मुस्लिम मना सकते हैं दिवाली, बशर्ते.... जानिए इस्लाम की नजर में क्या है इसकी हकीकत

इस साल दिवाली का त्यौहार 20 अक्टूबर को मनाया जाएगा. इस त्यौहार पर चारों ओर रौशनी ही रौशनी नजर आती है. यह दिन भगवान राम के आयोध्या लौटने की याद में मनाया जाता है. दिवाली हिंदुओं का त्यौहार है, ऐसें मे सवाल उठता है कि क्या मुस्लिम धर्म के लोग यह पर्व मना सकते हैं?;

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Edited By :  हेमा पंत
Updated On : 16 Oct 2025 2:04 PM IST

भारत में त्यौहारों की धूमधाम ही अलग होती है. खासतौर पर होली और दिवाली का त्यौहार की रौनक देखने लायक होती है. दीपावली जब आती है, तो पूरा देश दीपों से जगमगाता है, मिठाइयों की खुशबू फैलती है और चेहरे पर मुस्कानें बिखर जाती हैं. यह त्यौहार राम जी के वनवास पूरा कर आयोध्या लौटने की खुशी में मनाया जाता है. 

भारत के धर्मनिरपेक्ष देश है. यहां हर धर्म के लोग आपस में मिलजुलकर रहते हैं और अपने-अपने त्योहारों को निभाते हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या मुसलमान भी दीपावली मना सकते हैं? क्या इस्लाम उन्हें इसकी इजाज़त देता है? 

क्या कहता है इस्लाम?

यही सवाल लेकर हमने जमायत उलेमा-ए-हिंद के पूर्व महासचिव अब्दुल हामिद से बात की. उन्होंने बहुत साफ़ शब्दों में समझाया कि इस्लाम में वही काम जायज़ माने जाते हैं जिनका आदेश अल्लाह तआला और हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तरफ़ से दिया गया हो. यानी जिन बातों का ज़िक्र कुरआन या पैग़ंबर की ज़िन्दगी में मिलता है, वही सही मानी जाती हैं. 

क्या मुसलमान मना सकते हैं दिवाली?

अब्दुल हामिद ने आगे बताया कि मुसलमान दीपावली मना सकते हैं, लेकिन एक शर्त के साथ कि वे पूजा में शामिल नहीं हो सकते हैं. यानी अगर बात आपसी भाईचारे और सामाजिक रिश्तों की हो, तो उसमें कोई मनाही नहीं है. किसी हिंदू परिवार को दीपावली की शुभकामनाएं देना, उनके घर जाना या साथ बैठकर मिठाइयां खाना, यह सब सामाजिक व्यवहार के तहत आता है और इस पर इस्लाम कोई रोक नहीं लगाता, लेकिन अगर बात पूजा या धार्मिक अनुष्ठानों की हो, तो उसमें शरीक होना इस्लामिक दृष्टि से जायज़ नहीं माना गया है.

भाईचारे और एकता का प्रतीक 

अब्दुल हामिद के मुताबिक, दीपावली का उत्सव हमारे समाज में भाईचारे और एकता का प्रतीक बन सकता है, अगर लोग इसमें सामाजिक रूप से जुड़ें, ना कि धार्मिक तौर पर. दीपावली का असली मतलब अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ना. अगर इस पर्व के ज़रिये हम सामाजिक दूरियां मिटाकर एक-दूसरे के करीब आते हैं, तो यही असल रौशनी है. धर्म अपनी जगह है, लेकिन इंसानियत की चमक हर दिल में रौशन रहनी चाहिए.

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