जानिए क्या होता है लिपिड प्रोफाइल टेस्ट, जिससे पता चलता है हृदय रोग
दिल की जांच में अक्सर डॉक्टर लिपिड प्रोफाइल जांच करने के लिए कहते हैं। आज समझते हैं कि यह टेस्ट क्या होता है और इसमें किस किस चीज की जांच की जाती है।;
बढ़ते हृदय रोगों और हार्ट अटैक के मामलों के बीच हर किसी में अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता आ गई है। ऐसे में कई लोग बिना किसी लक्षण के भी कार्डियोलॉजिस्ट से अपना रेगुलर चेकअप कराते हैं। दिल की जांच में अक्सर डॉक्टर लिपिड प्रोफाइल जांच करने के लिए कहते हैं। आज समझते हैं कि यह टेस्ट क्या होता है और इसमें किस किस चीज की जांच की जाती है।
लिपिड प्रोफाइल को लिपिड पैनल भी कहते हैं। इसमें खून में मौजूद विभिन्न प्रकार के कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड का टेस्ट होता है।
टोटल कोलेस्ट्रॉल
टोटल कोलेस्ट्रॉल से पता चलता है कि खून में कुल कितना कोलेस्ट्रॉल मौजूद है। यूं तो शरीर को सही तरीके से काम करने के लिए कुछ कोलेस्ट्रॉल आवश्यक होता है, लेकिन अगर कोलेस्ट्रॉल की मात्रा ज्यादा बढ़ जाती है, तो यह आर्टरीज के अंदर जमा होने लगता है। कोलेस्ट्रॉल का उचित स्तर 200 mg/dL से कम होता है।
एचडीएल कोलेस्ट्रॉल
एचडीएल कोलेस्ट्रॉल को ‘गुड’ कोलेस्ट्रॉल कहते हैं क्योंकि यह हृदय रोग होने से रोकता है। यह खून में से अतिरिक्त कोलेस्ट्रॉल को लिवर में पहुंचाकर उसे शरीर से बाहर निकालने में मदद करता है। एचडीएल का स्तर जितना ज्यादा होगा, हृदय रोग का खतरा उतना ही कम होगा। एचडीएल का संतुलित स्तर 60 mg/dL या उससे अधिक है।
एलडीएल कोलेस्ट्रॉल
इसे ‘बैड’ कोलेस्ट्रॉल भी कहते हैं। एलडीएल आर्टरीज की दीवारों से चिपक जाता है और प्लाक के रूप में जम जाता है, जिससे आर्टरी संकरी और कठोर हो जाती हैं। आर्टरी का सिकुड़ना हार्ट अटैक के प्रमुख कारणों में शुमार है। शरीर में एलडीएल का स्तर 100 mg/dL से कम रहना चाहिए; जितना कम एलडीएल होगा, हृदय रोग का खतरा भी उतना ही कम होगा।
ट्राईग्लिसराईड
ट्राईग्लिसराईड एक तरह के फैट होते हैं, जिनसे आर्टरी के संकरे होने का जोखिम बढ़ सकता है। ट्राईग्लिसराईड ज्यादा हो, और साथ ही एलडीएल ज्यादा एवं एचडीएल कम हो, तो हृदय रोग का जोखिम बहुत बढ़ जाता है। ट्राईग्लिसराईड का सामान्य स्तर 150 mg/dL से कम होता है।
लिपिड प्रोफाइल के आधार पर उपाय
अगर लिपिड प्रोफाइल कोरोनरी आर्टरी डिजीज के बढ़ते जोखिम की ओर इशारा करता है, आपको तुरंत किसी कार्डियोलॉजिस्ट से मिलना चाहिए, जिससे आने वाले जोखिम को टाला जा सके।