क्या खत्म हो जाएगा भारत-चीन सीमा विवाद? अब टुकड़ों में समाधान की राह पर दोनों देश
भारत और चीन के बीच दशकों पुराने सीमा विवाद को हल करने की दिशा में नया अध्याय शुरू हुआ है. नई दिल्ली में 24वें विशेष प्रतिनिधि स्तर की वार्ता में दोनों देशों ने piecemeal approach पर सहमति जताई है. इसके तहत पहले कम विवादित हिस्सों की पहचान कर सीमांकन (delimitation) और फिर रेखांकन (demarcation) किया जाएगा. पूर्वी लद्दाख में नॉन-ऑफेंसिव पोस्चर अपनाने, भारी हथियार पीछे हटाने और विश्वास निर्माण की दिशा में यह समझौता ऐतिहासिक माना जा रहा है.;
भारत और चीन के बीच दशकों पुराना सीमा विवाद अब एक नए मोड़ पर पहुंचता दिख रहा है. हाल ही में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच 24वें विशेष प्रतिनिधि स्तर की वार्ता में दोनों देशों ने इस विवाद को 'पीस-मील अप्रोच' यानी टुकड़ों में हल करने पर सहमति जताई है. इसका मतलब यह है कि जहां विवाद कम है, वहां पहले सीमांकन (Delimitation) और फिर स्पष्ट रेखांकन (Demarcation) किया जाएगा. यह कदम उन एशियाई दिग्गजों के बीच विश्वास निर्माण (confidence building) का नया अध्याय खोलेगा, जो अब तक सीमा विवादों के चलते आपसी संबंधों को सामान्य स्थिति में लाने से चूकते रहे हैं.
इस समझौते के तहत दोनों देशों ने तकनीकी विशेषज्ञ समूह गठित करने, कम संवेदनशील हिस्सों की पहचान करने, चरणबद्ध तरीके से सीमांकन करने और अंत में स्थायी अंतरराष्ट्रीय सीमा स्तंभ (border pillars) लगाने पर सहमति जताई है. यह पहल न केवल पूर्वी लद्दाख में 2020 की झड़पों के बाद बिगड़े रिश्तों को सामान्य बनाने का संकेत देती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि दोनों देश अब शांति और सहयोग की दिशा में एक लंबा कदम उठाने को तैयार हैं.
सीमा विवाद का ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारत और चीन के बीच सीमा विवाद कई दशकों पुराना है. 1962 का युद्ध, अरुणाचल प्रदेश पर चीन का दावा, अक्साई चिन पर भारत का दावा और लद्दाख के कई इलाके ऐसे संवेदनशील बिंदु हैं जिन पर अब तक हल नहीं निकल सका है. हालांकि, वर्षों से लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) को लेकर ही दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने रहती हैं. 2020 की गलवान घाटी की झड़प ने रिश्तों में अभूतपूर्व तनाव पैदा कर दिया था. तब से दोनों पक्षों ने कई दौर की सैन्य और कूटनीतिक वार्ताएं कीं. disengagement और buffer zones जैसे मुद्दों पर कुछ प्रगति जरूर हुई, लेकिन स्थायी समाधान अब तक नहीं हो पाया.
आगे बढ़ते कदम
नई दिल्ली में हुई 24वीं विशेष प्रतिनिधि स्तर की वार्ता में भारत और चीन ने सीमा विवाद को 'कम विवादित हिस्सों' से शुरू करने पर सहमति जताई. इस दौरान चार अहम कदमों पर सहमति बनी जो इस प्रकार हैं...
- तकनीकी विशेषज्ञ समूह का गठन - यह समूह WMCC (Working Mechanism for Consultation and Coordination on India-China Border Affairs) के तहत काम करेगा.
- कम विवादित हिस्सों की पहचान - दोनों देश पहले उन इलाकों की पहचान करेंगे जहां टकराव न्यूनतम है.
- सीमांकन (Delimitation) - इन इलाकों को तकनीकी मानकों के आधार पर चिन्हित किया जाएगा.
- रेखांकन (Demarcation) - अंत में सीमा स्तंभ लगाए जाएंगे, जिससे अंतरराष्ट्रीय सीमा स्पष्ट हो जाएगी.
