पार्टी 1, लेकिन पावर सेंटर 5! क्या इसी वजह से कांग्रेस हो रही कमजोर? पूर्व MLA ने भी सोनिया को चिट्ठी लिखकर खरगे-राहुल पर उठाए थे सवाल

कांग्रेस पार्टी में लंबे समय से चला आ रहा आंतरिक असंतोष अब खुलकर सामने आ गया है. ओडिशा के पूर्व विधायक मोहम्मद मोक़ीम द्वारा सोनिया गांधी को लिखी गई चिट्ठी ने नेतृत्व और कार्यकर्ताओं के बीच बढ़ती दूरी, लगातार चुनावी हार, हाईकमान की निष्क्रियता और कई शक्ति केंद्रों की मौजूदगी जैसे गंभीर मुद्दों को उजागर किया है. 2014 के बाद से कांग्रेस लगातार राज्यों में जमीन खोती जा रही है, जबकि नेता पार्टी छोड़ते जा रहे हैं. आने वाले विधानसभा चुनावों से पहले कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती जीत से ज़्यादा खुद को सुधारने और संगठन को बचाने की है.;

( Image Source:  ANI )
Edited By :  अच्‍युत कुमार द्विवेदी
Updated On : 18 Dec 2025 11:18 PM IST

Congress Crisis: कांग्रेस के भीतर लंबे समय से सुलग रहा असंतोष एक बार फिर खुलकर सामने आ गया है. इस बार चिंगारी बने हैं ओडिशा के पूर्व विधायक मोहम्मद मोक़ीम, जिन्होंने पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखकर कांग्रेस में 'ओपन हार्ट सर्जरी' की ज़रूरत बताई है. मोक़ीम ने पत्र में नेतृत्व और ज़मीनी कार्यकर्ताओं के बीच बढ़ती दूरी को रेखांकित करते हुए चेताया कि यही खाई पार्टी को लगातार कमजोर कर रही है.

दरअसल, ऐसे संकेत पहले भी मिलते रहे हैं. इस साल नवंबर में हुए बिहार विधानसभा चुनावों से पहले टिकट बंटवारे के दौरान भी नेतृत्व और कार्यकर्ताओं के बीच टकराव साफ दिखा था. यह समस्या नई नहीं है, लेकिन अब यह कांग्रेस के अस्तित्व से जुड़ा सवाल बनती जा रही है.

आज़ादी के आंदोलन से सत्ता के शिखर तक

1885 में स्थापना के बाद कांग्रेस के पास नेताओं, कार्यकर्ताओं और समर्थकों की कभी कमी नहीं रही. आज़ादी के बाद जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में पार्टी ने लगभग हर चुनाव में जीत दर्ज की. कांग्रेस एक ऐसी छतरी थी, जिसके नीचे अलग-अलग विचारधाराएं साथ रह सकती थीं.

2014 के बाद बदला सियासी परिदृश्य

2014 के लोकसभा चुनाव कांग्रेस के लिए टर्निंग पॉइंट साबित हुए. केंद्र में 10 साल की सत्ता के बाद पार्टी भ्रष्टाचार के आरोपों, एंटी-इंकंबेंसी और वरिष्ठ नेताओं के पलायन से जूझ रही थी. इसी बीच ‘मोदी लहर’ ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया. इसके बाद से हालात बद से बदतर होते चले गए.

असंतोष की चिट्ठी और बड़े सवाल

8 दिसंबर को लिखी गई अपनी पांच पन्नों की चिट्ठी में मोहम्मद मोक़ीम ने ओडिशा में लगातार छह विधानसभा और तीन लोकसभा चुनाव हारने का जिक्र किया. उन्होंने पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की नियुक्ति पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि 83 वर्षीय नेता आज के युवा भारत से जुड़ाव नहीं बना पा रहे हैं. मोक़ीम ने यह भी लिखा कि पिछले तीन वर्षों से उन्हें राहुल गांधी से मिलने का समय तक नहीं मिला. उन्होंने साफ किया कि यह व्यक्तिगत शिकायत नहीं, बल्कि देशभर के कार्यकर्ताओं की भावनात्मक पीड़ा की अभिव्यक्ति है, जो खुद को अनसुना और अनदेखा महसूस कर रहे हैं.

