Mahabharat Facts: आखिर कैसे सूर्यपुत्र से सूतपुत्र बने कर्ण, जानें इसके पीछे की वजह

Mahabharat Facts: महाभारत में कर्ण का जीवन बहुत दुखदायक था. वह पांडवों में सबसे बड़े थे, लेकिन उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था, जिसकी वजह से उन्हें हमेशा अपमान झेलना पड़ा. कर्ण की जीवन गाथा सिखाती है कि चाहे जीवन कितना भी कठिन हो, अपने कर्तव्य और आदर्शों को निभाना ही सच्ची वीरता है.;

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Edited By :  संस्कृति जयपुरिया
Updated On : 19 Nov 2025 3:21 PM IST

 Mahabharat Facts: महाभारत में कर्ण का किरदार बहुत ही प्रेरणादायक है. कुंती के गर्भ से जन्म लेने वाले कर्ण, सूर्यपुत्र थे. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि कुंती अविवाहित थी. कर्ण के जन्म से पहले कुंती ने सूर्यदेव को बुलाकर वरदान मांगा था, जिसके बाद उन्होंने कर्ण को जन्म दिया. लेकिन कुंती ने उन्हें जन्म के तुरंत बाद त्याग दिया था, ताकि बदनामी न हो. अधिरथ और राधा ने उन्हें गोद लेकर पाल-पोस कर बड़ा किया.अधिरत सूत थे, इस कारण से उन्हें समाज में "सूतपुत्र" कहा गया, जो उनके जीवनभर उनके लिए अपमान का कारण बना.

कर्ण अपने दानवीर स्वभाव के लिए प्रसिद्ध थे. उन्होंने अपने कवच-कुंडल, जो उनकी सुरक्षा का माध्यम थे, इंद्र को दान कर दिए. यहां तक कि मृत्यु के समय उन्होंने अपना सोने का दांत भी दान कर दिया. भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया था कि दान तभी सार्थक होता है जब वह सही भाव से किया जाए. कर्ण ने इसे अपने जीवन में पूरी तरह अपनाया.

युद्धस्थल से हट जाने की वजह

महाभारत के अनुसार, कर्ण के पास दिव्य कवच-कुंडल थे, जिनके बिना कोई भी उन्हें परास्त नहीं कर सकता था. उनकी शिक्षा भी दिव्यास्त्रों पर केंद्रित थी, जिसे उन्होंने परशुराम से प्राप्त किया था. लेकिन जब परशुराम को पता चला कि कर्ण क्षत्रिय नहीं, बल्कि सूतपुत्र हैं, तो उन्होंने कर्ण को श्राप दिया कि वह अपने दिव्यास्त्र भूल जाएंगे.

कर्ण के जीवन में कई ऐसे पल आए जब उन्हें युद्धभूमि से पीछे हटना पड़ा- पहला, कर्ण घोषयात्रा के दौरान चित्रसेन से हार गए और अपमानित होकर युद्धस्थल छोड़कर चले गए. दूसरा, अज्ञातवास के अंतिम दिन अर्जुन ने विराट युद्ध में अकेले कर्ण और कौरव सेना को हरा दिया. यह कर्ण के लिए एक और बड़ी हार थी.

कर्ण के जीवन की दिशा बदल गई

दुर्योधन ने कर्ण को अंगदेश का राजा घोषित किया, जिससे कर्ण को सामाजिक मान्यता मिली. इसके बावजूद, कर्ण के जीवन में संघर्ष कम नहीं हुए. समाज में राजवंश से न होने के कारण उन्हें हमेशा अपमान सहना पड़ा. कर्ण की जीवन गाथा सिखाती है कि चाहे जीवन कितना भी कठिन हो, अपने कर्तव्य और आदर्शों को निभाना ही सच्ची वीरता है.

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