क्या वाकई मांसाहारी है मिठाइयों पर लगने वाला चांदी वर्क? इस खुलासे के बाद FSSAI ने बदल दिए थे नियम
मिठाइयों पर सिल्वर वर्क यानी चांदी का वर्क शुद्ध चांदी से बनी एक बेहद पतली परत होती है. यह न तो किसी तरह की गंध छोड़ती है और न ही स्वाद में कोई फर्क डालती है. इसे खाने से मिठाई का स्वाद वैसा ही बना रहता है. लेकिन कुछ सालों पहले विवाद छिड़ा था कि चांदी में जानवरों की चर्बी मिलाई जाती है ताकि वह आराम से मिठाइयों पर चिपक जाए.;
भारतीय त्योहारों की रौनक मिठाइयों के बिना अधूरी मानी जाती है. काजू कतली, बेसन की बर्फी, चमकदार चांदी के वर्क से सजे लड्डू – इन सबके बिना न तो मिठास पूरी होती है और न ही त्योहारों की चमक. खासतौर पर मिठाइयों पर लगाई जाने वाली चांदी की परत यानी सिल्वर वर्क उन्हें एक अलग ही शाही अंदाज देती है. यह पतली-सी परत दिखने में जितनी आकर्षक होती है, उतनी ही चर्चा में भी रहती है. वजह यह है कि इसके निर्माण को लेकर लंबे समय से शाकाहारियों और मांसाहारियों के बीच सवाल उठते रहे हैं. ज्यादातर लोग मानते हैं कि जब मिठाई देवताओं को अर्पित की जाती है तो वह पूरी तरह शुद्ध और शाकाहारी होनी चाहिए.
लेकिन बहुत से लोगों को यह जानकर झटका लगा कि परंपरागत रूप से बनने वाले सिल्वर वर्क में जानवरों से जुड़ी चीज़ें इस्तेमाल की जाती थी. आज स्थिति बदल चुकी है, खाने-पीने के शौकीनों में बढ़ती जागरूकता और भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) के सख्त नियमों की वजह से अब बाजार में मिलने वाला सिल्वर वर्क काफी हद तक सुरक्षित और शाकाहारी-अनुकूल है. फिर भी इसके इतिहास और उत्पादन की पूरी जानकारी होना जरूरी है, ताकि लोग मिठाइयों का आनंद लेते समय सही चुनाव कर सकें.
क्या होता है सिल्वर वर्क?
सिल्वर वर्क यानी चांदी का वर्क शुद्ध चांदी से बनी एक बेहद पतली परत होती है. यह न तो किसी तरह की गंध छोड़ती है और न ही स्वाद में कोई फर्क डालती है. इसे खाने से मिठाई का स्वाद वैसा ही बना रहता है, बल्कि उसकी सजावट और भी भव्य लगती है. इस परत की मोटाई इतनी कम होती है कि अक्सर यह एक माइक्रोमीटर से भी पतली होती है. यही वजह है कि यह बेहद नाज़ुक और आसानी से टूटने वाली होती है.
पहले के समय में कैसे बनता था सिल्वर वर्क?
पुराने समय में सिल्वर वर्क बनाने की प्रक्रिया काफी मेहनत वाली होती थी. पहले शुद्ध चांदी को पीसकर उसका बारीक पाउडर बनाया जाता था. फिर इस चांदी को लंबे समय तक पीटकर बहुत पतली और चमकदार चादर में बदल दिया जाता था. यह काम इतना जटिल था कि घंटों लग जाते थे और परत इतनी पतली बनती थी कि लगभग पारदर्शी दिखाई देती थी. लेकिन असली विवाद उस समय शुरू हुआ, जब यह पता चला कि चांदी की चादरों को अलग-अलग रखने और चिपकने से रोकने के लिए पशुओं के चर्बी जैसे कि गाय की खाल या बैल की आंत का उपयोग किया जाता था. इनका इस्तेमाल इसलिए किया जाता था क्योंकि इनसे चांदी चिपकती नहीं थी और उसे आसानी से अलग किया जा सकता था. यही वजह थी कि कई शाकाहारी परिवारों ने इस वर्क का इस्तेमाल बंद कर दिया. उनके लिए यह धार्मिक और नैतिक दोनों स्तर पर असुविधाजनक था.
FSSAI का नियम और बदलाव
इन चिंताओं को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने अगस्त 2016 में बड़ा फैसला लिया. भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने एक आदेश जारी किया, जिसमें साफ लिखा गया कि अब सिल्वर वर्क के उत्पादन में किसी भी प्रकार की पशु-व्युत्पन्न सामग्री का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा. इस नियम के बाद वर्क बनाने की तकनीक बदली और अब अधिकतर जगहों पर मशीनों या शाकाहारी-अनुकूल सामग्री का उपयोग होने लगा है. इस बदलाव से उपभोक्ताओं का विश्वास बढ़ा और अब वे निश्चिंत होकर मिठाइयों का स्वाद ले सकते हैं.