कांग्रेस छोड़ने वालों की लंबी फेहरिस्त

मोक़ीम अकेले नहीं हैं, हिमंता बिस्वा सरमा, ज्योतिरादित्य सिंधिया, गुलाम नबी आज़ाद, जितिन प्रसाद जैसे कई बड़े नेता भी नेतृत्व से संवाद न होने की शिकायत के बाद कांग्रेस छोड़ चुके हैं. यही कारण है कि सवाल उठता है- आखिर कांग्रेस से नेता और कैडर क्यों लगातार दूर हो रहे हैं?

चुनावी हार का सिलसिला

2014 के बाद कांग्रेस जीत से ज़्यादा हार का सामना कर चुकी है. 2024 लोकसभा चुनाव में थोड़ी उम्मीद जगी, लेकिन वह जल्द ही खत्म हो गई. महाराष्ट्र में पार्टी सिर्फ 16 सीटों पर सिमट गई. बिहार में उसकी सीटें 12 से घटकर 6 रह गईं. हरियाणा में भी गिरावट आई, जबकि दिल्ली में कांग्रेस लगातार तीसरी बार खाता तक नहीं खोल सकी. जम्मू-कश्मीर और झारखंड में जो थोड़ा बेहतर प्रदर्शन रहा, वह भी सहयोगी दल के तौर पर...

गठबंधन की उलझन

कांग्रेस के गठबंधन अक्सर असहज साबित हो रहे हैं. जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ तनाव, आम आदमी पार्टी के साथ INDIA ब्लॉक के भीतर खींचतान, ये सब ज़मीनी कार्यकर्ताओं को भ्रमित करते हैं। अलग-अलग राज्यों में दोस्त और दुश्मन बदलते समीकरण कांग्रेस को नुकसान पहुंचा रहे हैं.

‘हाईकमान’ की देरी और गुटबाज़ी

कांग्रेस नेतृत्व पर आरोप है कि वह आंतरिक संघर्षों में समय पर निर्णय नहीं लेता. कर्नाटक में सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार की खींचतान हो या राजस्थान में अशोक गहलोत बनाम सचिन पायलट का विवाद, हर जगह देरी ने पार्टी को नुकसान पहुंचाया. राजस्थान में पायलट को नजरअंदाज करने का फैसला अंततः सत्ता गंवाने का कारण बना.

कई शक्ति केंद्र, एक भी स्पष्ट नहीं

पार्टी से निष्कासित नेता संजय निरुपम ने आरोप लगाया कि कांग्रेस में अब एक नहीं, बल्कि कई शक्ति केंद्र हैं—सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे और केसी वेणुगोपाल. इनके अलग-अलग गुटों के बीच टकराव में कार्यकर्ता पिस रहे हैं.

राहुल गांधी का घटता प्रभाव

बिहार चुनावों में राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा भी असर नहीं दिखा सकी. चुनाव आयोग पर आरोप और 'वोट चोरी' की बात मतदाताओं को नहीं जमी. अभियान से उनकी अनुपस्थिति ने पार्टी के भीतर असंतोष और बढ़ा दिया.

आगे की राह

आज कांग्रेस लगातार पोस्टमार्टम, इस्तीफों और शिकायतों के दौर से गुजर रही है, जबकि बीजेपी ज़मीनी स्तर पर अपनी पकड़ मज़बूत कर रही है. पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम, केरल और पुडुचेरी जैसे राज्यों में अगले साल चुनाव हैं. सवाल अब सिर्फ जीत का नहीं, बल्कि इस बात का है कि क्या कांग्रेस समय रहते खुद को सुधार पाएगी, या असंतोष की यह आग पार्टी को और कमजोर कर देगी?

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