असम में अब नहीं होगी भैंस और बुलबुल की लड़ाई! गुवाहाटी हाईकोर्ट ने लगाया बैन
गुवाहाटी हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक याचिका पर सुनवाई के दौरान भैंसों और बुलबुल का झगड़ा कराने वाले कार्यक्रमों पर प्रतिबंध लगा दिया. कोर्ट में पीपुल्स फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (पेटा) ने इस संबंध में एक याचिका दायर की थी. जिसमें असम सरकार के उस फैसले को चुनौती दी गई जिसमें हर साल जनवरी में भैंस और बुलबुल की लड़ाई की अनुमति दी गई थी.;
Buffalo And Bulbul Fight Ban: देश के कई राज्यों में भैंस और बुलबुल की लड़ाई की जाती है. यह एक तरह का खेल कार्यक्रम होता है, जिसे देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग आते हैं. अब असम में इस तरह के खेल पर रोक लगा दी गई है. मंगलवार (17 दिसंबर) को गुवाहाटी हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई के दौरान भैंसों और बुलबुल का झगड़ा कराने वाले कार्यक्रमों पर प्रतिबंध लगा दिया.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, कोर्ट में पीपुल्स फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (पेटा) ने इस संबंध में एक याचिका दायर की थी. जिसमें असम सरकार के उस फैसले को चुनौती दी गई जिसमें हर साल जनवरी में भैंस और बुलबुल की लड़ाई की अनुमति दी गई थी. इस मामले की सुनवाई जस्टिस देवाशीष बरुआ ने की.
पेटा इंडिया की याचिका पर सुनवाई
कोर्ट ने माना कि भैंसों और बुलबुल की लड़ाई पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 का उल्लंघन है. बुलबुल की लड़ाई वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 का भी उल्लंघन है. कोर्ट ने कहा कि एसओपी, भारतीय पशु कल्याण बोर्ड बनाम ए. नागराजा मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 7 मई 2014 को पारित निर्णय का उल्लंघन है. सबूत के लिए पेटा इंडिया ने इन झगड़ों की जांच प्रस्तुत की थी, जिसमें पता चला कि भयभीत और गंभीर रूप से घायल भैंसों को पीटकर लड़ने के लिए मजबूर किया गया था. वहीं भूखे और नशे में धुत बुलबुलों को भोजन के लिए लड़ने के लिए मजबूर किया गया था.
पेटा का तर्क के दौरान
कोर्ट में सुनवाई पेटा इंडिया ने अवैध रूप से आयोजित की जाने वाली लड़ाइयों के अनेक उदाहरण प्रस्तुत किए थे और तर्क दिया था कि वर्ष के किसी भी समय लड़ाइयों की अनुमति देने से पशुओं के साथ भारी दुर्व्यवहार हो रहा है. पेटा की प्रमुख कानूनी सलाहकार अरुणिमा केडिया ने कहा, "भैंस और बुलबुल कोमल जानवर हैं, जो दर्द और भय महसूस करते हैं तथा वे हंसने वाली भीड़ के सामने खूनी लड़ाई में शामिल नहीं होना चाहते." पेटा ने आगे कहा, इस तरह की लड़ाइयां स्वाभाविक रूप से क्रूर होती हैं. इनमें भाग लेने के लिए जानवरों को दर्द. ये लड़ाइयां अहिंसा और करुणा के सिद्धांतों के भी विपरीत हैं, जो भारतीय संस्कृति और परंपरा का अभिन्न अंग हैं.