क्लीन एयर नहीं तो हेल्दी बेबी नहीं! पॉल्यूशन बन रहा प्रेग्नेंट वुमन और बच्चे के लिए खतरा, IIT-IIPS की रिपोर्ट में बड़ा खुलासा
देश के कई शहरों में बढ़ता पॉल्यूशन अब सिर्फ सांस लेने में दिक्कत या आंखों में जलन की वजह नहीं रह गया है. हाल ही में IIT और IIPS की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि गंदी हवा गर्भवती महिलाओं और उनके होने वाले बच्चों के लिए भी खतरनाक साबित हो रही है.;
दिल्ली-एनसीआर इन दिनों फिर से धुंध और जहरीली हवा के आगोश में है. सड़कों पर फैली धुंध से लेकर आसमान में लटकते धुएं तक, हर सांस में जहर घुला है. अब तक हम प्रदूषण को खांसी, दमा और हार्ट अटैक से जोड़कर देखते आए हैं. लेकिन अब सामने आया है कि यह जहर उन मासूम जिंदगियों तक पहुंच रहा है जो अभी मां के गर्भ में पल रही हैं.
जहरीली हवा का हर कण मां और बच्चे दोनों की सेहत के लिए जहर साबित हो रहा है. आईआईटी दिल्ली और आईआईपीएस मुंबई की एक जॉइंट रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि प्रदूषित हवा में मौजूद महीन कण (PM2.5) गर्भवती महिलाओं में समय से पहले डिलीवरी और कम वज़न वाले बच्चों के जन्म का खतरा कई गुना बढ़ा देते हैं
क्या कहती है रिपोर्ट?
एक हालिया स्टडी ने देश को झकझोर कर रख दिया है. यह शोध आईआईटी दिल्ली, इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पॉपुलेशन साइंसेज (IIPS), मुंबई, और यूके व आयरलैंड की संस्थाओं ने मिलकर किया है. रिपोर्ट में पाया गया कि हवा में मौजूद PM2.5 जैसे सूक्ष्म कण प्रेग्नेंट महिलाओं और उनके बच्चों के लिए बेहद खतरनाक साबित हो रहे हैं. शोध में यह भी सामने आया कि जो महिलाएं लंबे समय तक जहरीली हवा में सांस लेती हैं, उनमें समय से पहले बच्चे के जन्म का खतरा 70% तक बढ़ जाता है. वहीं कम वजन वाले बच्चों के जन्म की संभावना 40% तक बढ़ जाती है. और हर बार जब हवा में PM2.5 का स्तर 10 माइक्रोग्राम पर क्यूबिक मीटर बढ़ता है, तो प्रीमैच्योर डिलीवरी का खतरा 12% बढ़ जाता है.
भारत के आंकड़े डराने वाले हैं
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS-5) के मुताबिक, साल 2019 से 2021 के बीच भारत में 13% बच्चे समय से पहले और 17% बच्चे कम वजन के पैदा हुए. एक्सपर्ट्स का मानना है कि इसमें सबसे बड़ा कारण हवा की घटती क्वालिटी है. आईआईटी–IIPS की रिपोर्ट कहती है कि प्रदूषण से भरी हवा मां के शरीर के मेटाबॉलिज्म को बिगाड़ देती है. इससे शरीर में ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस, सूजन और प्लेसेंटा (नाल) की कार्यक्षमता में गड़बड़ी होती है. यही सब गर्भ में पल रहे बच्चे के विकास को रोक देता है.
दूसरा और तीसरा ट्राइमेस्टर होता है सेंसेटिव
एक्सपर्ट्स का कहना है कि गर्भावस्था के दूसरे और तीसरे ट्राइमेस्टर यानी बीच और आखिरी महीनों में बच्चे का विकास सबसे तेजी से होता है. ऐसे समय में अगर मां लगातार प्रदूषित माहौल में रहती है, तो उसका असर सीधे बच्चे पर पड़ता है. इससे बच्चे का समय से पहले जन्म हो सकता है, मृत शिशु जन्म (स्टिलबर्थ) की संभावना बढ़ जाती है, या फिर बच्चे में लंबे समय तक चलने वाली स्वास्थ्य दिक्कतें हो सकती हैं.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
इंडिया टूडे की रिपोर्ट के मुताबिक, जब हवा में जहरीले कण बढ़ जाते हैं, तो वे गर्भ में पल रहे बच्चे तक ऑक्सीजन और न्यूट्रियंट्स के फ्लो कम कर देता है. इससे मां के शरीर में सूजन और हार्मोनल गड़बड़ी शुरू हो जाती है, जिससे बच्चे के अंगों का सही विकास रुक जाता है.तीसरे ट्राइमेस्टर में खतरा सबसे ज्यादा होता है क्योंकि इस समय अगर हवा में PM2.5, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड या ओजोन का लेवल बढ़ जाए, तो बच्चे का वजन कम होने और उसके कमजोर पैदा होने की संभावना बहुत बढ़ जाती है.
प्रदूषण से बढ़ रहे जन्मजात बीमारियां
एक्सपर्ट का कहना है कि हवा में मौजूद बेंजीन और पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (PAHs) जैसे प्रदूषक बच्चे के दिल, दिमाग या चेहरे के विकास में भी रुकावट डाल सकते हैं. इससे हार्ट डिफेक्ट, न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट या क्लिफ्ट पैलेट जैसी जन्मजात बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है.
कम वजन और समय से पहले जन्म की लंबी मार
कम वजन या समय से पहले पैदा हुए बच्चों के लिए मुश्किलें यहीं खत्म नहीं होतीं. ऐसे बच्चे आगे चलकर कई गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करते हैं जैसे —
- शिशु मृत्यु दर का बढ़ा खतरा
- विकास में देरी या सीखने की दिक्कतें
- भविष्य में डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर और हार्ट डिजीज का खतरा
मां और बच्चे दोनों पर पड़ता है असर
एक्सपर्ट का कहना है कि इसका असर केवल बच्चे पर ही नहीं, बल्कि मां पर भी पड़ता है. लंबे समय तक प्रदूषण में रहने से महिलाओं में प्री-एक्लेम्पसिया, गर्भावस्था के दौरान हाई ब्लड प्रेशर, गर्भपात या स्टिलबर्थ जैसी समस्याएं बढ़ जाती हैं.