ये है नीतीश कुमार के शपथ ग्रहण में आए मेहमानों के खाने का मेन्यू; लिट्टी-चोखा ही नहीं, इन व्यंजनों का भी मिलेगा मजा
मेहमानों के लिए बिहार का स्वादिष्ट शाकाहारी भोजन. आने वाले सभी मेहमानों के लिए पूरा खाना शाकाहारी रखा गया है. मशहूर होटल मौर्या को खाने-पीने की सारी जिम्मेदारी दी गई है. लेकिन बिहार के मशहूर और ट्रडिशनल खाने से आज शपथ ग्रहण से कोई अछूता न रहेगा क्योंकि भले ही कितने ही स्वादिष्ट व्यंजन शामिल हो लेकिन लिट्टी-चोखा हमेशा से खासतौर से मेहमानों को परोसा जाएगा.;
आज पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में बहुत बड़ा और भव्य आयोजन होने जा रहा है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आज दसवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे. यह अपने आप में एक रिकॉर्ड है. पूरा गांधी मैदान इस खुशी के मौके का गवाह बनेगा. सुबह से ही तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं ताकि कार्यक्रम बहुत शानदार तरीके से हो सके. इस समारोह में बॉलीवुड और भोजपुरी के मशहूर सिंगर-सांसद मनोज तिवारी और हाल ही में अलीनगर से विधायक बनीं युवा गायिका मैथिली ठाकुर अपनी सुरीली आवाज से सबको मंत्रमुग्ध कर देंगे.
मनोज तिवारी भोजपुरी गीत सुनाएंगे, वहीं मैथिली ठाकुर मैथिली भाषा के मधुर गीत गाएंगी. इसके अलावा बिहार की लोक कलाओं की झलक भी मिलेगी, जैसे जट-जटिन नृत्य, झिझिया, सामा-चकेवा आदि. कलाकारों का पूरा सांस्कृतिक कार्यक्रम सुबह 9 बजे से शुरू होगा और करीब दो घंटे तक चलेगा. रिहर्सल के लिए सभी कलाकार सुबह साढ़े सात बजे गांधी मैदान पहुंच जाएंगे. कार्यक्रम की उद्घोषणा मशहूर उद्घोषिका सोमा चक्रवर्ती करेंगी.
एक दर्जन से ज्यादा स्वादिष्ट व्यंजन
मेहमानों के लिए बिहार का स्वादिष्ट शाकाहारी भोजन. आने वाले सभी मेहमानों के लिए पूरा खाना शाकाहारी रखा गया है. मशहूर होटल मौर्या को खाने-पीने की सारी जिम्मेदारी दी गई है. नाश्ते में छोले-भठूरे, इडली-सांभर, तरह-तरह की कचौड़ी, चाय-कॉफी होगी. बिहार के खास व्यंजन जैसे लिट्टी-चोखा, मखाने की खीर, मक्के की रोटी और सरसों का साग परोसा जाएगा. एक दर्जन से ज्यादा तरह की स्वादिष्ट मिठाइयां भी बन रही हैं. कुछ अन्य राज्यों के मशहूर शाकाहारी व्यंजन भी मेहमान चख सकेंगे. होटल मौर्या में तो बैठकर खाने की व्यवस्था है ही, साथ ही गांधी मैदान में भी फूड पैकेट बांटे जाएंगे.
क्या है लिट्टी-चोखा इतिहास
लेकिन बिहार के मशहूर और ट्रडिशनल खाने से आज शपथ ग्रहण से कोई अछूता न रहेगा क्योंकि भले ही कितने ही स्वादिष्ट व्यंजन शामिल हो लेकिन लिट्टी-चोखा हमेशा से खासतौर से मेहमानों को परोसा जाएगा. लेकिन क्या लोगों को लिट्टी-चोखा का इतिहास पता है कि आखिर इसकी शुरुआत कहां से हुई और कैसे लिट्टी-चोखा पूरी दुनिया मनपसंद व्यंजन में से एक बन गया. जिसे न सिर्फ बिहार और झारखंड में चखा गया बल्कि इसे उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में भी बड़े शौक से खाया जाता है. यह कोई साधारण खाना नहीं, बल्कि बिहार की संस्कृति, मेहनत और सादगी का प्रतीक है.
