16वीं सदी की मरोड़ी कढ़ाई वाला सूट पहन डांडिया नाईट में चमकी Nita Ambani, सोने और चांदी के धागों से तैयार हुआ आउटफिट
नीता अंबानी जब ऐसे ऑउटफिट पहनती हैं तो यह सिर्फ फैशन का हिस्सा नहीं होता. यह भारत की समृद्ध कला और शिल्पकला को सम्मान देने का एक तरीका होता है. उनके लिए हर पहनावा भारत की धरोहर को दुनिया तक पहुंचाने का ज़रिया है.;
रिलायंस फाउंडेशन की चेयरपर्सन नीता अंबानी सिर्फ एक बिजनेसवुमन या सोशल एक्टिविस्ट ही नहीं हैं, बल्कि भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को दुनिया तक पहुंचाने का एक बड़ा सपना भी देख रही हैं. उनका मानना है कि भारत की परंपराएं, खासकर वस्त्रकला और कढ़ाई जैसे क्राफ्ट, इतनी यूनिक और शानदार हैं कि उन्हें ग्लोबल मंच पर पहचान मिलनी ही चाहिए. नीता अंबानी अक्सर अपने ऑउटफिट से भी इस मैसेज को आगे बढ़ाती हैं. उनका पारंपरिक पहनावा, खासकर उनकी साड़ियां और सलवार सूट, भारत की वेरियस और यूनिक टेक्सटाइल आर्ट का जीता जागता उदाहरण हैं.
हाल ही में नीता अंबानी ने मुंबई के जियो वर्ल्ड कन्वेंशन सेंटर में ऑर्गनाइज डांडिया फेस्टिवल में शिरकत की. इस अवसर पर उन्होंने डिज़ाइनर संगीता किलाचंद का बनाया हुआ गुलाबी रंग का खूबसूरत सलवार सूट पहना. इस पर कच्छ की मशहूर मरोड़ी कढ़ाई की गई थी, जिसने इसे और भी शाही और आकर्षक बना दिया.
संगीता किलाचंद की डिजाइनिंग में मरोड़ी कढ़ाई
संगीता किलाचंद ऐसी डिज़ाइनर हैं जो भारतीय शिल्पकला (Indian sculpture) को मॉडर्न स्टाइल में प्रेजेंट करने के लिए जानी जाती हैं. उनका मकसद है कि भारत की पुरानी कलाओं को नया जीवन दिया जाए और उन्हें आज के शहरी दर्शकों तक पहुंचाया जाए. फ़ैशन डिज़ाइन काउंसिल ऑफ़ इंडिया (FDCI) के मुताबिक, संगीता ने अपने करियर की शुरुआत से ही मरोड़ी कढ़ाई को फिर नए स्टाइल में लाने पर जोर दिया है. यह कला भारत के शाही अतीत से जुड़ी है और गुजरात के कच्छ और भुज क्षेत्रों से इसका जन्म हुआ था.
मरोड़ी कढ़ाई का इतिहास
मरोड़ी कढ़ाई कोई साधारण कला नहीं है. इसका इतिहास 16वीं और 17वीं शताब्दी तक जाता है. उस समय कच्छ के मोची और शिल्पकार शाही दरबार के लिए कपड़ों पर कढ़ाई करते थे. धीरे-धीरे इसी से मरोड़ी कला का जन्म हुआ. यह कढ़ाई सोने और चाँदी के धागों से की जाती है. इन धागों को खास तरीके से सिलबट्टे पर मरोड़कर तैयार किया जाता है, जिससे उनका रूप अनोखा और चमकदार हो जाता है. इसी वजह से इसे मरोड़ी कहा गया, जिसका मतलब है 'मुड़ा हुआ'. जब यह कढ़ाई कपड़े पर होती है, तो उसका डिज़ाइन हल्का उभरा हुआ दिखाई देता है, जिससे यह त्रि-आयामी (3D इफ़ेक्ट) वाला लगता है.
मरोड़ी कढ़ाई बनाने की प्रक्रिया
इस कढ़ाई को तैयार करना बेहद मेहनत का काम है. सबसे पहले छह पतले-पतले सोने या चांदी के तारों को बुनकर धागा तैयार किया जाता है. यह धागे लकड़ी की चारपाई पर तने हुए कपड़े पर लगाए जाते हैं. कपड़ा चाहे राई बंधेज, लहरिया या पटोला जैसा कोई भी ट्रेडिशनल क्लोथ्स हो सकता है. फिर कारीगर इसमें मरोड़ी धागे और सेक्विन्स का इस्तेमाल करके शानदार डिज़ाइन बनाते हैं. हर एक धागा और हर एक टांका हाथ से डाला जाता है, जिससे यह कला और भी वैल्युएबल बन जाती है.