निजी कंपनी को दी 3000 बीघा ज़मीन, कमेटी बनी, रिपोर्ट आई… लेकिन आदेश किसने दिया? अब कोर्ट ने मांगा जवाब
असम के दीमा हसाओ ज़िले में आदिवासी भूमि का 3000 बीघा हिस्सा एक निजी कंपनी को खनन कार्य के लिए देने के फ़ैसले ने बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है. इस पर गुवाहाटी हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने अपने कदम का बचाव करते हुए कहा कि भूमि आवंटन पूरी तरह से कानूनी प्रक्रिया के तहत किया गया है.;
दीमा हसाओ की हरी-भरी पहाड़ियों और जनजातीय इलाक़े के बीच एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है. मामला महाबल सीमेंट्स को खनन के लिए 3000 बीघा भूमि देने का है.
असम सरकार ने बुधवार को गुवाहाटी हाईकोर्ट को बताया कि यह भूमि आवंटन पूरी तरह कानूनी प्रक्रिया से किया गया है. सरकार का कहना है कि भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय की मंज़ूरी एक अलग चरण है और वह बाद में तय होगी.
न्यायालय की चिंता: 'असाधारण' आवंटन
यह मामला तब गरमाया जब न्यायालय ने निजी कंपनी को इतनी बड़ी ज़मीन देने पर गंभीर चिंता जताई. सवाल यह था कि क्या इस आवंटन में पारदर्शिता और वैधानिक प्रक्रिया का पालन हुआ है? राज्य सरकार ने कोर्ट के सामने हलफ़नामा पेश किया. इसमें 21 अगस्त 2025 को जारी कार्यालय आदेश और उसके आधार पर बनी तीन सदस्यीय समिति का ज़िक्र था. समिति ने 29 अगस्त 2025 को अपनी रिपोर्ट भी दी थी.
कोर्ट की आपत्ति: आदेश किसने दिया?
हाईकोर्ट ने पाया कि इस अदालत ने कभी ऐसी जांच के आदेश ही नहीं दिए थे, फिर यह समिति क्यों बनी? इस पर अदालत ने राज्य सरकार से साफ़ जवाब मांगा. हालांकि कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को सरकार के हलफ़नामे पर प्रतिक्रिया देने का अवसर देने का आदेश भी दिया और इसके लिए 3 हफ़्तों का समय तय किया.
अगली सुनवाई की तैयारी
अब पूरा मामला 24 सितंबर 2025 को दोबारा अदालत में सुना जाएगा. यह सुनवाई सिर्फ़ भूमि आवंटन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सवाल भी खड़ा कर रही है कि पर्यावरण और स्थानीय समुदायों के अधिकारों को नज़रअंदाज़ कर विकास की दौड़ कितनी दूर तक जा सकती है. दीमा हसाओ की ज़मीन पर खनन का यह विवाद असम के लिए केवल एक कानूनी लड़ाई नहीं, बल्कि विकास बनाम पर्यावरण की पुरानी बहस का ताज़ा अध्याय है. असम सरकार अपनी प्रक्रिया को वैध बता रही है, वहीं अदालत इसकी गंभीर समीक्षा कर रही है. अब सबकी नज़रें 24 सितंबर पर टिकी हैं, जब यह तय होगा कि पहाड़ और जंगल किसके साथ खड़े होंगे, लोगों और प्रकृति के या फिर कारख़ानों और कंपनियों के.