दिन में खूबसूरत लेकिन रात में डरावना... जुबिन गर्ग को आखिर क्यों ले जाया गया लाजरूस आइलैंड? जानें कैसा रहा है इतिहास
सिंगापुर का लाजरूस आइलैंड दिन में खूबसूरत लेकिन रात में डरावना माना जाता है. ऐतिहासिक रूप से यह क्वारंटाइन और जेल क्षेत्र रहा है, जहां कई त्रासदियां जुड़ी हैं. गायक जुबिन गर्ग के वहां जाने से जुड़े सवाल उनकी पत्नी गरिमा सैकिया गर्ग ने उठाए हैं. उन्होंने आयोजकों की सुरक्षा और संवेदनशीलता पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं. जानें लाजरूस आइलैंड का रहस्य, इतिहास और जुबिन गर्ग से जुड़ी पूरी कहानी.;
सिंगापुर का लाजरूस आइलैंड दिन में जितना खूबसूरत दिखता है, रात में उतना ही डरावना माना जाता है. सुनहरी रेत, लहराते नारियल के पेड़ और शांत समुद्री नज़ारे देखने वालों को मोह लेते हैं. लेकिन इसके इतिहास में छिपे हैं ऐसे किस्से, जो इस जगह को डर और त्रासदी से जोड़ते हैं.19वीं सदी में यह आइलैंड बीमारियों के दौरान क्वारंटाइन ज़ोन रहा. यहां कई मरीजों को मुख्य भूमि से अलग कर रखा जाता था, जिनमें से अधिकतर लौटकर कभी नहीं आए.
बाद में यह जगह जेल नेटवर्क और अफीम के आदी लोगों के पुनर्वास केंद्र के रूप में भी इस्तेमाल हुई. 1900 के दशक में कई बड़ी आग ने इसकी पहचान को और भयावह बना दिया. 2016 तक इसके स्थायी निवासी भी यहां से चले गए और यह लगभग वीरान हो गया. आज हम इस जगह की बात क्यों कर रहे हैं. आपको बता दें कि पिछले दिनों यहीं पर भारत के सिंगर जुबिन गर्ग की मौत हुई थी. उनकी पत्नी ने सवाल उठाया कि इस वीरान आइलैंड पर क्यों ले जाया गया?
डर और अंधविश्वास का ठिकाना
स्थानीय लोगों की मान्यताओं के अनुसार आइलैंड पर अजीब घटनाएं होती रही हैं. पेड़ों के बीच चलते साए, रात की ठंडी हवाओं में असामान्य सरसराहट और रहस्यमयी आवाजें यहां की पहचान बन गईं. कई लोग मानते हैं कि यहां अजीबोगरीब मौतें और लापता होने की घटनाएं हुई हैं. यही कारण है कि सिंगापुर के निवासी भी इस आइलैंड को मनोरंजन की जगह मानकर नहीं जाते.
गरिमा सैकिया गर्ग ने क्या कहा?
गायक जुबिन गर्ग की पत्नी गरिमा सैकिया गर्ग ने मीडिया से बातचीत में सवाल उठाए कि आखिर उन्हें ऐसे विवादित और डरावने आइलैंड पर क्यों ले जाया गया? उन्होंने कहा कि इंटरनेट पर कई रिपोर्ट्स में यह जगह कोरोना काल में कब्रिस्तान और क्वारंटाइन सेंटर के रूप में बताई गई है. गरिमा ने यह भी दावा किया कि यहां अक्सर लोग लापता होते हैं, डूबकर मर जाते हैं और पोस्टमार्टम में केवल ‘ड्राउनिंग’ की वजह लिखी जाती है. उन्होंने साफ कहा, “जब होटल में आराम किया जा सकता था, तो जुबिन को लाजरूस आइलैंड क्यों ले जाया गया?”
आयोजकों पर उठ रहे सवाल
यह विडंबना है कि जहां जुबिन गर्ग ने पूरी जिंदगी संगीत और खुशियों को समर्पित की, वहीं उन्हें ऐसी जगह ले जाया गया जो अतीत में मौत, निर्वासन और भूतिया कहानियों से जुड़ी रही है. इस घटना ने आयोजकों की सोच और संवेदनशीलता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.
लाजरूस आइलैंड की दोहरी पहचान
दिन में यह आइलैंड सैलानियों को आकर्षित करता है, लेकिन इसके अतीत की काली परछाइयां हर बार याद दिलाती हैं कि यह जगह सुरक्षित नहीं मानी जाती. जुबिन गर्ग की घटना ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि केवल सुंदरता देखकर किसी जगह की असली हकीकत को नज़रअंदाज़ करना खतरनाक हो सकता है.
सबक और ज़िम्मेदारी
आज जुबिन गर्ग के फैंस और परिजनों के लिए सबसे अहम सवाल यही है कि यह फैसला क्यों लिया गया. इतिहास हमें याद दिलाता है कि खूबसूरती और खतरा अक्सर साथ-साथ चलते हैं. ऐसे में सांस्कृतिक प्रतीकों और कलाकारों की सुरक्षा के लिए आयोजकों और प्रशासन को कहीं अधिक सतर्क और ज़िम्मेदार होना चाहिए.