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सैन्य तनाव कम करने की दिशा में पहल
पूर्वी लद्दाख में 2020 के संघर्ष के बाद दोनों देशों की सेनाएं लगातार हाई अलर्ट पर रहीं. दोनों ओर से भारी हथियार, टैंक और तोपें तैनात की गई थीं. अब समझौते के तहत नॉन-ऑफेंसिव पोस्चर यानी गैर-आक्रामक मुद्रा अपनाने की दिशा में सहमति बनी है. इसका अर्थ है कि टैंक, रॉकेट और आर्टिलरी को पीछे खींचा जाएगा. सेनाओं की तैनाती इस तरह होगी कि दूसरे देश के लिए तत्काल खतरा न हो. विवादित इलाकों में दोनों देशों के बीच 'संवेदनशीलता' और 'स्वायत्त समझ' (mutual sensitivity & autonomy) पर आधारित व्यवस्था बनेगी.
अप्रैल 2020 से पहले जैसी सामान्य स्थिति की ओर
भारत और चीन ने संकेत दिए हैं कि वे रिश्तों को अप्रैल 2020 से पहले वाली स्थिति की ओर ले जाना चाहते हैं. यह वही समय था जब गलवान संघर्ष से पहले दोनों देशों के बीच आर्थिक और कूटनीतिक संवाद अपेक्षाकृत सामान्य थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की 23 अक्टूबर 2024 की मुलाकात ने इस दिशा में आधार तैयार किया. अब 31 अगस्त को तियानजिन में होने वाले SCO सम्मेलन में दोनों नेताओं की मुलाकात से और ठोस प्रगति की उम्मीद है.
भारत और चीन का यह कदम न केवल द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित करेगा, बल्कि एशिया और वैश्विक राजनीति में भी अहम संदेश देगा. एक ओर जहां पाकिस्तान के साथ चीन की नजदीकियों के बावजूद, भारत शांति और विकास के हित में चीन से रिश्ते सामान्य करने का इच्छुक दिख रहा है तो वहीं दूसरी ओर अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ बढ़ते तनाव के बीच, चीन भारत जैसे बड़े पड़ोसी से टकराव को लंबा खींचने से बचना चाहता है. इससे पूरी दुनिया को यह संदेश जाता है कि एशिया की दो बड़ी शक्तियां अपने विवादों को बातचीत से सुलझाने की कोशिश कर रही हैं.
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क्या यह सीमा विवाद का अंत है?
हालांकि यह कदम ऐतिहासिक है, लेकिन यह कहना जल्दबाजी होगी कि भारत-चीन सीमा विवाद पूरी तरह खत्म हो जाएगा. इसकी कुछ ठोस वजहें हैं. जैसे अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश जैसे बड़े विवादित हिस्सों पर अभी भी कोई ठोस प्रगति नहीं हुई. चीन की 'स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स' रणनीति और पाकिस्तान में उसकी गहरी पैठ भारत के लिए चिंता का विषय है. वहीं सीमांकन और रेखांकन की प्रक्रिया लंबी और तकनीकी है, जिसमें जमीनी हकीकत और राजनीतिक इच्छाशक्ति दोनों की अहम भूमिका होगी.
भारत की रणनीति
भारत इस प्रक्रिया को 'विश्वास निर्माण' और 'चरणबद्ध समाधान' की रणनीति से आगे बढ़ाना चाहता है. यानी छोटे-छोटे विवाद खत्म कर बड़े मुद्दों के समाधान की राह आसान करना. घरेलू स्तर पर भारत यह भी दिखाना चाहता है कि वह अपने पड़ोसियों के साथ शांति चाहता है लेकिन अपनी संप्रभुता और सुरक्षा से समझौता नहीं करेगा.
भविष्य की दिशा
तियानजिन SCO सम्मेलन पर सबकी निगाहें टिकी हैं. अगर मोदी और शी जिनपिंग के बीच ठोस वार्ता होती है, तो सीमा विवाद समाधान की दिशा में नया रोडमैप सामने आ सकता है. रक्षा विश्लेषकों का मानना है कि अगर सीमा पर शांति बनी रहती है तो भारत और चीन आर्थिक सहयोग की दिशा में भी नए अध्याय खोल सकते हैं. दोनों देशों के लिए यह समझौता सिर्फ सीमा विवाद का मामला नहीं बल्कि शांति, स्थिरता और एशियाई नेतृत्व की नई दिशा तय करने वाला कदम हो सकता है.