असम सरकार ने 63 विदेशियों को क्यों नहीं भेजा उनके देश? सामने आई वजह

असम सरकार ने लंबे समय से 63 विदेश नागरिकों को कैद में रखा हुआ है. उन्हें रिहा नहीं किया गया. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाई. अब राज्य सरकार ने इसके पीछे की चुनौतियों के बारे में बताया है. अधिकारी ने कहा कि अन्य सभी मामलों में, हमने विदेश मंत्रालय को रिपोर्ट भेज दी है, लेकिन इन 63 लोगों ने बांग्लादेश में एक पता नहीं बताया है, जहां से हम मानते हैं कि वे वहां से हैं. इसलिए इन्हें अभी तक नहीं भेजा गया है.;

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Assam Government: असम में 270 विदेशी नागरिकों को कैद करके रखा गया है. उन्हें अब तक उनके देश नहीं भेजा गया. इस मामले पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की और असम सरकार को फटकार लगाई है. कोर्ट ने कहा कि सरकार क्या वह किसी "मुहूर्त" का इंतजार कर रही है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुयान की बेंच ने की. असम सरकार राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को अपडेट करने की प्रक्रिया के दौरान 63 लोगों को विदेशी घोषित किया था. राज्य सरकार ने इन्हें कैद में रखा है. अब कोर्ट ने 63 विदेशियों को रिहा करने का आदेश दिया है. राज्य ने तर्क दिया कि उसे अपने मूल देश में विदेशियों का पता नहीं है, लेकिन अदालत इससे सहमत नहीं थी. हालांकि सरकार के लिए विदेशियों को वापस भेजना इतना आसान नहीं है.

कोर्ट ने लगाई सरकार की क्लास

जस्टिस ओका ने कहा कि असम सरकार सबूतों को दबा रही है. इस पर भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब दिया कि उन्होंने कार्यपालिका के सर्वोच्च अधिकारी से बात की है और "कुछ कमियों" के लिए माफी मांगी है. ओका ने कहा, "हम आपको झूठी गवाही का नोटिस जारी करेंगे. आपको अपना बयान साफ-साफ बताना चाहिए." राज्य के वकील ने जवाब दिया, "छिपाने का कोई इरादा नहीं है". जस्टिस भुयान ने कहा, "जब आप किसी व्यक्ति को विदेशी घोषित कर देते हैं, तो आपको अगला तार्किक कदम उठाना चाहिए. आप उन्हें हमेशा के लिए हिरासत में नहीं रख सकते. अनुच्छेद 21 लागू है. असम में कई विदेशी हिरासत केंद्र हैं. आपने कितनों को निर्वासित किया है?"

सरकार ने बताई क्या है चुनौती?

इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए राज्य के अधिकारियों ने बताया कि कैद में रखे विदेशी नागरिकों को निर्वासित करना कहने से आसान है. शिविर में 270 कैदियों के बीच "विदेशियों" की दो श्रेणियां दिखाई देती हैं. 103 रोहिंग्या लोग, 32 चिन लोग और सेनेगल का एक व्यक्ति है, जिन्हें कोर्ट में भेजा गया था, जहां उन्हें विदेशी अधिनियम, नागरिकता अधिनियम और पासपोर्ट अधिनियम के उल्लंघन के लिए सजा सुनाई गई और दोषी ठहराया गया. ये व्यक्ति दूसरे देशों के नागरिक हैं, और जेलों में अपनी सजा पूरी करने के बाद, उन्हें निर्वासन का इंतजार करने लिए "ट्रांजिट कैंप" में रखा गया है.

रिपोर्ट में बताया गया कि बाकी के 133 कैदियों को असम में विदेशी न्यायाधिकरणों द्वारा "विदेशी" घोषित किया गया है. न्यायाधिकरणों को दो प्रकार के मामले प्राप्त होते हैं - वे जिन्हें सीमा पुलिस द्वारा तब भेजा जाता है जब उन्हें किसी के विदेशी होने का शक होता है और वे जो मतदाता सूची में "संदिग्ध" मतदाताओं के रूप में लिस्ट में शामिल हैं. असम सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, इन 133 घोषित विदेशियों में से 70 ने "बांग्लादेशी नागरिक होने की बात स्वीकार कर ली है" और बांग्लादेश में पते शेयर किए हैं. एक अन्य व्यक्ति को जमानत पर रिहा कर दिया गया है. हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने जिन 63 लोगों का उल्लेख किया है, उन्होंने कोई अपना पता नहीं बताया है कि वो कहां से आए हैं.

कंफर्म करनी होगी है व्यक्ति की डिटेल

एक अधिकारी ने कहा, इन सभी मामलों में हमें एक राष्ट्रीयता सत्यापन स्थिति रिपोर्ट विदेश मंत्रालय को भेजनी होती है, जो इसे दूसरे देश के दूतावास को भेजती है. एक बार जब दूतावास हमें बताता है कि व्यक्ति वास्तव में उस देश का नागरिक है और पता सही है, तो हम उन्हें बीएसएफ को सौंप देते हैं, जो इसे दूसरे देश के अर्धसैनिक बल के साथ ले जाता है.

अधिकारी ने कहा कि अन्य सभी मामलों में, हमने विदेश मंत्रालय को रिपोर्ट भेज दी है, लेकिन इन 63 लोगों ने बांग्लादेश में एक पता नहीं बताया है, जहां से हम मानते हैं कि वे वहां से हैं. इसलिए इन्हें अभी तक नहीं भेजा गया है. राज्य सरकार अब इन व्यक्तियों की लिस्ट "बांग्लादेश" इस सप्ताह विदेश मंत्रालय को भेजने पर विचार कर रही है.

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