एक चुटकी धूल की कीमत तुम क्या जानो... हीरे से भी ज्यादा महंगी है आपके पैरों की मिट्टी, जानें कहां मिलती है
"वो तो मेरे जूतों की धूल भी नहीं!" ये सुनकर लगता है सामने वाला 'कंगाल' हो गया, बिल्कुल बेकार. धूल-मिट्टी को हम कुछ नहीं समझते हैं, हर गली-नुक्कड़ पर बिखरी पड़ी. लेकिन रुकिए! अगर ये धूल गायब हो जाए, तो धरती की सारी हरियाली 'उड़न-भाषा' बन जाएगी. न पेड़ उगेंगे, न फसलें लहलहाएंगी. धूल ही तो जीवन का 'अनकहा राज़' है.;
जब कभी किसी को नीचा दिखाना होता है तो अक्सर यह कहा जाता है कि तुम तो मेरे पैरों की धूल भी नहीं हो. धूल-मिट्टी को हम कुछ नहीं समझते हैं, लेकिन कहते है न इस धरती पर हर चीज का अपना महत्व है. इसलिए क्या आप जानते हैं कि यही धूल हीरे से भी ज़्यादा कीमती हो सकती है?
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सुनने में अजीब लगे, मगर सच यही है. इसी धूल की कीमत करोड़ों में आंकी गई है. तो अगली बार पैरों की मिट्टी को हल्के में लेने से पहले ज़रा ठहरिए, क्योंकि आज हम आपको बताने जा रहे हैं उस धूल की कहानी, जो आम नहीं… बल्कि दुनिया की सबसे महंगी मानी जाती है.
कहां की धूल है सबसे महंगी?
दुनिया में कुछ धूल ऐसी भी होती है जो आम नहीं, बल्कि हर किसी की नज़र का सितारा बन जाती है. इनकी कीमत सुनकर लोग हैरानी से दांतों तले उंगली दबा लेते हैं, क्योंकि ये धूल नहीं बल्कि दुर्लभ खजाना होती है. लेकिन सबसे दिलचस्प सच तो यह है कि सबसे महंगी धूल हमारी धरती की नहीं, बल्कि चांद की है. वही चांद, जिसे हम रात में दूर से निहारते हैं. जी हां, वो चांदनी रातों वाली चांद की धूल, जो 'हाथों के बीच फिसलती' तो करोड़ों उड़ा ले जाती है.
4 करोड़ है धूल की कीमत
न्यूयॉर्क के नामी बोनहाम्स ऑक्शन हाउस में उस वक्त हर कोई हैरान रह गया, जब चांद की एक नन्ही-सी धूल ने रिकॉर्ड तोड़ दिया. जिस धूल की कीमत पहले महज़ कुछ लाख रुपये आंकी जा रही थी, उस पर बोली लगते-लगते रकम सीधे करोड़ों में पहुंच गई. नीलामी का माहौल ऐसा गर्म हुआ कि चुटकी भर धूल की कीमत करीब 4 करोड़ रुपये तक जा पहुंची. खास बात यह है कि यही वह धूल है, जिसे नील आर्मस्ट्रॉन्ग ने चांद की सतह पर पहला कदम रखते ही उठाया था. अपोलो मिशन के उस ऐतिहासिक पल ने साधारण-सी धूल को इतिहास का अनमोल उपहार बना दिया.
क्यों है चांद की धूल 'सोने सी'?
यह धूल किसी मामूली मिट्टी की तरह नहीं, बल्कि एक बेशकीमती खजाने जैसी मानी जाती है. इसकी सबसे बड़ी वजह है इसकी जबरदस्त कमी. पूरी दुनिया में अब तक सिर्फ तीन ही देश इसे चांद से धरती तक ला सके हैं. इनमें अमेरिका, रूस और चीन शामिल है.
किस देश के पास कितनी धूल
अमेरिका ने अपने अपोलो मिशनों के दौरान करीब 382 किलो चंद्रमा की चट्टानें और धूल इकट्ठा की, जबकि रूस के पास सभी अभियानों को मिलाकर सिर्फ 300 ग्राम ही पहुंच पाई. चीन ने हालिया मिशनों में लगभग 3 किलो तक चांद की धूल जमा की है. इस धूल की कीमत इसलिए भी आसमान छूती है क्योंकि इसे चांद से लाना बेहद महंगा और जोखिम भरा काम है. ऊपर से वैज्ञानिकों की दिलचस्पी इसे और अनमोल बना देती है, क्योंकि शोध की दुनिया में चांद की यह धूल भविष्य के कई रहस्यों की कुंजी मानी जाती है.
कैसी होती है चांद की धूल?
धरती की मिट्टी जहां मुलायम और गोल कणों वाली होती है, वहीं चांद की धूल बिल्कुल अलग मिज़ाज रखती है. इसके कण इतने नुकीले होते हैं कि कांटों की तरह अंतरिक्ष यान, रोवर और वैज्ञानिक उपकरणों को नुकसान पहुंचा सकते हैं. चांद पर हवा न होने के कारण यह धूल उड़ती नहीं, लेकिन जैसे ही कोई मशीन या अंतरिक्ष यात्री वहां हरकत करता है, यह महीन धूल हर चीज़ से चिपक जाती है और परेशानी खड़ी कर देती है.