IMF से बाहर, लेकिन सवाल अंदर! डॉ. केवी सुब्रमण्यन की विदाई का असली एजेंडा क्या?

भारत सरकार ने आईएमएफ में अपने कार्यकारी निदेशक डॉ. केवी सुब्रमण्यन की सेवाएं समय से पहले समाप्त कर दी है. यह फैसला ऐसे समय में आया है जब IMF पाकिस्तान को वित्तीय मदद देने पर अहम बैठक करने वाला है. सुब्रमण्यन की विदाई के पीछे रणनीतिक, राजनीतिक और आंतरिक मतभेदों की आशंका जताई जा रही है. अब भारत वैश्विक मंच पर एक नया आर्थिक दृष्टिकोण सामने रख सकता है.;

Curated By :  नवनीत कुमार
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एक बड़े प्रशासनिक फेरबदल में केंद्र सरकार ने डॉ. कृष्णमूर्ति वी सुब्रमण्यन को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) में भारत के कार्यकारी निदेशक पद से हटाने का फैसला किया है. यह निर्णय ऐसे समय लिया गया है जब IMF बोर्ड पाकिस्तान को दी जा रही वित्तीय मदद की समीक्षा के लिए एक अहम बैठक की तैयारी कर रहा है. डॉ. सुब्रमण्यन नवंबर 2022 से इस पद पर थे और उनका कार्यकाल नवंबर 2025 तक चलने वाला था, लेकिन सरकार ने इसे समय से पहले समाप्त कर दिया है.

यह निर्णय सिर्फ एक सामान्य प्रशासनिक बदलाव नहीं बल्कि एक रणनीतिक संकेत भी हो सकता है. यह फैसला 9 मई को होने वाली उस IMF बोर्ड मीटिंग से ऐन पहले आया है जिसमें पाकिस्तान को दी जाने वाली आर्थिक सहायता की समीक्षा की जाएगी. भारत इस बैठक में पाकिस्तान को आतंकी फंडिंग के कारण सहायता देने का कड़ा विरोध करने वाला है, खासकर पहलगाम में हुए हालिया आतंकी हमले के संदर्भ में. ऐसे में भारत के IMF प्रतिनिधि की अदला-बदली अपने आप में कई सवाल खड़े करती है.

कौन हैं डॉ. सुब्रमण्यन?

डॉ. सुब्रमण्यन भारत के सबसे युवा मुख्य आर्थिक सलाहकार रह चुके हैं और महामारी के कठिन दौर में आर्थिक नीति तैयार करने में अहम भूमिका निभा चुके हैं. वे बैंकिंग और कॉरपोरेट गवर्नेंस जैसे विषयों में अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विशेषज्ञ हैं. उन्होंने IIM, IIT व शिकागो यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है. इसके साथ ही रघुराम राजन के शिष्य रहे हैं. सुब्रमण्यन की विदाई न केवल IMF में भारत की आवाज़ के स्वरूप को बदलेगी, बल्कि आर्थिक रणनीति में भी संभावित बदलाव का संकेत देती है.

क्या किसी मतभेद ने भूमिका निभाई?

सूत्रों की मानें तो सुब्रमण्यन के हटाए जाने के पीछे उनके कुछ विवादित कदम भी भूमिका निभा सकते हैं. IMF डेटासेट को लेकर उनके सवाल उठाना और उनकी किताब के प्रचार में कथित अनियमितताएं अब चर्चाओं का विषय है. हालांकि आधिकारिक रूप से सरकार ने कोई कारण नहीं बताया है, लेकिन इन बातों को नजरअंदाज करना मुश्किल है. खासकर जब यह सब पाकिस्तान से जुड़ी समीक्षा बैठक से पहले हो रहा है.

सुरजीत भल्ला को मिला था कार्यकाल विस्तार

इससे पहले अर्थशास्त्री सुरजीत भल्ला को दो बार IMF कार्यकारी निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था और उन्हें कार्यकाल विस्तार भी मिला था. परंपरा के अनुसार, जब तक कोई स्पष्ट विफलता न हो, सरकारें IMF में अपने प्रतिनिधियों को कार्यकाल पूरा करने देती है. सुब्रमण्यन के साथ इस परंपरा का टूटना असाधारण है और यह सरकार की बदली हुई प्राथमिकताओं को भी दर्शाता है.

IMF की भूमिका और भारत की रणनीति

IMF कार्यकारी बोर्ड वैश्विक वित्तीय संतुलन के लिए जिम्मेदार होता है और उसमें हर सदस्य देश की आर्थिक नीति पर चर्चा होती है. ऐसे में भारत का प्रतिनिधि केवल एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय दृष्टिकोण का वाहक होता है. सुब्रमण्यन की जगह किसी नए चेहरे की नियुक्ति न केवल प्रशासनिक बदलाव है, बल्कि यह इस बात की भी प्रतीक है कि भारत वैश्विक मंचों पर अपनी नीति और आवाज़ को नए सिरे से ढाल रहा है. विशेषकर उन मुद्दों पर, जहां भू-राजनीति और वित्तीय सहायता की दिशा टकराती है.

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