कौन थे सैयद ज़ैनुद्दीन शिराज़ी, जिसे औरंगजेब मानता था अपना गुरु?

औरंगजेब मुगल साम्राज्य के सबसे क्रूर शासकों में से एक था. उसने आखिरी दिनों में अपने पिता को बंद रखा. वहीं, अपने भाई दारा शिकोह का गला काट पूरी दिल्ली में घुमाया. हालांकि, वह सैयद ज़ैनुद्दीन शिराज़ी का मुरीद था. उसकी इच्छा थी की मरने के बाद उसकी कब्र को संत सैयद ज़ैनुद्दीन शिराज़ी की कब्र के पास ही बनाई जाए.;

( Image Source:  x-JaipurDialogues )
Edited By :  हेमा पंत
Updated On : 25 March 2025 6:50 PM IST

महाराष्ट्र में औरंगजेब को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. दरअसल महाराष्ट्र के खुल्दाबाद में औरंगजेब का मकबरा है, जिसे गिराने की मांग की जा रही है. इसके चलते शहर में हिंसा भड़की. औरंगजेब इस्लाम का सख्त अनुयायी था. वह एक क्रूर शासक था, लेकिन इसके बावजूद वह अपने जीवन में इस्लामी विद्वानों, सूफी संतों और आध्यात्मिक मार्गदर्शकों से बेहद प्रभावित रहा. औरंगजेब हज़रत ख़्वाजा सैयद ज़ैनुद्दीन शिराज़ी को अपना गुरु मानता था.

उसकी इच्छा थी की मरने के बाद उसकी कब्र को संत सैयद ज़ैनुद्दीन शिराज़ी की कब्र के पास ही जगह दी जाए. मुगल सम्राट औरंगज़ेब भी उनके मुरीद थे. ऐसे में चलिए जानते हैं आखिर कौन थे सैयद ज़ैनुद्दीन शिराज़ी.

शिराज में पैदा हुए सैयद जैनुद्दीन शिराजी

हज़रत ख़्वाजा सैयद ज़ैनुद्दीन शिराज़ी शिराज में पैदा हुए थे. इसके बाद वह मक्का के रास्ते दिल्ली गए थे. उन्होंने समाना के मौलाना कमालुद्दीन से शिक्षा ली और उनके साथ दौलताबाद आए. कहा जाता है कि एक बार सैयद ज़ैनुद्दीन शिराज़ी दौलताबाद से असीरगढ़ गए थे. जहां उनके सम्मान में ताप्ती नदी के बाएं किनारे पर 'जैनाबाद' शहर बसाया गया था.

समा प्रथा के थे खिलाफ

दौलताबाद पहुंचने पर ज़ैनुद्दीन ने बुरहान उद्दीन के मठ गए. वह सूफीवाद में समा प्रथा के खिलाफ थे. यह एक ऐसी प्रथा है जिसमें गायन, नृत्य, और प्रार्थना के माध्यम से ईश्वर के प्रति प्रेम और भक्ति व्यक्त की जाती है, जिसका उद्देश्य "वजद" (परमानंद की अवस्था) तक पहुंचना है. बुरहान अल दीन गरीब से पूछताछ के बाद वे संतुष्ट हो गए, इसलिए उन्होंने सूफी धर्म अपना लिया. सैयद जैनुद्दीन ने दौलताबाद में 'काजी' का पद संभाला और 737 ई. में  बुरहानुद्दीन की मृत्यु के बाद ही उन्हें खलीफा की जिम्मेदारी सौंपी गई.

कहलाए जाते हैं बाईस खाजा

अंतिम घटना दिल्ली से लौटने के बाद होती है, जो रजब 755/अगस्त, 1354 से शुरू होकर उनके जीवन के अंतिम पड़ाव तक जाती है. शिराजी की मृत्यु 25 रबी अल अव्वल 771/27 अक्टूबर, 1369 को बिना किसी खलीफा के हुई. जैन अल दीन की मजार बुरहान अल दीन गरीब दरगाह के सामने बनाई गई थी. चूंकि वह चिश्ती वंश में बाईसवें थे, इसलिए जैन अल दीन को स्थानीय रूप से 'बाईसवें गुरु', बाईस खाजा के नाम से जाना जाता है.

कैसी है सैयद ज़ैनुद्दीन शिराज़ी की कब्र?

आजम शाह उनकी बेगम और एक मुस्लिम संत की कब्रें जैनुद्दीन के मकबरे के पूर्व में एक छोटे से घेरे में हैं, जबकि मुगल बादशाह औरंगजेब की कब्र पश्चिम में है. इस आखिरी कब्र के सामने एक बड़ा चौकोर आंगन है, जिसके चारों ओर खुले-सामने वाली इमारतें हैं. साथ ही, पूर्वी छोर पर एक "नक्कार खाना" या म्यूजिकल ड्रम हॉल है. पश्चिमी छोर का इस्तेमाल एक स्कूल के रूप में किया जाता है, जहां कुरान पढ़ाई जाती है और एक अंदरूनी आंगन तक रास्ता जाता है, जिसमें कई कब्रें हैं. खुल्दाबाद स्थित दरगाह पर हर साल 12 रबी-उल-अव्वल से संत के उर्स के लिए हजारों लोग आते हैं.

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