चुनावों पर नजर डालें तो पता चलता है कि फरवरी 2005 में 46.5 प्रतिशत वोटिंग हुई थी. सत्ता नहीं बदली थी. अक्टूबर 2005 में चुनाव और 52.7 प्रतिशत वोटिंग हुई. लालू यादव सत्ता से बाहर हो गए और एनडीए सत्ता में आई. नीतीश कुमार बीजेपी के समर्थन से सीएम बने.
इसी तरह बिहार विधानसभा चुनाव 2010 में औसत मतदान 52 फीसदी हुई थी. NDA बरकरार सत्ता में बरकरार रही. यानी मतदान ज्यादा नहीं हुई. साल 2015 फिर वोटिंग ज्यादा हुई. 2010 के 52 प्रतिशत की तुलना में 56.7% वोटिंग हुई और एनडीए सत्ता से बाहर हुई और महागठबंधन की जीत हुई थी. हालांकि, नीतीश कुमार इस बार सीएम बने. ऐसा इसलिए कि उन्होंने बीजेपी साथ छोड़कर लालू का हाथ थाम लिया था.
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 औसत 57.3% फीसद हुई थी. एनडीए मुश्किल से चुनाव जीत पाई और सरकार में बनी रही. इस बार नीतीश कुमार ही सीएम बने. यही वजह है कि 2025 फेज 1 में औसत मतदान 64.66% होना बदलाव का पूर्व संकेत माना जा रहा है. हालांकि, दूसरे चरण के लिए वोटिंग अभी बाकी है. इसलिए अभी यह नहीं कहा जा सकता कि किसकी सरकार बनेगी.
बदलाव के संकेत क्यों?
पिछले तीन चुनाव की तरह इस बार भी महिला मतदाताओं का टर्नआउट पुरुषों से काफी ज्यादा है. हालांकि, फाइनल डाटा आना बाकी है. शहरी इलाकों में भी इस बार 5 से 6 प्रतिशत अधिक वोटिंग हुई है. सबसे ज्यादा वोटिंग खगड़िया, बांका, पूर्णिया, और मधेपुरा में हुई है. जबकि सबसे कम वोटिंग पटना ग्रामीण, कैमूर, और औरंगाबाद में हुई है.
नीतीश सरकार की ‘लक्ष्मी कार्ड’, स्कॉलरशिप और LPG जैसी योजनाओं की वजह से इस बार भी महिला वोटरों को निर्णायक माना जा रहा है. यही कारण है कि वोटिंग किसके पक्ष में गया है, यह स्थिति अभी स्पष्ट नहीं है.
युवा मतदाता का भी दिख सकता है असर
बिहार में बेरोजगारी, पलायन और रोजगार के मुद्दों पर पहली बार वोट देने वाले युवाओं में जोश है. युवाओं की ओर से इसी को केंद्र में रखकर मतदान करने के संकेत मिले हैं.
जातीय और लोकल समीकरण
कई जगह ऊंची वोटिंग MY (मुस्लिम-यादव) बेल्ट में हुई है - जो RJD के लिए शुभ संकेत मानी जा रही है?. वहीं EBC और महिला वोटों की बढ़ोतरी NDA को कुछ राहत दे सकती है.
किसे फायदा, किसे नुकसान?
- फिलहाल, इसे NDA के लिए खतरा माना जा रहा है. ऊंची वोटिंग का मतलब अक्सर सत्ता विरोधी रुझान ही होता है.
- अगर बढ़ा हुआ मतदान ग्रामीण इलाकों से आया, तो इसका लाभ RJD-कांग्रेस गठबंधन को मिल सकता है.
- महिलाएं और नए मतदाता इस बार निर्णायक भूमिका में दिख रहे हैं, जो किसी एक दल के लिए ‘ब्लाइंड स्पॉट’ साबित हो सकते हैं.
अब तक का क्या है ट्रेंड?
- 1990, 2005 (अक्टूबर), 2015 चुनाव में वोटिंग में उछाल आया, सत्ता बदली.
- 2005 फरवरी, 2010, 2020 में वोटिंग स्थिर रही या थोड़ी कम रही, तब सत्तारूढ़ दल ने सरकार बनाई.
- 2025 में पहले चरण में रिकॉर्ड मतदान (लगभग 62%) से संकेत है कि जनता बदलाव के मूड में हो सकती है. हालांकि, शहरी बनाम ग्रामीण अंतर भी अहम रहेगा.