What Is Kalma: पहलगाम में गोली मारने से पहले आतंकियों ने जो पढ़वाया वो 'कलमा' होता क्‍या है?

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले में एक बेहद हैरान करने वाला पहलू सामने आया है. आतंकियों ने वहां मौजूद पर्यटकों से उनकी धार्मिक पहचान साबित करने के लिए 'कलमा' पढ़ने को कहा. जो लोग कलमा नहीं पढ़ पाए, उन्हें वहीं मार दिया गया. तो आइए इस खबर में जानते हैं कि कलमा क्या होता है.;

Edited By :  सागर द्विवेदी
Updated On : 25 April 2025 11:52 AM IST

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले में एक बेहद हैरान करने वाला पहलू सामने आया है. आतंकियों ने वहां मौजूद पर्यटकों से उनकी धार्मिक पहचान साबित करने के लिए 'कलमा' पढ़ने को कहा. जो लोग कलमा नहीं पढ़ पाए, उन्हें वहीं मार दिया गया. उस डरावने पल में एक वाक्य बोल पाना किसी की जान बचा सकता था या छीन सकता था.

इसी मंजर का शिकार हुए असम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर देबाशीष भट्टाचार्य. उनके ठीक बगल खड़े एक व्यक्ति को आतंकी ने गोली मार दी, फिर उनकी बारी आई. प्रोफेसर भट्टाचार्य ने बिना जवाब दिए जोर से कलमा पढ़ना शुरू किया. आतंकी ने कुछ नहीं कहा और वहां से चला गया. यही कलमा उनकी जान बचा ले गया.

तो आख़िर क्या है 'कलमा'?

इस्लाम में 'कलमा' एक छोटा वाक्य होता है, जो अल्लाह की एकता और पैगंबर मोहम्मद की पैगंबरी में विश्वास जताने के लिए पढ़ा जाता है. ये वाक्य एक मुसलमान की ईमानदारी और आस्था की पहचान होता है. कलमा सिर्फ शब्द नहीं, आस्था की गवाही है. मुसलमान इसे दिन में कई बार दोहराते हैं - नमाज़ के समय, संकट में, खुशी में और तसल्ली के लिए.

इस्लाम में कितने तरह के कलमे होते हैं?

इस्लाम में 6 प्रमुख कलमे माने जाते हैं. हर एक का अपना खास मतलब और मकसद होता है-

पहला कलमा (तैय्यब) -

'ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर रसूलुल्लाह', मतलब- अल्लाह के सिवा कोई पूजनीय नहीं, और मोहम्मद उनके पैगंबर हैं.

दूसरा कलमा (शहादत) -

इसका मतलब होता है- मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह ही एकमात्र ईश्वर हैं और मोहम्मद उनके सच्चे रसूल हैं.

तीसरा कलमा (तम्जीद) -

यह अल्लाह की महिमा, तारीफ़ और बड़ाई बयान करता है.

चौथा कलमा (तौहीद) -

इसमें अल्लाह की एकता और सर्वशक्तिमान स्वरूप की पुष्टि की जाती है.

पांचवां कलमा (अस्तग़फ़ार) -

यह पापों की माफी मांगने की प्रार्थना है - जानबूझकर हो या अनजाने में.

छठा कलमा (रद्द-ए-कुफ्र) -

इसमें हर तरह की शिर्क (अल्लाह के साथ किसी और को जोड़ना) से तौबा की जाती है और सच्चे दिल से अल्लाह की बंदगी कबूल की जाती है.

कलमा क्यों इतना अहम है?

कलमा सिर्फ एक धार्मिक वाक्य नहीं, मुसलमानों के विश्वास की आत्मा है. यह उन्हें रोज़मर्रा की ज़िंदगी में खुदा से जोड़ता है, पापों से तौबा करवाता है, और उन्हें याद दिलाता है कि जिंदगी फानी है और आस्था ही असली सहारा है.

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