जब हनुमानजी को मिली मृत्युदंड की सजा और उन पर चलाया गया ब्रह्राास्त्र, जानिए फिर क्या हुआ...
हनुमानजी भगगवान श्रीराम के परम भक्त हैं और भगवान राम भी अपने भक्त हनुमान से हमेशा ही प्रसन्न रहते हैं. हनुमान जी चिरंजीवी हैं और सभी सात चिरंजीवियों में से एक हैं और ये आज भी पृथ्वी पर वास करते हैं.;
हनुमानजी भगगवान श्रीराम के परम भक्त हैं और भगवान राम भी अपने भक्त हनुमान से हमेशा ही प्रसन्न रहते हैं. हनुमान जी चिरंजीवी हैं और सभी सात चिरंजीवियों में से एक हैं और ये आज भी पृथ्वी पर वास करते हैं. हनुमान जी त्रेता, द्वापर और कलयुग तीनों युगों में रहे.
लेकिन क्या आपको पता है हनुमान को भगवान राम ने मृत्युदंड की सजा सुनाई थी. आइए जानते हैं कि क्या है कथा..
नारद मुनि की शरारत
लंका विजय के बाद जब भगवान राम अयोध्या लौटे और राजा बने, तब एक दिन नारद मुनि दरबार में पहुंचे. अपनी आदत के मुताबिक उन्होंने माहौल को उलझाने की कोशिश की. नारदजी ने हनुमान जी से कहा कि सभी ऋषियों को प्रणाम करो लेकिन ऋषि विश्वामित्र को छोड़कर। कारण यह बताया कि वे पहले राजा रह चुके हैं. हनुमान जी ने नारद की बात मानकर सभी को प्रणाम किया लेकिन विश्वामित्र जी को छोड़ दिया. हालांकि विश्वामित्र इससे अप्रभावित रहे और सामान्य व्यवहार करते रहे.
विश्वामित्र का क्रोध और राम का धर्मसंकट
नारदजी ने लगातार उकसाकर स्थिति को बिगाड़ दिया. अंततः ऋषि विश्वामित्र क्रोधित हो उठे और भगवान राम से मांग की कि वे हनुमान को मृत्युदंड दें. भगवान राम अपने गुरु की आज्ञा के विरुद्ध नहीं जा सकते थे. धर्म और मर्यादा निभाने के लिए उन्होंने हनुमान जी पर बाण चलाने का आदेश दिया.
राम नाम का प्रभाव
जब भगवान राम के बाण हनुमान जी पर छोड़े गए तो वे बार-बार “राम-राम” का जाप करते रहे. उनके रामभक्ति के कवच के सामने कोई भी बाण असर नहीं कर पाया. पूरा दरबार आश्चर्यचकित था कि कैसे प्रभु श्रीराम के अस्त्र भी हनुमान जी को छू नहीं पा रहे थे.
ब्रह्मास्त्र का भी असर नहीं
गुरु की आज्ञा का पालन करने के लिए भगवान राम ने अंत में ब्रह्मास्त्र चलाने का निर्णय लिया. सभी लोग स्तब्ध रह गए. लेकिन जब ब्रह्मास्त्र भी हनुमान जी पर चला, तब भी उनका कुछ नहीं बिगड़ा. उनकी अटूट भक्ति और राम नाम का बल इतना महान था कि ब्रह्मास्त्र भी निष्फल हो गया.
नारद की स्वीकारोक्ति और सत्य का प्रकट होना
यह दृश्य देखकर नारद मुनि स्वयं विश्वामित्र के पास पहुंचे और अपनी गलती स्वीकार की. उन्होंने माना कि यह सब उनकी शरारत थी. इसके बाद विश्वामित्र शांत हो गए और हनुमान जी को मृत्युदंड से मुक्त कर दिया गया.