विजय की टीम को पहले से था मौत का अंदेशा, फिर भी नहीं हुई कोई तैयारी! करूर भगदड़ हादसे को लेकर उठ रहे ये सवाल

करूर भगदड़ हादसे के बाद सवाल उठ रहे हैं कि विजय की टीम को पहले से मौत का अंदेशा था, फिर भी कोई ठोस तैयारी क्यों नहीं की गई। घटना के दौरान सुरक्षा इंतजामों की कमी और तैनाती में भारी लापरवाही सामने आई है. इस त्रासदी को लेकर प्रशासन और आयोजकों की जवाबदेही पर भी गंभीर सवाल उठाए जा रहे हैं, अब सभी की नजर इस बात पर है कि भविष्य में ऐसी दुर्घटनाओं को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जाएंगे.;

क्या तमिलनाडु के करूर में हुई भगदड़ को रोका जा सकता था? क्या 40 मासूम जानें, जिनमें 10 बच्चे भी शामिल थे बचाई जा सकती थीं? इसका जवाब बेहद दुखद है. 'हां, यह त्रासदी टाली जा सकती थी. दरअसल, ये सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि एक पूर्व निर्धारित आपदा थी, जिसकी आशंका खुद विजय की टीम को बहुत पहले से थी.

तमिल सिनेमा के सुपरस्टार से नेता बनने की राह पर अग्रसर थलपति विजय और उनकी टीम को यह पता था कि उनके प्रशंसकों की दीवानगी जानलेवा हो सकती है. फरवरी 2024 में ही विजय के एक करीबी सहयोगी ने इस खतरे की बात मानी थी, लेकिन इसके बावजूद करूर की रैली में कोई ठोस प्रबंधन नहीं हुआ. नतीजा 40 परिवारों का जीवन उजड़ गया.

विजय को लेकर पहले ही जताई गई थी भीड़ और भगदड़ की आशंका

फरवरी 2024 में जब विजय ने अपनी राजनीतिक पार्टी तमिऴगा वेत्त्रि कळगम (TVK) की घोषणा की थी, तभी उनकी टीम ने माना था कि "फैन फ्रेंज़ी" यानी प्रशंसकों की दीवानगी सबसे बड़ी चुनौती होगी.थलपति विजय को प्रचार के लिए भीड़ से कैसे बचाकर बाहर लाएं? वीडियो में दिखता है कि वो कैसे भीड़ से घिरे होते हैं," – विजय के एक नज़दीकी ने तब कहा था. यह चेतावनी उस समय दी गई थी जब विजय राजनीति में उतरने की घोषणा कर रहे थे और यह तथ्य उनकी टीम को भी मालूम था कि वह भीड़ खींचने की क्षमता रखते हैं.

'कल्पना से परे जो हुआ...'

करूर की भगदड़ के एक दिन बाद विजय ने X (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए मृतकों के परिवारों को ₹20 लाख की सहायता देने की घोषणा की. In a way that defies imagination, thinking about what happened in Karur yesterday..." – विजय ने लिखा. लेकिन सवाल यह है, क्या सिर्फ मुआवज़े और अफसोस से 40 जानों की भरपाई हो सकती है?

भीड़ का अनुमान गलत, प्रशासन और टीम दोनों चूके

रिपोर्ट्स के मुताबिक, करूर की रैली के लिए केवल 10,000 लोगों की अनुमति ली गई थी, लेकिन 50,000 से ज़्यादा लोग मौजूद थे. आसपास के नामक्कल से विजय के समर्थकों का काफ़िला पहले से जुटे लोगों में और जुड़ गया. इसके अलावा, विजय द्वारा एक लापता बच्ची की घोषणा करने और एक पेड़ की शाखा के टूटने से स्थिति और बिगड़ी. विडंबना यह रही कि विजय मंच पर भाषण देते रहे, जबकि उनके सामने भगदड़ मच चुकी थी.

तमिल राजनीति में 'भगवान' जैसे सितारों की भीड़ का जोखिम

तमिलनाडु में फिल्मी सितारे अक्सर राजनीतिक भगवान बन जाते हैं. विजय की लोकप्रियता भी इसी श्रेणी में आती है. विजय के टीम सदस्य ने कहा कि विजय आते हैं M.K. Thyagaraja Bhagavathar, MGR और रजनीकांत की लीग में, अगर मुख्यमंत्री की कुर्सी चाहिए, तो इस मुख्य धारा से आना होगा. विजय, MGR और रजनी जैसे 'mobocratic cults' हैं. एक भीड़ आधारित राजनीतिक पंथ.

चेतावनी पहले से थी, फिर क्यों नहीं हुई तैयारी?

विजय की पिछली सभाओं की भीड़ मुझे दशकों के अनुभव के बावजूद भयभीत करती थी. मुझे हमेशा यही डर था कि ये भीड़ किसी दिन जानलेवा साबित हो सकती है. इस तरह की चेतावनियों के बावजूद कोई प्रभावी नियंत्रण योजना न बनाना यह लापरवाही नहीं, आपराधिक असावधानी है. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने घटना की एकल न्यायिक जांच का आदेश दिया है. लेकिन स्थानीय लोगों का गुस्सा इस बात को लेकर है कि विजय मौके से निकलकर सीधे चेन्नई चले गए, जबकि उन्हें पता था कि हालात कितने गंभीर हैं. ये पहली बार नहीं, देश बार-बार दोहरा रहा है एक ही भूल. आइए एक नजर 2025 में भगदड़ की लिस्ट पर

भारत में भीड़ और भगदड़ की घटनाएं नई नहीं हैं-

  • जून 2025- बेंगलुरु में RCB की जीत के जश्न में भगदड़, 11 की मौत
  • मई 2025- गोवा के मंदिर में भगदड़, 6 की मौत
  • मई 2025- नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भगदड़, 18 की मौत
  • जनवरी 2025- महाकुंभ में भगदड़, 37 लोगों की मौत
  • हर बार अधिक भीड़, कमजोर प्रबंधन, सीमित सुरक्षा और निकासी के रास्तों की कमी इन मौतों की वजह बनते हैं और हर बार जांचें होती हैं लेकिन सबक नहीं लिया जाता.

राजनीति भीड़ के बिना अधूरी, लेकिन बिना प्रबंधन विनाशकारी

थलपति विजय अब सिर्फ फिल्मी सितारे नहीं, एक उभरते राजनेता हैं. ऐसे में उनका प्रचार अभियान भीड़ जुटाएगा ही. लेकिन जब यह पहले से पता हो कि भीड़ की दीवानगी जानलेवा हो सकती है, तब प्रशासन, आयोजक और नेता, सभी की जिम्मेदारी बनती है कि ऐसे हादसों से बचा जाए. करूर की त्रासदी में सबसे दुखद पहलू यह है कि सभी को खतरे की जानकारी थी, फिर भी कोई तैयारी नहीं हुई.

Similar News