कैसे हुई शुरुआत
लिट्टी-चोखा की शुरुआत करीब 200-250 साल पुरानी मानी जाती है, हालांकि इसका सटीक समय बताना मुश्किल है क्योंकि यह गांव-देहात की रसोई में जन्मा व्यंजन है, किताबों में नहीं. यह मूल रूप से ग्रामीण बिहार का खाना था. जब लोग खेतों में दिन भर काम करते थे, तो सुबह जल्दी कुछ ऐसा बनाते थे जो पेट भर दे, देर तक खराब न हो और बिना फिर गरम किए खाया जा सके लिट्टी बिल्कुल वैसा ही था. चोखा (बैंगन, आलू, टमाटर का भुना मसाला) इसके साथ बना क्योंकि ये सब्जियां बिहार-झारखंड में हर घर के बाहर उगती थी.
कैसे पड़ा नाम?
लिट्टी: पहले इसे 'दही चूड़ा लिट्टी' भी कहते थे. साठी के आटे की गोल गेंद को अंदर से सत्तू भरकर गोबर के उपले पर भूना जाता था, इसलिए इसे 'लिट्टी' कहा गया. 'लिट्टा' माने चिपकना या लिपटना क्योंकि आग में लिट्टी उपले से चिपक जाती थी.
चोखा: 'चोखा' शब्द मगही-भोजपुरी में 'चबाकर खाने वाला' या 'मसला हुआ' भोजन कहलाता है. बैंगन-टमाटर को आग में भूनकर मसल दिया जाता है, इसलिए चोखा कहलाया.
सबसे पुरानी कहानियां और मान्यताएं
सबसे पहले आया मौर्य साम्राज्य का जमानाचंद्रगुप्त मौर्य का दौर था. राजधानी पाटलिपुत्र यानी आज का पटना. उनका साम्राज्य अफ़ग़ानिस्तान तक फैला हुआ था. इतिहासकार बताते हैं कि चंद्रगुप्त के सैनिक जब महीनों की लंबी लड़ाई पर जाते थे, तो उनके झोले में दो चीजें जरूर होती थी सत्तू भरी लिट्टी और बैंगन का चोखा! क्यों? क्योंकि ये हल्का था, झोले में आसानी से रखा जा सकता था और 4-5 दिन तक खराब नहीं होता था. एक लिट्टी खाई नहीं कि पूरा दिन ताकत मिल जाती थी तो मगध के सैनिकों ने ही लिट्टी-चोखा को पहला 'आर्मी राशन' बना दिया!.
18वीं सदी में मुसाफिरों का फेवरेट खाना
पुरानी किताबों में लिखा है कि जो यात्री या साधु-संत बिहार-यूपी में लंबी पैदल यात्रा करते थे, उनका मुख्य भोजन यही लिट्टी-चोखा होता था. रास्ते में कहीं उपले जलाए, लिट्टी सेंक ली, पास के खेत से बैंगन-टमाटर तोड़कर भून लिया बस खाना तैयार. मुगल आए, स्वाद बदल गयामुगल काल में लोग मांसाहारी हो गए. तो लिट्टी को अब शोरबे में डुबो-डुबो कर खाने लगे. पाया (मटन का शोरबा) के साथ लिट्टी खाई जाती थी. अमीर लोग तो कहते थे, 'लिट्टी को पाया में डुबाओ, फिर स्वाद बताओ.'
1857 का विद्रोह और झांसी की रानी
क्रांति के दिनों में रानी लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे के सैनिक लिट्टी (या उस समय उसे बाटी भी कहते थे) को सबसे ज्यादा पसंद करते थे. कारण बहुत सीधा था बनाने में 10 मिनट सामान सिर्फ़ सत्तू, आटा, बैंगन और नमक. एक बार पका लो, तीन-चार दिन तक चलता रहे. रानी के सैनिक जंगल में छिपे रहते थे, वहां चूल्हा जलाना खतरा था इसलिए लिट्टी को आग में दबाकर पका लेते थे.