क्या है ऑपरेशन महादेव, जिसमें पहलगाम हमले के मास्टमाइंड समेत तीन आतंकी हुए ढेर? जानिए पूरी डिटेल्स

श्रीनगर की ज़बरवान पहाड़ियों में 'ऑपरेशन महादेव' के तहत सुरक्षाबलों ने लश्कर-ए-तैयबा के तीन पाकिस्तानी आतंकवादियों को मार गिराया. पहलगाम हमले के मास्टरमाइंड सुलेमान शाह उर्फ हाशिम मूसा भी मारा गया. ड्रोन, सैटेलाइट फोन और स्थानीय इनपुट से ऑपरेशन को अंजाम दिया गया. भारी मात्रा में हथियार बरामद हुए हैं. तलाशी अभियान अब भी जारी है.;

( Image Source:  AI )
Edited By :  अच्‍युत कुमार द्विवेदी
Updated On : 28 July 2025 10:33 PM IST

What is Operation Mahadev: श्रीनगर के बाहरी इलाके ज़बरवान पहाड़ियों में सुरक्षा बलों ने ‘ऑपरेशन महादेव’ के तहत बड़ा आतंकवाद विरोधी अभियान चलाया, जिसमें लश्कर-ए-तैयबा के तीन पाकिस्तानी आतंकवादी मारे गए. यह संयुक्त ऑपरेशन जम्मू-कश्मीर पुलिस, सेना और सीआरपीएफ ने मिलकर दाचीगाम नेशनल पार्क और माउंट महादेव के पास स्थित लीदवास इलाके में अंजाम दिया.

ऑपरेशन 11 जुलाई 2025 को उस समय शुरू हुआ, जब बैसरन क्षेत्र में एक चीनी सैटेलाइट फोन की गतिविधि दर्ज की गई. स्थानीय खानाबदोशों ने आतंकियों की मौजूदगी की पुष्टि की, जिसके बाद 15 दिन की निगरानी, ड्रोन और इंटरसेप्ट कम्युनिकेशन की मदद से सोमवार सुबह लीदवास चोटी के पास तीन आतंकियों को घेरा गया. सेना की 4 पैरा, 24 राष्ट्रीय राइफल्स और जम्मू-कश्मीर पुलिस की SOG ने त्वरित कार्रवाई में तीनों को मार गिराया.

पहलगाम आतंकी हमले का मास्टरमाइंड मारा गया

मारे गए आतंकियों में एक की पहचान पहलगाम हमले के मास्टरमाइंड सुलेमान शाह उर्फ हाशिम मूसा के रूप में हुई है, जिसके सिर पर 20 लाख रुपये का इनाम था. उसके साथ यासिर उर्फ हारिस और अबू हमजा भी मारे गए. इनका संबंध सोनमर्ग सुरंग हमले और दाचीगाम के आतंकी नेटवर्क से था.  

मुठभेड़ स्थल से एक M4 कार्बाइन, दो AK-47 राइफलें, IED और 17 ग्रेनेड समेत भारी मात्रा में हथियार बरामद हुए. सुरक्षा बलों को आशंका है कि इनके कुछ साथी अब भी जंगल में छिपे हो सकते हैं, जिनकी तलाश के लिए ड्रोन और अतिरिक्त बल तैनात किए गए हैं.

क्या है ऑपरेशन महादेव?

ऑपरेशन महादेव, पहलगाम आतंकी हमले के बाद सबसे बड़ा और निर्णायक जवाबी हमला माना जा रहा है, जिसने भारत की खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों की सटीक कार्रवाई को साबित किया है. सेना के उत्तरी कमान प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल प्रतीक शर्मा ने इसे भारतीय सेना की 'राष्ट्रप्रथम' प्रतिबद्धता का प्रतीक बताया. यह अभियान उस समय हुआ जब संसद में ऑपरेशन सिंदूर और सुरक्षा चूकों को लेकर बहस जारी है. इस कार्रवाई ने सरकार की आतंकवाद पर कठोर नीति को मजबूती दी है.

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