हिमंता के असम में ये कैसा विकास? केले के तनों पर शव रख पार करनी पड़ती है नदी, दशकों से मिल रहे केवल झूठे वादे
Assam News: एक ग्रामीण की मौत के बाद उसके शव को गांववालों ने केले के तनों से बनाई गई बेड़ा (Banana Raft) पर रखकर ब्रह्मपुत्र नदी पार कराया, क्योंकि यहां न तो कोई पुल है, न ही कोई पहुंचने लायक सड़क.बीते हफ्ते तीन गंभीर मरीजों को भी इसी तरह निकाला गया, जिनमें से एक की तो रास्ते में ही मौत हो गई.;
Assam News: असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा अपने कार्यकाल में राज्य के विकास की बातें करते अक्सर सुने जाते हैं. अभी कुछ महीने पहले भी उनका एक बयान आया था जब उन्होंने असम के विकास की बात की थी. अभी कुछ महीने पहले ही सीएम सरमा ने असम के विकास की बात दोहराई थी.
दिसंबर 2024 में राज्य के नागांव में उन्होंने कहा था, "असम अब विकास की ओर अग्रसर है, जिसमें सेमीकंडक्टर जैसे प्रमुख उद्योगों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है... राज्य सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए कई योजनाएं लागू कर रही है कि गरीबी शिक्षा तक पहुंच में बाधा न बने. इन पहलों का उद्देश्य छात्रों को सशक्त बनाना है, ताकि वे शिक्षा के माध्यम से जिम्मेदार नागरिक बन सकें."
लेकिन उसी असम के विकास की एक ऐसी तस्वीर भी है जो आपको झकझोर देगी. राज्य के माजुली जिले के भक्त चापोरी में हाल ही में जो दृश्य सामने आया, वह सिर्फ एक गांव की पीड़ा नहीं, बल्कि पूरे तंत्र की संवेदनहीनता का आईना है. एक ग्रामीण की मौत के बाद उसके शव को गांववालों ने केले के तनों से बनाई गई बेड़ा (Banana Raft) पर रखकर ब्रह्मपुत्र नदी पार कराया, क्योंकि यहां न तो कोई पुल है, न ही कोई पहुंचने लायक सड़क.
पुल नहीं, बस वादों की कब्रगाह
भक्त चापोरी के 16 गांव दशकों से ब्रह्मपुत्र के एक टापू पर बसे हैं. हर चुनाव में नेताओं ने पुल और तटबंध का वादा किया. कुछ साल पहले तो शिलान्यास भी हुआ. लेकिन आज भी इन गांवों को मुख्य भूमि से जोड़ने वाली कोई पक्की व्यवस्था नहीं है. एक ग्रामीण ने बताया, “हमने अपने परिजन की लाश केले के तनों पर ढोई। ये कोई पुरानी कहानी नहीं है, आज की सच्चाई है.”
एम्बुलेंस नहीं, ताबूत के लिए भी ट्रैक्टर
यहां एंबुलेंस या शव वाहन (Swargarath) नहीं पहुंच सकते. लोगों को बीमार या मृत व्यक्ति को ट्रैक्टर, नाव या पैदल उठाकर बाहर ले जाना पड़ता है. बीते हफ्ते तीन गंभीर मरीजों को भी इसी तरह निकाला गया, जिनमें से एक की तो रास्ते में ही मौत हो गई.
विधायक भी ठेकेदार, पर काम अब तक अधूरा
स्थानीय विधायक भुवन गाम पर आरोप है कि वह पुल निर्माण प्रोजेक्ट के ठेकेदार भी हैं. ग्रामीणों का कहना है कि वे चुनावों में आते हैं, वादे करते हैं, लेकिन काम शुरू नहीं करते. गांव वाले कहते हैं, “जब चुनाव आता है, तो बैनर और वादे आते हैं. जब हम मदद के लिए चिल्लाते हैं, तो सरकार खामोश हो जाती है.”
बारिश आती है, तो सांसें थम जाती हैं
भक्त चापोरी के लोग अब आने वाले मानसून से डरे हुए हैं. हर साल बाढ़ उनकी अस्थायी नावें, पुल और उम्मीदें बहा ले जाती है. सरकारी मदद आती नहीं, और ज़िंदगी एक जुए की तरह जीनी पड़ती है.
ये बस एक गांव की बात नहीं है...
यह सिर्फ भक्त चापोरी की कहानी नहीं, बल्कि असम के उन तमाम नदी-किनारे बसे गांवों की सच्चाई है, जिन्हें विकास के नक्शे पर बस नाम भर के लिए रखा गया है. जहां 21वीं सदी में भी लोग लाशें कंधों और केले के तनों पर ढोते हैं.
सवाल है कि क्या एक पुल की मांग करना गुनाह है? क्या इज्जत से किसी को विदा देना भी अब गांववालों की हैसियत से बाहर हो गया है? भक्त चापोरी की चुप चीखें शायद सुनी नहीं जातीं, लेकिन जब इतिहास लिखा जाएगा, तो विकास की इस 'चुप्पी' को जरूर दर्ज किया जाएगा.